Monday, 30 May 2016

गाड़ी कैसी ? ज़िन्दगी की या हकीकत की .


कल एक ब्लॉग पढ़ा नानी का घर एक तिलिस्म की तरह है। बहुत अच्छा लगा। लेकिन कब ये नानी का घर 
अपनी नानी से बच्चों की नानी तक पहुंच  गया पता ही नहीं चला। खैर ,पिछली गर्मी की छुट्टियो  में बच्चों के नानी के घर गयी। सारे बच्चे थे। जैसा की चलन है उन्होंने मोबाइल पर गाना बजाना शुरू कर दिया हम बातो में लगे थे तो तुरंत ,' अरे गाना बन्द करो।" गाना  नए  ज़माने   का था." नहीं नहीं रहने दो। पीछे से पापा ने कहा बड़ा अच्छा गाना है।
' हम सभी आश्चर्य  चकित थे। मेरे  पापा काफी गम्भीर किस्म के  है। बचपन से  आज तक गाना तो दूर कभी गुनगुनाते भी नहीं सुना  ऐसे में ये नया सा गाना '.माँ ने पूछा - आपने ये गाना कहाँ  सुना ; ये गाना मैंने तब सुना  जब मैं अपने बेटे  (मेरे भाई )  की गाड़ी  पर  पहली  बार बैठा  था...पापा ने कहा। बात तो बहुत छोटी है पर एक पिता  को अपने बेटे की सफलता कितनी ख़ुशी देती है स्पष्ट  है.. हर बाप चाहता हैकि  मेरा बेटा मुझ से ज्यादा  सफल हो। 
पापा अपनी जिन्दगी  में  एक अच्छे पद और  अच्छी आमदनी के बाद भी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण बहुत सी भौतिक वस्तुओं  को हासिल नहीं कर सके। भाई बहनो की पढाई,विवाह  के  होते होते हम बच्चों  की  ज़िम्मेदारी   शुरू हो गयी। ऐसे में पापा की  ऐसी  मर्मस्पर्शी बात ने मेरे दिल को छू  लिया। फिर जो जिंदगी की गाड़ी  को एक काम समझ कर चलाता  रहा  वो आज इस बात से खुश हो गया कि आज मेरे बच्चों ने एक अच्छे मुकाम को पा लिया । 




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