Tuesday 30 January 2018

आधुनिकता और  पाश्चात्य संस्कृति के प्रसार के कारण हमने बहुत सी चीज़ों को पाया है  शिक्षा और प्रगति ने अपने साथ पारिवारिक जीवन में बदलाव को जन्म दिया है । पहले बल्कि बहुत पहले सभी बच्चे बूढ़े साथ में रहते थे उस समय सभी लोगों का जीवन गाँव के इर्दगिर्द घूमता था ।उनमें से जो भी नौकरी के कारण शहर में रहता उनका परिवार गाँव में बाकी के परिवारवालों  के साथ रहता था और नौकरी करने वाला छुट्टियों में घर आता और बाकी के दिन किसी तरह गुजारता । धीरे धीरे छुट्टियों की कमी या बच्चों की पढ़ाई के कारण उस नौकरी करने वाले के साथ उसका परिवार भी रहने लगा और इस प्रकार अगर किसी दंपति में चार या पाँच बच्चे भी  थे  तो कोई न कोई माँ बाप के साथ जरूर ही रहते थे ।समय ने फिर करवट ली परिवार का आकार घटकर एक या दो बच्चों तक ही  सिमट गया और इस बार वो लोग  बूढ़े में गिने जाने लगे जो कभी गाँव को छोड़ कर छोटे बड़े शहर में आ बसे थे और अपना लंबा जीवन उन्हीं शहरों में काटा था अमूमन इस दौरान उन्होंने उन शहरों में अपनी औकात के अनुसार घर भी बना लिया था ।प्रायः इस प्रकार के लोगों के बच्चे पढ़ाई लिखाई कर महानगरों में या कभी कभी विदेशों में बस चुके हैं । आज लगभग हर दूसरे घर के बच्चे अपने माता पिता से बहुत दूर रह रहे हैं ।इस प्रकार की स्थिति में एक गंभीर समस्या यह है कि बच्चे जिन्होंने  अपनी जीविका के कारण महानगरों या बड़े  शहरों को चुना है वो चाहते हुए भी माता पिता के पास उनकी  हर जरूरत पर  नहीं रह सकते हैं और वे बुजुर्ग जिन्होंने अपनी जिंदगी किसी छोटे शहर में बिताई उन्हें महानगरों को मशीनी जीवन रास नहीं आती ।इस परिस्थिति में हम न बच्चों को दोष दे सकते हैं न ही माता पिता को ।ऐसा नहीं है कि बच्चे माता पिता को अपने साथ रखना नहीं चाहते या उनकी फिक्र नहीं करते लेकिन जिंदगी की भागमभाग में वो खुद लाचार हैं और उन जगहों पर  बुजुर्गों के लिए समय बिताना बहुत मुश्किल होता है । मेरे माता पिता खुद बीमार और परेशानियों के बावजूद मेरे भाई के पास मुंबई नहीं जाना चाहते ,क्या मेरे भाई को उनकी कोई चिंता नहीं ?क्या मेरी भाभी उनकी इज्जत नहीं करती या मेरे भतीजों को अपने दादा दादी का संग नहीं भाता ?  ऐसा कुछ भी नहीं मेरा भाई अपनी व्यस्त दिनचर्या के बाद भी उनके साथ समय बिताता है ,मेरी भाभी यथासंभव उनका मन लगाने का प्रयास करती है बच्चों को दादा दादी के साथ सोना और लूडो खेलना बहुत भाता है ।माँ पापा केहमेशा साथ नहीं रहने पर भी घर के तीसरे बेडरूम को माँ पापा के लिए रखा जाता है  लेकिन इनके बावजूद पापा वहां नहीं रहना चाहते वजह अकेलापन ।जिन लोगों की जिंदगी अपने अगल बगल और पड़ोसियों के साथ की बातचीत से गुजरी वो उतना अकेलापन बर्दाश्त नहीं कर पाते हद तो तब होती है  जबकि मेरी दीदी भी वहीं मुंबई में ही रहती है ये दूसरी बात है कि दोनों के घर की दूरी लगभग 3घंटे की है ।और चाहने पर भी वो हर वीकेंड नहीं आ पाती है ।इस बारे में ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मात्र बुजुर्ग महानगर में ही अकेलापन महसूस करते हैं सभी लोगों को अपनी जगह बड़ी प्यारी होती हैं और कोई भी अपनी जड़ों से अलग नहीं होना चाहता ।एक बार इसी बात पर मैं अपने पापा के लिए चिंतित होकर  मुंबई न जाने पर भुनभुना रही थी तभी मुझे ऐसा लगा कि अगर ऐसी परिस्थिति मेरे साथ हो तो क्या मैं आसानी से एक नए जगह को उस उम्र में  हमेशा के लिए स्वीकार सकूँगी  ? शायद नहीं ....

Saturday 13 January 2018

आज का दिन मकर संक्रांति अर्थात सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर जाने का दिन ।बचपन से सुनती थी कि आज से दिन रोज एक एक तिल के हिसाब से बढ़ता जाता है और इस दिन को ठंड खत्म होने की अधिकारिक घोषणा के रूप में भी ली जाती है । औऱ अगर बात अंग्रेजी हिसाब से लगाई जाए तो इसके लिए संभवत 25 दिसम्बर की तारीख है  जो बड़ा दिन कहलाता है उस दिन से प्रकृति में गर्मी की मात्रा शनै: शनै: बढ़ती जाती है ।लेकिन विगत कुछ वर्षों से मौसम के बदलाव ने हमें असमंजस में डाल दिया है ।हमने इस वर्ष भी 25 -26 दिसंबर तक गुलाबी ठंड को ही महसूस किया है और ठंड़ खत्म होने के  समय से ही भयंकर ठंड को महसूस करना शुरू किया है । क्या कहें इसे   प्रकृति की ठिठोली ? कुछ भी हो इसकी  शुरुवात तो हमारी ओर से हुई है  !