Sunday 24 December 2017

कल  गुरुद्वारा गई पूरे दिन श्रद्धा औऱ भक्ति से
सरोबार सिर्फ मैं ही नहीं गुरुद्वारा में सभी सिख और गैर सिख दोनों ।अगर गुरुद्वारा में सर ढकने की परंपरा है तो सभी भक्ति की भावना से अक्षरशः पालन करते हुए ।आज नहीं बल्कि कल अर्धरात्रि से  ही Merry Christmas  से सभी सोशल मीडिया भरे पड़े ।जिस जिस घरों में छोटे बच्चे हैं बच्चों के साथ मम्मी पापा क्रिसमस ट्री और सांता के कपड़े को सजाने में तत्पर ।ये बात मुझे काफी प्रभावित करती है क्योंकि चंद वर्ष पहले  ऐसा मेरी बच्चियों ने भी किया है और हर वर्ष  एक अटूट विश्वास के साथ अपनी मनपसंद वस्तु की फरमाइश सांता से की है और प्रति वर्ष यथा संभव शायद उनके सांता  ने भी उन्हें निराश नहीं किया ।अब तो बेटियां बड़ी हो गई कल गुरुद्वारा और आज के क्रिसमस के हर धर्म के लोगों की भावना देखकर मेरी बेटी का सवाल यह है कि अगर हम हर धर्म के नियमों का पालन इतनी इज्जत से करते हैं तो वैसी ही भावना हमारे अंदर देशभक्ति और सामाजिक  नियमों के प्रति क्यों नहीं? क्यों हम अपनों के बीच बिहारी, बंगाली या मराठी जैसी भावना के कारण वैमनस्यता को पालते हैं  ? क्या हम  मात्र धर्म के इशू पर   ही राज्य और देश की सीमा को लांघ सकते हैं  गैरतलब है कि वहाँ कई सिख परिवार  सभी राज्य और पूरी दुनिया से आए थे ।

Sunday 17 December 2017

'प्रतिपन' ,"स्वाछन",मैंने अकसर अपने घर के विशेष पूजा के अंत में दान देने के समय दान देने वाले औऱ दान लेने वाले को इन दो मंत्रों का उच्चारण करते हुए सुना है इन  मंत्रों के शाब्दिक अर्थ  की गूढ़ता के बारे में मैं नहीं जानती लेकिन मेरी सोच के अनुसार वो दान करने और उसके ग्रहण करने की एक औपचारिकता को व्यक्त करती है । वैसे कुछ भी हो ये  प्रथा सदियों से चली आ रही एक
ऐसी भावना को व्यक्त करने की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है जो शायद हमारे दैनिक जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है । कभी मात्र संबंधो को निबाहने की खातिर ,कभी किसी विशेष के प्रति स्नेह के कारण और कभी किसी और विशेष कारण से दोस्तों और रिश्तेदारों को अकसर हम भेंट , खाने पीने की चीज़ें और न जाने क्या क्या उपहार स्वरूप देते हैं और भेजते हैं  ।जमाना आधुनिक तकनीक का है तो अब इस तरह की सुविधा का जिम्माonline booking औऱ courier  ने भी ले लिया है । किसी को भेज कर या उपहार देकर हम जितने खुश होते हैं उससे अधिक जिज्ञासा  हमें अमुक व्यक्ति की उस उपहार के प्रतिक्रिया जानने की होती है । अंग्रेजो की अन्य बातें चाहे जैसी भी हो लेकिन जिस तरह से वे किसी के प्रति  धन्यवाद जताने और व्यवहार निभाने में जिस वाकपटुता का परिचय देते हैं निश्चय ही लाजवाब है । याद आती है अपने कॉलेज के जमाने की एक निकटस्थ सखी जो अपने अपनी सुहृदयता की वजह से आज तक मेरी यादों में बनी हुई है अब तक मेरे साथ साथ जिस किसी ने उसे कुछ भी दिया उसके धन्यवाद देने के तरीके से अभिभूत हो उठा । दी हुई वस्तु कैसी तुच्छ क्यों न हो उसके व्यवहार से हमें ऐसा लगता था कि ये उसके लिए अत्यंत उपयोगी है और वो जल्द ही खरीदना या बनाना चाहती थी  ।वर्तमान में  किसी पार्टी या पारिवारिक आयोजनो के बाद कई लोगों को मैंने फोन या अन्य सोशल मीडिया के द्वारा धन्यवाद देते भी देखा है जो औपचारिक होते हुए भी संबंधो को प्रगाढ़ बनाने में अहम भूमिका निभाता है ।कई बार ऐसा होता है कि हम बड़े ही प्रेम से किसी को कुछ देते हैं और बदले में उसकी  ठंडी प्रतिक्रिया से खुद को अपमानित या यूं कहें कि ठगा हुआ सा महसूस करते हैं । मेरी व्यक्तिगत ये अवधारणा है कि  बचपन से ही बच्चे की शिक्षा ऐसी हो कि वो छोटी सी भेंट मिलने पर भी दी गई वस्तु का मूल्यांकन भौतिक रूप से नहीं वरन देने वाले की भावनाओं से जोड़कर करें  क्योंकि दी गई प्रत्येक भेंट अमूल्य है और ऐसा न होने पर  यही बच्चे कल शिक्षा या विवाह के कारण जब हमसे दूर होंगे तो निश्चय ही  हमारी भावनाओं को भी आहत ही करेंगे ।

Friday 1 December 2017

कामाख्या की पूजा और शिलांग घूमने के बाद वापस लौट रही हूं ।टिकट कल सुबह की है लेकिन फोन से घर बात हुई तो पटना में एक जरूरी काम आन पड़ी ,सोचा कि चलो नेट चेक कर लूं अगर किसी ट्रेन में टिकट मिल जाए तो आज ही निकल लूं ।पहली बार में देखा ब्रह्मपुत्र मेल दो घंटे लेट है और AC 2 में चार टिकट उपलब्ध है ।बस अंधा क्या चाहे दो आंखे आपाधापी में टैक्सी में बैठे और चले गुवाहाटी रेलवे स्टेशन ।टैक्सी में बैठे बैठे टिकट बुक करने लगी ,अचानक देखा ट्रेन के राइट टाइम खुलने की सूचना के साथ टिकट अवेलेबल की संभावना खत्म ।जब स्टेशन पहुंच ही गए तो सोचा कि  हो सकता है कि कोई और ट्रेन मिल जाए ।पर देखा कि सूचना पट्ट पर ब्रह्मपुत्र मेल को दो घंटे लेट बता रहे हैं ।दौड़ कर काउंटर पर गई कि AC 2 में जगह खाली है हमारा टिकट बना दो । नहीं ,टिकट तो नहीं बन सकता क्योंकि कंप्यूटर पर शो कर रहे हैं कि ट्रेन जा चुकी है उन्होंने बताया। लेकिन यही बड़े से बोर्ड पर उसे लेट दिखा रहे हैं ।हाँ पर उससे नहीं होता ? रेलवे की लचर हालत पर क्या कहे और सोचे ।ट्रेने  खाली और अववैलिटी निल ।  खैर  दिक्कतो के बाद जब टिकट मिली तो ट्रेन चलने के बाद पता चला कि ट्रेन का रूट डाइवर्ट कर दिया गया है अब  लोगों की हालत बुरी।मेरे हिसाब से इसकी सूचना पैसेंजर्स को किसी भी तरह होनी चाहिए कोई  जवाबदेही लेने वाला नहीं । ये तो बात हुई किसी दूसरे राज्य  की।अब अगर  पटना जंक्शन की बात करूं तो व्यवस्था नाम की कोई चीज़ नहीं । नेट या बोर्ड पर शो करेंगे अमुक ट्रेन 5 न प्लेटफार्म पर आएगी और कुली या वेंडर कहेंगे 7 पर आएगी औऱ होगा वही जो कुली बताएंगे और स्थिति तो तब हद हो जाती है जब इस प्लेटफॉर्म  बदलाव  की सूचना ट्रेन आने से कुछ मिनट पहले दी जाती है । दूसरी  बदतर  स्थिति है कि हज़ारों किलोमीटर से सही टाइम ट्रेन बक्सर या आरा पहुंचने के बाद लोगों को रुला देती है न कोई announcement न ही रुकने की निर्धारित जगह ,घंटों तक गाड़ी किसी outer signal या खेत मे खड़ी ।न कोई बताने वाला और न ही कोई अन्य सूचना ।कभी कभी सड़ी हुई गर्मी में AC बंद और पानी तक बेचने वाले नदारद ।लोगों का रेलवे मंत्रालय का कोसना जारी वहीं जब अखबार हाथ में लेते हैं  तो  मालूम होता हैं अब तो हमारे यहाँ बुलेट ट्रेन चलने वाले हैं शायद इसी को कहते हैं "कौआ चला हंस की चाल .....😢😢😢