Friday 20 July 2018

कुछ दिन पहले मेरी एक निकटस्थ सखी अपने बच्चे के साथ मेरे घर आई ।जितनी देर वो मेरे पास बैठी अपने बेटे के बात करने के लहजे से शर्मिदगी महसूस करती रही ।एक नौ दस साल के बच्चे के बात चीत ने उसकी माँ को असहज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कभी वो बच्चा हम बड़ों के बीच बड़ों के विषय में अपनी टिप्पणी देने लगता और कभी कोई औऱ बदतमीजी करने लगता हालांकि उसकी माँ उस समय उसकी हरकतों के लिए मना कर रही थी ।लेकिन बच्चा था कि थोड़ी देर बाद फिर अपनी पुराने ढ़र्रे पर वापस आ जाता ।कहते हैं बिल्कुल छोटे बच्चे भगवान का रूप होते हैं और जब तक अबोध हैं तब तक तो बादशाह हैं अर्थात उनकी मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती अगर धार्मिक मतों को माने तो  जैसे जैसे वो बड़े होते हैं उनका संपर्क दुनिया से होता है वैसे वैसे वे भगवान से दूर होते जाते हैं ।पिछले दिनों कनाडा के प्रधानमंत्री के नन्हा सा बालक जो कि अपने माता पिता के साथ भारत के दौरे पर आया हुआ था अपने बाल हरकतों के कारण पूरे मीडिया में  चर्चा का विषय था ।उस नटखट को ये नहीं मालूम कि वो किसी देश के प्रधानमंत्री का बेटा है और एक राष्ट्र प्रमुख उसे दुलार रहे हैं वो नादान तो इस बात से बिल्कुल बेखबर था कि किसी मंदिर या राष्ट्रीय स्मारक पर किस तरह का व्यवहार किया जाए ।ये सारी हरकतें उसके उम्र के हिसाब से सबको लुभा रही थीं औऱ शायद आज तक किसी विदेशी बच्चे ने इस तरह से लोगों का ध्यान अपनी ओर नहीं खींचा था ।हीरा जैसा मूल्यवान पत्थर अगर सही तरीके से तराशा नहीं जाए तो उसकी कोई कीमत नहीं होती मेरी अल्पबुद्धि के अनुसार  ठीक वही बात एक बच्चे के साथ भी है जो भोली हरकतें और बचपन में की गई बातें सबको लुभाती हैं अगर उम्र के साथ नहीं बदली वो लोगों की नज़र में खटकने लगती है ।मेरे एक पारिवारिक मित्र के बच्चे अपनी शिष्टाचार से सबका मन मोह लेते हैं ।उन बच्चों की बातों में सभी के लिए प्रशंसा या किसी की बुराई न करना अभिभावक के सकारात्मक सोच को जाहिर करता है ।  कोई भी बच्चा अपने व्यवहार के द्वारा अपने माता पिता का प्रतिनिधित्व करता है तो कभी कभी तो मुझे हमारे शास्त्रों के अनुसार बच्चे का मार्गदर्शन करना ही उचित प्रतीत होता है वैसे भी मैथिली में कहते हैं कि अपना दुआरे बच्चा काने त काने बच्चा दुआरे अपने नै कानी अर्थात आपके कारण बच्चा रोए तो कोई बात नहीं बच्चे के कारण आप न रोए !

Wednesday 11 July 2018

अपने दो महीने के इंटर्नशिप के लिए मेरी बेटी आजकल पिथोरागढ़ के एक छोटे से कस्बे में Avni नाम के एक organization में काम कर रही है ।हल्द्वानी से टैक्सी से लगभग 7-8 घंटे की दूरी पर स्थित ये संस्थान विगत कई सालों से बच्चों को अपने यहाँ काम के साथ साथ रहने और खाने की सुविधा मुहैया करा रहा है ।  बचपन से ही मैंने गढ़वाल और कुमाऊँ के बारे में कई उपन्यासों को पढ़ा है मेरी रूचि को जानते हुए वो मुझे वहां के लोगों के रहन सहन से लेकर खाने पीने की बातें बताती है औऱ उसकी बातो की सजीव चित्रण सेे मैं शायद  वहां काम करने वाले हर कर्मचारी और चंपे चंपे को बखूबी जान गई हूं । इसके अलावा उसकी बातों में स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति का भी जिक्र रहता है । कुल मिलाकर मैंने ये समझा वे बेहद मिलनसार और संवेदनशील लोग हैं जिन्होंने इन दो महीनों में हर तरह से मेरी बेटी को प्रभावित किया क्या ये दाद देने की बात नहीं कि वहां काम करने वाले छोटे से कर्मचारी ने अपने सीमित आमदनी में  से  बेटी को कैंटीन के नियमित खाने की जगह  जबरदस्त आग्रह के साथ स्वादिष्ट भोजन बस इसलिए खिलाया गोकि उसकी मम्मी ये न कहे कि वो दो महीनों में दुबली हो गई है । अपनों से दूर उस लड़की ने पहली बार अपने जन्मदिन की सुबह अपने को पहाड़ी फूलों से घिरा पाया जोे  उन छोटे  बच्चों में  हाथों में थे जिन्हें वो कई दिनों से पेंटिग सीखा रही थी । हर सुबह जब बेटी से बात करती हूं तो  वे वहाँ के छोटे  बड़े कर्मचारियों के सहृदयता का सबूत देती है।इन सभी बातों से भावुक होकर जितनी बार मेरी बच्ची उनसे
दुबारा आने की बात करती है सारे लोगों का एक ही जवाब नहीं ,आप नहीं आओगे कहते सभी हैं लेकिन आज तक एक भी इंटर्न दुबारा नहीं आया ।क्या कहा  जाए उन लोगों के लिए जो इस बात को जानते हुए अपना स्नेह दोनों हाथों से लूटा रहे हैं उसके लिए जिससे वापसी की कोई उम्मीद नहीं ।क्या इसी भावना को समझते हुए कई  सफल हिंदी फिल्मों की कहानी  नहीं बुनी गई !

Thursday 5 July 2018

पिछले दिनों संजू नामक फ़िल्म अखबार से लेकर सोशल मीडिया और सभी बच्चे बड़े के ऊपर हावी है ।सुना है इस फ़िल्म ने सहज ही करोड़ों की कमाई का आंकड़ा पार कर लिया है । व्यक्तिगत तौर पर मैं बहुत कम फिल्में देखती हूँ इसलिए जब भी किसी नई चर्चित सिनेमा के संबंध में सुनती हूँ तो जानकारी के बाद ही देखना चाहती हूं ।एक ऐसा व्यक्ति जिसकी पूरी जिंदगी ही उसके कुकर्मों की वजह से  विवादों में घिरी हो ,जो अपनी माँ के मौत  से लेकर विदेश में शूटिंग जाते वक्त भी   नशे में डूबा रहता हो और  मादक द्रवों को तस्कर की तरह  रखता हो जो कभी गैरकानूनी तरीके से हथियार रखने के कारण पकड़ में आता हो ।जिसने अपनी जिंदगी में तीन शादियों के बाद भी 300 से अधिक महिलाओं से संबंध बनाने की स्वीकारोक्ति किया  हो उसकी जिंदगी की कहानी ।मुझे इस प्रकार के पिक्चर बनाने वालों जितना क्रोध नहीं आता उससे अधिक तरस आता है हमारी  हिंदुस्तानी जनता पर जो पदमावत पर  बवाल मचाती है और इसे करोड़ों तक पहुँचाती हैं ।बायोपिक वाली फिल्मों में मैरी कॉम ,मिल्खा सिंह और धोनी जितनी उत्कृष्ट कही जाए ऐसी फिल्में उतनी ही निकृष्ट  हमारी जनता तो इतनी ही भावुक है कि उसने जयललिता को भष्ट्राचार के बावजूद देवी का दर्जा दे दिया । कल से लगातार संजू  को देखने की ज़िद को नकारने पर बेटी ने झल्ला कर  कहा कि चलो तुम परमाणु ही देख लो । pokhran nuclear test  पर बनी इस फ़िल्म ने मुश्किल से 55 करोड़ का आंकड़ा पार किया जबकि  इसमें हमारे देश के गौरव के साथ साथ स्वर्गीय ऐ पी जे अब्दुल कलाम के प्रति श्रद्धांजलि देने लायक बात थीं ।  भौतिकता
के इस युग में क्या हम युवा पीढ़ी को एक ऐसे देशद्रोही और बिगड़ैल जैसा बनने को प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं जो न तो कभी  अच्छा बेटा बना न अच्छा पति और अच्छे नागरिक की बात तो रहने ही दिया जाए