Saturday 25 March 2017

एक विषय जो आज हर दूसरे घर की समस्या है उस पर कुछ सोचा जाए ।कहते हैं कि आज तक दुनिया की जितनी भी  बड़ी, छोटी लड़ाईया हुई उसके पीछे तीन ही  कारण हैं ज़र, जोरू और ज़मीन । आज के समय में होने वाली अधिकांश पारिवारिक लड़ाईयों का मुख्य कारण ज़मीन या पैतृक संपत्ति ।फिर वो चाहे देश का सबसे अमीर अम्बानी घराना हो या एक साधारण किसान का परिवार ।वैसे भी अगर चाणक्य नीति को देखा जाए तो किसी भी देश या परिवार का सबसे बड़ा दुश्मन या आलोचक उसका सबसे नजदीकी ही होता है ।फिर वो चाहे उसका खुद का भाई ही क्यों न हो ।आज हम देश विभाजन के कई दशकों के बाद भी पकिस्तान को इसी रूप में झेल रहे हैं ,हमारे लिए दुनिया के तमाम देश उतनी बड़ी समस्या खड़ी नहीं करते जितना की पाकिस्तान। अब बात को थोड़े छोटे तौर पर देखा जाए तो क्यूँ वो दो भाई जो,माता पिता के सामने राम लखन की मिसाल कायम करते हैं माँ बाप के जाने के बाद संपत्ति के कारण एक दूसरे के सामने आने से भी कतराते हैं ।इस मामले में ये बात कोई विशेष मायने नहीं रखता कि किसके पास कितनी सम्पति या जमींन है मेरे ख्याल से ये स्थिति कमोबेश सभी परिवार में मौजूद है  अब सवाल है कि इस समस्या का हल क्या है ? मैं जहाँ तक इस बात पर सोचती हूँ तो इसका एकमात्र हल मुझे ये नज़र आता है कि माँ बाप अपने जीवन काल में ही अपने सम्पति का बंटवारा कर दे ।फिर वो चाहे दो भाइयों के बीच हो या दो बहनों के बीच । बचपन से  बुढ़ापे तक हर माँ बाप अपने बच्चों के बीच प्रेम बना देखना चाहता है तो क्यूँ  ज़मीन के टुकड़े या चंद पैसों के लिए वो अपने मरने के बाद बच्चों में वैमनस्य बना दे ।यहाँ ये सोचना उनकी भूल है कि मेरे बच्चे संपत्ति के लिए कभी नहीं झगड़ेगे ।अगर पुरानी मान्यता मानी जाए तो किसी भी व्यक्ति के लिए अपने भाई बन्धु का हिस्सा हड़पना ,खुद उसी की अशांति का कारण बनता है । लेकिन इस घोर कलयुग में शास्त्र और धर्म की बात  मानने वाले बिरले ही होते है और जो माता पिता जोअपने बच्चों को बचपन से  हर चीज़ सामान हिस्से में बांटना सिखाते है अपनी एक छोटी सी भूल से किसी एक या दो बच्चे  को उनके जायज़ हिस्से से वंचित कर देते हैं ।आज समाज में   माँ बाप के सही बंटवारे के कारण ही हमारे कई परिवार ,माँ बाप के देहांत के सालों बाद तक विशेष अवसरों पर पहले से भी अधिक प्रेम से मिलते और छुट्टियाँ बिताते हैं ।इस कड़ी में अभी अभी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने अपने जीवन काल में ही  अपनी संपत्ति को अपने बच्चों के बीच  बंटवारे के द्वारा सबके लिए एक मिसाल कायम की है !इस विषय पर मेरी अल्पबुद्धि तो यही कहती है और आपकी ?

Wednesday 1 March 2017

जब कोई आसन्नप्रसवा स्त्री किसी बुजुर्ग महिला के पैर छूती है " पुत्रवती भव: " यह आशीर्वाद उसे सहज ही दिया जाता है।एक पुरुष प्रधान देश में ऐसे आशीर्वाद को गलत नहीं कह सकते  गलत तो वो तब होता है जब किसी दंपति के घर किसी बेटी ने जन्म लिया और लोग उसे ऐसी सहानुभूतिपूर्ण नज़रों से देखते है मानों उस बेचारे पर कोई भारी आफत आ गई ।हद तो तब हो जाती है जब किसी ने दूसरी बेटी को जन्म दे दिया ।मैं हैरान इस बात से हो जाती हूँ कि इस बेटे की अंधी दौड़ में उच्च पदस्थ और पढ़े लिखे लोग भी पीछे नहीं ,जो समझ रखते हुए भी परिवार नियोजन की धज्जियां उड़ाने में किसी अनपढ़ को पीछे छोड़ देते हैं ।खुद को इस मामले में भाग्यवान समझती हूँ कि मैंने कभी अपने मायके और ससुराल में कभी ऐसी बातों का सामना नहीं किया ।जब मैंने मेरी छोटी बेटी को जन्म दिया तो मेरी एक आत्मीय सहेली ने सांत्वना देते हुए मुझे कहा कि कोई बात नहीं अगली बार बेटा होगा ,मैंने उससे कहा कि मेरे लिए बेटे का होना मेरे लिए किस नज़रिये से जरूरी है ,अब तो न कोई  ऐसा राजतंत्र है जिसके युवराज नहीं होने पर सिंहासन के लिए किसी युद्ध की आंशका हो और न ही मैं खुद इस बात के लिए लालायित हूँ ।यहाँ एक सच्चाई मैं स्वीकार करती हूँ कि मैंने कभी अपने लिए ईश्वर से पुत्र जन्म की प्रार्थना नहीं की लेकिन अपनी कुछ सहेलियों और संबंधियों के लिए ईश्वर से पुत्र की कामना की है क्योंकि मैं जानती हूँ कि आज भी एक बेटे की चाह में ये लोग बेटियों की लंबी कतार खड़ी करने से नहीं चूकेंगे ।हर सरकारी योजना और कन्या जन्म पर मिलने वाली सुविधाएं तब तक सटीक नहीं हो सकती जब तक की ये फैसला लोग खुद न ले क्योंकि ये फैसला निहायत व्यक्तिगत है और हमारे देश की विशाल जनसंख्या के पीछे बेटे की  अतृप्त चाह भी है ।