Wednesday, 1 March 2017

जब कोई आसन्नप्रसवा स्त्री किसी बुजुर्ग महिला के पैर छूती है " पुत्रवती भव: " यह आशीर्वाद उसे सहज ही दिया जाता है।एक पुरुष प्रधान देश में ऐसे आशीर्वाद को गलत नहीं कह सकते  गलत तो वो तब होता है जब किसी दंपति के घर किसी बेटी ने जन्म लिया और लोग उसे ऐसी सहानुभूतिपूर्ण नज़रों से देखते है मानों उस बेचारे पर कोई भारी आफत आ गई ।हद तो तब हो जाती है जब किसी ने दूसरी बेटी को जन्म दे दिया ।मैं हैरान इस बात से हो जाती हूँ कि इस बेटे की अंधी दौड़ में उच्च पदस्थ और पढ़े लिखे लोग भी पीछे नहीं ,जो समझ रखते हुए भी परिवार नियोजन की धज्जियां उड़ाने में किसी अनपढ़ को पीछे छोड़ देते हैं ।खुद को इस मामले में भाग्यवान समझती हूँ कि मैंने कभी अपने मायके और ससुराल में कभी ऐसी बातों का सामना नहीं किया ।जब मैंने मेरी छोटी बेटी को जन्म दिया तो मेरी एक आत्मीय सहेली ने सांत्वना देते हुए मुझे कहा कि कोई बात नहीं अगली बार बेटा होगा ,मैंने उससे कहा कि मेरे लिए बेटे का होना मेरे लिए किस नज़रिये से जरूरी है ,अब तो न कोई  ऐसा राजतंत्र है जिसके युवराज नहीं होने पर सिंहासन के लिए किसी युद्ध की आंशका हो और न ही मैं खुद इस बात के लिए लालायित हूँ ।यहाँ एक सच्चाई मैं स्वीकार करती हूँ कि मैंने कभी अपने लिए ईश्वर से पुत्र जन्म की प्रार्थना नहीं की लेकिन अपनी कुछ सहेलियों और संबंधियों के लिए ईश्वर से पुत्र की कामना की है क्योंकि मैं जानती हूँ कि आज भी एक बेटे की चाह में ये लोग बेटियों की लंबी कतार खड़ी करने से नहीं चूकेंगे ।हर सरकारी योजना और कन्या जन्म पर मिलने वाली सुविधाएं तब तक सटीक नहीं हो सकती जब तक की ये फैसला लोग खुद न ले क्योंकि ये फैसला निहायत व्यक्तिगत है और हमारे देश की विशाल जनसंख्या के पीछे बेटे की  अतृप्त चाह भी है ।

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