Sunday 22 September 2019

पिछले कुछ सालों में हमारे देश की शिक्षा के मद में खर्च की बेहताशा वृद्धि हुई है । देश के शीर्ष कहे जाने वाली संस्थानों के फीस के बारे में कोई भी मध्यम वर्गीय  अभिभावक सोच भी नहीं सकता । लॉ के क्षेत्र में शीर्षस्थ clat  की फीस करीब करीब  10 से 12 लाख के अधिक हैं । ये आंकड़ा ऊपर के nlu के हैं ।निचले स्तर के nlu की फीस काफी अधिक हैं। nlu क्या हैं और इसकी स्थापना के पीछे सरकार के क्या उद्देश्य थे ? अगर 1940 से 50 तक देखा जाए तो लॉ या वकालत की पढ़ाई  हमारे समाज की मुख्य धारा में शामिल था और हमारे सभी मुख्य नेता इसकी पढ़ाई के लिए विदेश गए थे । बाद में लोगों ने इसकी पढ़ाई के लिए देश के कुछ चुनिंदा कॉलेज यथा ILS Pune,GLC mumbai  और   BHU Banaras आदि  को चुना ।बाद में लोकल यूनिवर्सिटीज में भी लॉ की पढ़ाई शुरू हो गई  लेकिन इन यूनिवर्सिटीज  के अच्छे पढ़ाई नहीं होने के कारण लॉ की पढ़ाई का स्तर बिल्कुल नीचे चला गया और इस तरह की पढ़ाई से  पढ़े हुए विद्यार्थियों के कारण हमारे कोर्ट  भी निम्नस्तरीय शिक्षाविदों से भरने लगा।इसी उद्देश्य को ध्यान में रख कर    1986 में Haward Law college  को आधार मान कर National law college    के रूप में NLS Banglore की  स्थापना की गई  ।
हालांकि इससे पहले दिल्ली लॉ कॉलेज में लॉ की पढ़ाई की जा रही थी ।इसके बाद 1998 में Nalsar Hyderabad दूसरे लॉ कॉलेज के रूप में स्थपित किया गया ।बाद के वर्षों में इसी के तर्ज पर देश के सभी क्षेत्रों में NLU  की स्थापना की गई । अब तक इन nlu की परीक्षा अलग अलग ली जाती थी ।2008 में इन सभी nlu को जोड़ कर CLAT की स्थापना  की गई । इनके पढ़ाई का स्तर तारीफेकबिल था लेकिन इन nlu के साथ बहुत अधिक फीस होने की समस्या आने लगी जिसका समाधान बैंको ने अपने education loan के द्वारा  किया ।अगर top  nlu की बात करें तो इनमें बच्चे अगर लोन लेकर भी पढ़ते हैं तो उनके लिए ये फायदे मंद ही साबित होते  हैं क्योंकि अंतिम सेमेस्टर के पहले ही देश के टॉप कॉरपोरेट उन्हें काफी हाई पैकेज पर नौकरी दे देती है या फिर बच्चे विदेश की कंपनी को join कर लेते हैं यहां चूँकि अधिकतर बच्चे लोन की रकम चुकाने को बेबस होते हैं तो उनके पास कोई चारा भी नहीं होता। Nalsar के वाईस  चांसलर shri  Faizan Mustafa ने पिछले दिनों इस बात पर चिंता जताई ।उनका कहना था कि बहुत अधिक फीस होने के कारण nlu अपने उद्देश्य से भटक गए हैं अर्थात शायद ही कोई बच्चा nlu से पढ़ाई करने के बाद कोर्ट join करता है ऐसे में सरकार ने जिस कारण से nlu की स्थापना की थी वो बिल्कुल गौण हो रहा है और इसका फायदा कॉरपोरेट ले रही है।इसका मुख्य कारण निः संदेह ऊँची फीस है । तो अगर सरकार के द्वारा अच्छी शिक्षा का लाभ वापस सरकार को न मिलकर देशी विदेशी कंपनी को मिले तो इससे अधिक घाटे का सौदा और किसे कहे ? दूसरी ओर अगर कोर्ट की ओर देखें तो कानून की लंबी  प्रक्रिया के कारण कोई भी कोर्ट जाने से डरता है कितने ही केस फैसले के कारण लंबित पड़े हुए हैं ।बहुत से कानून समय परिवर्तन के कारण बदलाव चाहते हैं ।इन जगहों पर नई पीढ़ी का आगमन निश्चय ही सब के लिए लाभदायक होगा जो देश में मौजूद श्रेष्ठ और काबिल कानूनविदों जोकि उत्कृष्ट संस्थान से पढ़े हुए हैं  मात्र   सरकार की गलत तरीके के कारण संभव नहीं दिखाई देता है।

पितृ पक्ष में सभी पितरों को मेरा नमन । जब इन दिनों में अपने पूर्वजों को याद करती हूं तो याद आती है एक भोली भाली ,सीधी और स्निग्ध छवि ।मेरी दादी जिन्हें सभी बच्चे " बड़का माँ " कहते थे ।फिर वो चाहे मेरे बच्चे हो या खुद मैं ।सभी के लिए वो ममता की मूरत थीं । जब मेरे बाबा की अचानक मृत्यु हुई उस समय मैं बस दो बरस की थी इसलिए बड़का माँ को अपनी स्मृति  में मैंने वैधव्य रूप में ही पाया ।बाबा के मृत्यु के समय का बड़का माँ की तस्वीर जब  देखती हूं तो लगता है कि आज के समय में न जाने इस उम्र में  लड़कियां  अपने खुशहाल जीवन के शुरुआती चरण में ही होती  है और उस  आयु में  उनकी सारी खुशियां समाप्त हो गई ।   पहले हमारे मिथिला में विधवाओं के लिए बहुत सी वर्जनाएं थीं जिनका पालन ताउम्र उन्हें करना पड़ता था ।  पहनने से लेकर खाने पीने तक उन्हें काफी पाबंदियां थी फिर भी वो खुश रहा करती थीं । पहले जब बड़का माँ गांव
व में रहती  और हम गांव जाते तो  हमारी सारी फरमाइश यथासाध्य वो पूरा करने की चेष्टा करती  या यूं कहें कि वो किसी की कोई भी बात नहीं  काटती ।रात में वो हमें तरह तरह की कहानियां भी सुनाती जो मुझे आज भी कंठस्थ है । इन्हीं कहानियों  का लालच में हम सभी चचेरे फुफेरे भाई बहन रात में उन्हीं के पास सोना चाहते । स्वभाव से वो अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की थीं । मैं जब फिल्मो या सीरियलों में सास बहू के टकराव की बात सुनती तो ये बातें बिल्कुल झूठ लगती क्योंकि मैंने अपने घर में इस तरह की बात ही नहीं देखी।लेकिन कुछ लोगों के नसीब में दुख की मात्रा अधिक होती है मुझे उनकी जिंदगी को देखकर कुछ वैसा ही लगा ।कम उम्र में उन्हें वैधव्य का दंड मिला ,प्राणों से प्रिय छोटे भाई का देहांत और अपनी जिंदगी में दो दो पुत्रों की अकाल मृत्यु । जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने  काफी संताप झेला । मैंने सुना है कि जब इस जीवन में कष्टों की अति हो जाती है तो वो आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर लेती  है तो शायद उनके इस कष्टों ने उनके लिए मोक्ष का द्वार खोल दिया हो और वो जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो गई हो ।

Thursday 19 September 2019

किसी ज़माने में कोटा अपनी साड़ियों के लिए विश्वविख्यात था। लेकिन आज कोटा की वो पहचान बदल गयी अब उसकी पहचान बदल कर कोचिंग हब के रूप में हो गयी है कोटा में पढ़कर कितने बच्चे कितनी सफलता पाते है ये अनुपात मैं  नहीं जानती पर वहां जाने वाले बच्चो की संगखया दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। लगभग उसी तर्ज हमारा शहर अब कोचिंगों  का शहर बनता जा रहा है। आए दिन अखबार ,लोकल चैनल और मोहल्ले के मकानों की बाहरी दीवाले किसी न किसी कोचिंग या टीचर के नाम के इश्तेहार से भरे हुए हैं /आशुतोष सर. वर्मा सर, झा सर और न जाने क्या क्या। आज अगर   शाम को आप महेन्द्रू ,नया टोला से ले कर एस  पी वर्मा रोड या बोरिंग रोड जैसे इलाकों की ओर जाना चाह  रहे हैं तो घंटे दो घंटे ज्यादा लेकर चले   क्योकि  शाम के समय ये सभी सडके  कोचिंग जाने वाले हजारों की संख्या वाले बच्चो से भरा  रहता है। निःसंदेह इन  बच्चो में बड़ी संख्या में  आस पास के गांव देहात से आने वाले बच्चो की रहती है। ऐसा नहीं है इस तरह के क्लासों  की संख्या मात्र इंजीनियरिंग ,मेडिकल या किसी टेक्निकल पढाई तक सिमित है बल्कि छोटे छोटे बच्चो के  ट्यूशन  की प्रवृति भी दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। अगर उच्च शिक्षा की बात करे तो एक ज़माने में पटना के लगभग सभी कॉलेज  ( साइंस कॉलेज ,पटना कॉलेज या वुमन्स कॉलेज )जैसे कॉलेजों की तूती पूरे देश में बोलती थीं और इन कॉलेजोँ में दाखिला पाना किसी भी विद्यार्थी  का सपना होता था। वही आज सारे कॉलेज गुंडागर्दी और राजनीतिक अखाड़े के रूप में तब्दील हो रहे हैं। हर तीसरे महीने  प्रोफेसर्स की हड़ताल जिसका मुख्य आधार केंद्रीय वेतनमान की मांग। किसी ज़माने में निरीह कहे जाने वाले गरीब प्रोफेसर्स की तनखा  शायद रिटायरमेंट तक भी उतनी नहीं थी जितनी आज किसी नए की सैलरी है और तारीफ की बात ये की जैसे जैसे  यू जी  सी छठा ,सातवां और न जाने कितने वेतनमान लागू होते गए और सी सॉ के खेल की तरह पढाई का स्तर गिरता गया। ऐसे में कोचिंग वालो का वर्चस्व बढ़ता गया और गर्जियन पीसते  गए पहले भी बच्चे मेडिकल , इंजीनियरिंग या कॉम्पिटेटिव परीक्षाए पास करते थे लेकिन उस वक़्त कॉलेज की अच्छी पढाई ही इसकी भरपाई कर देता था। पहले की तुलना में प्रतियोगिता बढ़ी है लेकिन हर साल खुलने वाले कितने ही सरकारी कॉलेजो की संख्या  भी तो  लगातार  बढ़ता ही जा रहा है।  किसी भी साधारण कोचिंग की फीस लाखों में है। प्रतियोगिता की दौड़ में लाचार माता पिता किसी भी तरह बच्चों के लिए फीस जुटा  रहे हैं।  

Wednesday 18 September 2019

लगभग तीन चार साल पहले मेरी एक स्कूल की सहेली से अचानक रांची में मुलाकात हो गई ।उसने बातों ही बातों में बताया कि गार्गी ने हमारे बैच का एक वाटसऐप ग्रुप बनाया है जिसमें अगर तुम्हारी इच्छा हो तो तुम जुड़ जाओ । उस समय हमें स्कूल  छोड़े हुए लगभग 24-25 साल से ज्यादा हो गया था। मैंने सहर्ष अपनी रज़ामंदी दे दी और उस ग्रुप से जुड़ गई । आज   हमारे ग्रुप में 45 सहेलियां हैं जो देश और विदेश में रहती हैं  । मैं अक्सर अपनी बेटियों से अपनी इन सहेलियों के बारे में चर्चा करती हूं । तारीफ की बात ये है कि हमारी जिस दोस्ती का आधार किसी भी सोशल मीडिया के जरिए नहीं हुआ था उसे सोशल मीडिया ने ही एक सूत्र में बांध दिया  ।आज हम सभी सहेलियों के बीच स्कूली जीवन के समय चलने वाली दुराव ,छिपाव और  घमंड जैसी भावना खत्म हो गई है । अगर किसी को डॉक्टर की जरूरत है हम निसंकोच अपने ग्रुप की डॉक्टर मित्रों को याद करते हैं । आज लगभग हम सभी की  समस्याएं एक तरह की हैं  जैसे बच्चों की पढ़ाई ,टीन एजर बच्चे और   अपनी युवावस्था को पीछे छोड़ती उम्र ।न अब किसी को उसके पति के बड़े पद  से मतलब है न ही उसके विदेश प्रवास से कोई ईर्ष्या । अक्सर हम अपनी स्कूली बातों को याद कर घंटों हँसते हैं ।किसी भी नए शहर में किसी को जरूरत पड़े ग्रुप में संदेश छोड़ दो  मदद के लिए दो तीन हाथ उठ ही जाएंगे  ।जब बेटी के पढ़ाई के दौरान  exhibition में हौसला अफजाई की बात आई तो मेरी सखी मौजूद । अब तो ये समूह मेरे लिए परिवार की तरह है जिससे मैं हर बात शेयर कर सकती हूं और  जब पिछले 12 को मुंबई से बेटी को लेकर पटना लौट रही थी तो गणेश विसर्जन ,मुंबई की झमाझम बरसात और अपनी सुबह 5 बजे से चलने वाली व्यस्त दिनचर्या के बावजूद रात के 10:30 बजे मेरी सहेली  उपहार के साथ स्टेशन पर आई । लगभग 50 मिनट की मुलाकात में कई बार आँखे गीली हुई ।जब हिसाब लगाया तो समझ में आया कि लगभग 27 सालों के बाद हम मिले थे लेकिनऔर  ये बात जेहन से उतर गई कि जब हम मिले  थे और आज के मिलने के बीच हमने एक लंबे अरसे को पार कर लिया। लेकिन आज तक सोशल मीडिया की खराबियों पर ही मेरी नज़र थी पर धन्य ये टेक्नोलॉजी जिसकी बदौलत मैं अपनी प्रिय सखी से मिली जो मेरे लिए निश्चित रूप से एक ठंडी हवा का झोंका थी जिसने मेरे सभी तरह के तनाव को अपनी अल्प अवधि के भेंट  से कम कर दिया।