Saturday 27 May 2017

पिछले गर्मी की छुट्टियों में रांची गयी तो सुना कि मेरी एक बचपन की सखी ने अपने पिता को खो दिया ।स्कूल से लेकर अब तक मैंने उस परिवार से बहुत स्नेह पाया तो उस व्यक्ति की मृत्यु से मैं विचलित हो गई और मैंने उसकी माँ से फोन पर बात की । आशा के बिपरीत मैंने उनकी आवाज में हम सभी के लिए अच्छा संदेश पाया ।जब मैंने उनसे कहा कि आंटी ,बाबा चले गए ।उन्होंने अपनी दर्दभरी आवाज में कहा कि हां बेटा, बाबा तो चले गए ! जाने वाले को कौन रोक सकता है लेकिन मेरी दोनों बहुएं बहुत अच्छी है और मेरा बड़ा खयाल रखती है ।मैंने कहा कि हां आंटी बेटे अगर अच्छे हो तो बहुएं अच्छी हो ही जाती है ।उन्होंने छुटते ही कहा न बेटा ,बेटे तो मेरे खुद के हैं अगर मेरी बहुएं अच्छी न हो तो मेरे बेटों को बदलने में देर नहीं लगेगीं बल्कि मैं तो आज बुजुर्गो की हालत देख कर कहती हूँ कि मेरी बहुएं बहुत अच्छी है और वैसे भी मेरी ये सोच है कि अगर कोई आपको एक गिलास पानी का भी दे तो उसकी तारीफ जरूर करें ।बाद में मैंने अपनी उस सहेली से इस बात का जिक्र किया तो उसने हंसते हुए  कहा कि जब मेरी बड़ी भाभी आयी तो मेरी नज़र में उस लड़की में कुछ वैसी बात नहीं थी लेकिन माँ के हर छोटी बात में की गई तारीफ ने उसे वर्तमान में वाकई तारीफे काबिल बना दिया । तारीफ की इस आदत ने  छोटी को भी बड़ी के बराबर ला दिया । बचपन में हमने एक कहानी पढ़ी जिसमें यह कहा गया कि देवता और मानव में क्रोध और लोभ छोड़ कर दूसरा कोई अंतर नहीं अर्थात अगर मनुष्य के अंदर क्रोध या लोभ न हो वो मनुष्य न रह कर देवता बन जाए ,फिर वह लोभ अपनी प्रशंसा पाने का ही क्यों न हो।आप एक छोटे बच्चे की तारीफ कर देखिए वो  दुबारा कितने जोश से काम में लग जाता है  ।अर्थात किसी भी मनुष्य के लिए उसके काम के लिए दी गयी शाबाशी उसके लिए विटामिन का काम करती है ।तो मेरी ओर से छोटा मुँह बड़ी बात ,अपने रिश्तों में गर्माहट लाने के लिए अपनों  के कई गए काम की तारीफ करें ,इस मामले में ये सोचना गलत है कि ये उसे करना ही चाहिए ।तो किसी टीवी के विज्ञापन की तरह तारीफ करके देखिए ,अच्छा लगता है वैसे भी हमारे बड़े तो कह कर गए हैं " वचने किम दरिद्रता " ।

Friday 19 May 2017

नेना स बियाह तक क सफर म कोनो कोनो  लोक हमर सभक जीवन म एहेन होई  छै जेकर स्मृति हर एक डेग पर आबि जाए छै ।हमर सभक बाबा ।बहुत पैघ भेला क बाद पता चलल ज ओ पपा क  बाबू नै कका रहथिन ।बच्चा म हुनकर छवि एकटा अत्यंत अनुशासन प्रिय मनुख क लगैत रहै ।छुट्टी म जखन दरभंगा डेरा पहुँचत रहि हम सब ,सब बेर बाबा क दूर स  बरंडा पर ठार देखियन ।रिकशा रुकैत देरि जोर से हँसैत दाइ क कहथिन यै ,मुंशी जी आबि गेला ।पपा क मुंशीजी कहैत रहथिन ,किया और कहिया स पता नहीं । सब बेर बबा क बाहर म ठार देखियन त हुए ज केना बुझि जाए छेथीन बबा आबि क समय ।जहिया छोट रहि बड्ड तामस उठेत रहे बबा क अनुशासन देख क ।की सब नै करबाक छै तेकर एकटा लंबा लिस्ट लगैत रहे लेकिन आब जेखन अपने अभिभावक भेनाइ बुझल भेल बुझि गेलिये ज कत्तई कठिन छै ,बच्चा सब क सही राह पर चलेनाइ ।एखनो ज कोनो अवंड बच्चा क देखइ छियै त होइये ज एकरा बबा क गार्जियनशिप क जरूरत छै ।आइ पपा सब भाई क परिचय हुनकर सब क पद क संगे केकरो दई छिये त एकता गर्व के अनुभूति होइत अछि ।शिक्षा क मामले म बबा बहुत बेसी
सचर रहैत ।हमर पुतोहु सब मैट्रिक क लैथ स हुनकर एकटा शौक तै बियाह आ बच्चा भेला क बाद माँ इ काज केलक ।जई समय म पर्दा और सामने ने आबि क बहुत बेसी प्रचलन रहे बबा  क सब पुतोहु सामने अबैत रहथिन आ बबा सब क अपन गप कहथिन ।एकटा गप मोन परैये  दरभंगा डेरा क बाहरवाला कोठरी म ,सेनियरटी वाइज ,पहिने ककाजी  काकी माँ,तखन माँ पपा ,फेर बरका कका काकू एहिना क सब बेटा भातिज क कनियाँ संगे बियाह के बाद क फ़ोटो देवाल पर टाँगल जेकरा बबा पाहुन क सब क शिक्षा आ पद के संगे  देखबथिन ।दोसर एकटा गप याद अबैत अछि बबा क नास्ता करै क ।बबा जलखै म भूजल चूड़ा फुला कआ दही नोन आ कनिये चिन्नी मिला क खाथिन आ खाई से पहिने जते बच्चा घर म रहे सब के बजबथिन ।हम सब गोल क के बैसिये आ बबा सब क बेरा बेरी क एक एक कौर डैथ जेकर स्वाद आई तक ने बिसरल ।
बबा सब क नाम रखथिन ओ चाहे कोनो नया बच्चा रहे हुनका बिना अर्थ क नाम नै पीसीन्द रहन ।हमरा अगर कोई पिंकी कहे त बिगड़ि जायत रहैत ओ कहैत ज पिंकी कोनो नाम छियै इ त कुकुर क नाम छियै अइ स नीक अहा अपन नाम पिनाकी राखि लिये त महादेव भ जायब ।अहा क कोई रंजना कहे तखने टा बाजू ।डेरा पर सब बच्चा मैथिली बाजे तेकर हुनका बहुत इच्छा शायद हुनके कराने हम सब भाइ बहिन मैथिली बजैत छि आ अझुका समय क बिपरीत हमर सभक बच्चों सब मैथिली बजाये आ विजातीय पुतोहु सब सेहो हमर सब के घर आबि क मैथिली बजाय लगलैत ।एक बेर बबा रांची आयल रहैत ,हम सब स्कूल जायत रहि बबा भइया क कहलखिन ज आलोक आइ पता क के आयब ज अहा क स्कूल म हमर एड्मिसन भ सकैए कि नै ,आ ओए म एडमिशन ल की सब चाहि ,हमरा इ गप्प बबा सुनेंने छैत ।ओ रोज़ भइया संगे स्कूल ,ड्रेस आ स्कूल जाई क गप करैथ लेकिन बबा कहलेंन ज हम त एडमिशन ल पूरा तैयार रहि लेकिन आलोक कहलक ज बबा एकटा समस्या अछि जे अहा बूढ़ ज भ गेलौं ।बहुत दिन त बबा इ बात क चर्चा करैत हँसैत रहैत ।बबा क पूजा केनाइ याद आबए आन पूजा क संगे महादेव बना क पूजा केनाइ हमरा ले एकटा कौतुक क विषय रहे कि एहेन महादेव होइ छथिन ,नोथनी झा हुनकर पूजा क ओरियान करथिन ।अइ बेर राँची गेलौ त अपन बच्चा क डिक्शनरी म जयंती भेटल ,ओए संगे सब बेर दशमी क बाद लिफाफ म हुनकर जयंती आ आशीर्वाद पठेनाइ मोन परि गेल । हुनकर आशीर्वाद आ पहिल पन्ना पर अपन लिखल एकटा दुर्गा पोथी देलैथ ज एखनो हमरा लग अछि ।आइ जखन इ लिखै ले बैसलौ त लागल ज् फेर स दरभंगा डेरा पहुंच गेलौ ।हम सब भाइ बहिन ,दाइ बरका टा भनसा घर खूब पैघ घर सब और बहुत किछ ।

Tuesday 16 May 2017

चालाकी

पापा के दोस्त पाण्डेय जी के दो बेटे और एक बेटी ।पांडेय अंकल सरकारी नौकरी में थे अपने जिंदगी में तीनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया ,पहले बेटी की शादी की और फिर बड़े बेटे की ।बड़ा बेटा उसी शहर में प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था  बहु साधारण परिवार से आई  धीरे धीरे ससुराल के हिसाब से ढल गई ।छोटे बेटे ने छोटे मोटे व्यवसाय की शुरुआत की और साल बीतते किसी  नौकरीपेशा लड़की से शादी कर ली ।अब घर में दो बहुएं आ गई ।छोटी बहू नौकरी करती है इसलिए घर के किसी काम को हाथ नहीं लगाती ।बड़ी बहू को बुरा न लगे इसलिए सास काम मे लगी रहती है ।घर का बड़ा बेटा घर चलाता है और छोटा घर में सामान खरीदता है ।दोनों बेटों के साथ अंकल आंटी खुश थे ।बीच बीच में बेटी आती ,बड़ी भाभी जहाँ उसकी पसंद के डोसा बनाती छोटी उसे और उसके बच्चों को कपड़े दिलाती ।डोसा तो एक दिन में पच जाता लेकिन कपड़े महीनों तक छोटी भाभी की याद दिलाती  ।खैर इसी तरह दो साल बीते घर में बड़े बेटे के दो बच्चे और छोटे के घर में भी एक  बच्चे ने जन्म लिया ।इसके साथ ही छोटे बेटे ने घर में गाड़ी ,एसी ,इन्वर्टर और सुविधा की सभी चीज़े खरीद ली ।पापा की मित्र मंडली में पांडेय अंकल एक मिसाल बनते कि अचानक एक दिन छोटे बेटे ने  एक किराये का घर ले  लिया ।अब छोटे बेटे के साथ घर के सभी सामान चले गए ।बड़ा बेटा जब पूरे घर का खर्च चलाता छोटा  टी वी खरीदता  ,बड़ा जब बिजली का बिल भरता छोटा गाड़ी की EMI भरता ।नतीजन छोटे ने पूरे साजो सामान के साथ अपने घर की शुरूवात की क्योंकि पूरे दो साल घर के खर्चो से मुक्त रहा ।महीनों तक पांडेय अंकल लोगों से नज़रे चुराते रहे ।छोटे बेटे की चालाकी उन माँ बाप के लिए एक सीख है जो आंख मूंद कर बेटों पर यकीन कर लेते है और न चाहते हुए किसी एक का नुकसान कर देते हैं ।

Thursday 11 May 2017

पता नहीं आपका ध्यान आज कल नवनिर्मित मकानों के बाहरी भीतरी बनावट और रंग रोगन की ओर गया है या नहीं ? कुछ अजीब सी बनावट और एक से एक आंखों को चुभने वाले रंग।कभी कभी देखती हूँ कि अच्छी भली इमारत तोड़ी जा रही है या बने हुए घरों में कोई ऐसा परिवर्तन जो सामान्य से हटकर महसूस हो तो निश्चय ही ये सब वास्तु  की ओर इशारा करते हैं।हमारे शहर में   एकाध ऐसे वास्तु पंडित हैं जो तमाम गणमान्य अधिकारियों, व्यपारियों से लेकर मंत्री निवास तक की घरों और कार्यालयों के वास्तु दोष मिटाने या उपाय बताने की एक तगड़ी फीस वसूलते हैं ।मैं इस बात से काफी हैरान हूं किआज जिसे हम वास्तु ज्ञान कहते हैं वो सम्भवत हमारे मिथिला के हर घर मे मौजूद था ।जरा याद करें अपने गाँव के घर के पुरानी रचना की ।यहां मैं स्पष्ट करती हूँ  मिथिला के गाँव के किसी भी घर के बारे में ।घर से मेरा मतलब आज से बीस वर्ष पहले के घरों के बारे में है । आज लगभग हर घर मे परिवर्तन आ गया है हो सकता है लोगों का गाँव से शहरों की ओर पलायन और वही स्थाई निवास कर लेना है ।सभी घर में ,बीच में आँगन और उसके चारों ओर घर।इसमें घर की आर्थिक स्थिति के अनुसार मात्र ईंट आदि में परिवर्तन होता था अर्थात अगर घर सम्पन्न है तो पक्की ईंट और खपरा या विशेष परिस्थिति में पक्की छत रहेगी और अगर गृह स्वामी गरीब है तो कच्ची ईंट और फूस की छत होगी लेकिन दिशा और घरों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं ।पश्चिम दिशा में जो घर उसे पछबरिया घर कहते थे ।इसमें भगवती घर अर्थात कुलदेवी का स्थान और इसी से सटी हुई रसोई ।इसके ठीक सामने पूर्व की ओर जो घर रहे वो पूवरिया घर कहलाए इसमें सोने के कमरे और इसका जो बाहरी हिस्सा था वो पुरुषों के बैठने के काम में लिया जाता था ।अब आती है बारी दक्षिण की ओर वाले घर ,जिसे दक्षिणबरिया घर कहते थे ।इसके कमरों का इस्तेमाल शादी के समय कोबर घर से होता था और कोबर घर से सटा एक बाहरी कमरा ,जिसमें दामाद के आने पर सोने की व्यवस्था होती थी।उत्तर की ओर के घर को उत्तरवरिया घर कहते थे जिसका उपयोग  सम्भवत अन्नभंडार  के रूप में होता था । हर घर का दक्षिण पश्चिम के कोने में चापाकल होता था जहाँ बाथरूम और शौचालय रहते थे ।शौचालय सोने वाले कमरों से पर्याप्त दूर होते थे इसके पीछे शायद  "पैखाना और समधियाना घर से दूर ही अच्छे होते हैं" जैसी भावना रही होगी ।
वैसे दक्षिण पश्चिम कोने में जल निकासी की व्यवस्था की वजह उस जगह पर  पर्याप्त धूप का आगमन हो .कहने का मतलब ये कि किसी बाहरी व्यक्ति के लिए भी हमारे यहाँ के घरों में जाकर पूजा घर या बाथरूम खोजना अत्यंत सरल था क्योंकि इन सब के लिए हर घर की दिशा निश्चित थी । इतने लिखने के बाद भी मिथिला के घरों के कमरों की स्थिति और उनके मकसद के बारे में पक्के तौर पर कह नहीं सकती और 
इस दिशा में सभी से अपनीअपनी जानकारी देने  का आग्रह करती हूँ जिससे मेरे साथ साथ हमारे बच्चे अपने पूर्वजों के इस ज्ञान को जान सकें कि कैसी सुंदर बनावट , हर घर की बनावट बिल्कुल एक सी ,जिन घरों में तुलसी के चौरा से लेकर देवी के पूजा स्थान एक दिशा में  हो ! कभी कभी तो हमारे ये पुराने घर  मुझे सदियों पहले की सभ्यता की याद दिलाती है  जिनकी पढ़ाई हमने स्कूल के दिनों में किया था ।

Monday 8 May 2017

कुछ वर्ष पहले एक पुस्तक आई , Secret ,बहुत ही उम्दा किताब ।मैंने इसे कई बार पढ़ा और अब भी पढ़ती हूँ ।इसके बारे में कहते हैं कि ये पुस्तक  बाइबल के बाद पूरी दुनिया में  सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली साबित हुई ,निःसंदेह मैंने अपने निजी जीवन में इससे काफी लाभ महसूस किया है ।अगर कम शब्दों में कहे तो इसका सार यह है कि अगर  हम अपने जीवन में सकारात्मक सोच रखें तो प्रकृति हमारी मदद को अपना हाथ हमारी ओर जरूर बढ़ाएगी और मात्र सकारत्मक सोच के द्वारा हम अपने जीवन में हर वो चीज़ हासिल कर सकते हैं जो हम अपने जीवन में चाहते हैं ।ये तो सर्वविदित है कि हमारे मन में नकारात्मक सोच हमेशा हावी होने की कोशिश करती है लेकिन हम अपने प्रयासों से इसे बदल सकते हैं ।हमारे मिथिला में कहते हैं कि सत्यं नाम की देवी इस संसार में हमेशा मौजूद रहती है और हर इंसान के बोले जाने पर वो सत्य कह कर उसे सच कर देती है तो अब ये हमारे ऊपर है कि हम देवी को क्या सच करने को कहे । आप और हम लोगों के बीच रहते हैं और कई बार हमारा सामना  ऐसे लोगों से होता है जो हर बात को लेकर नकारात्मक पहलू रखते हैं ।कई वर्षों पहले मेरी एक सहेली ने एक प्रतियोगी परीक्षा का फार्म भरा और काफी उत्साहित होकर उसने हम सभी को बताया उसके बताने के साथ ही हमारी एक सहेली कह उठी कि ये परीक्षा काफी कठिन है और इस में शायद तुम सफल न हो पाओ ।हम सभी के काफी उत्साहित करने पर भी हमारी दोस्त उदास हो गई ।कुछ दिनों के बाद परीक्षा हुई और नतीजा भी आया और वो उसमें असफल रही ।हालांकि ये एक प्रतियोगिता थी लेकिन मेरी उस दोस्त का सारा गुस्सा अपनी उस सहेली पर आ गया जिसका उसकी असफलता में कोई प्रत्यक्ष दोष नही था ।हम सभी  को अपने दैनिक जीवन में कई समारोह में जाने का मौका मिलता है और हमारे परिवार में ही जहाँ कई लोग हर जगह से दिक्कतों की लंबी लिस्ट अपने साथ लेकर लौटते हैं वही कुछ लोग मात्र अपने साथ अच्छी यादों को समेटना जानते हैं ।इस विषय पर अनुकरणीय हैं  मेरी सासु माँ ,जो पैरों से लाचार होने के बाद  भी प्रत्येक समारोह से लौट कर हर जगह की  मात्र प्रशंसा करना जानती है ।तो  मेरी अल्पबुद्धि के अनुसार , केवल  सोच ही नहीं हमारी बोली भी ऐसी हो जो सामने वाले को  तत्काल थोड़ी खुशी तो दे दे।

आपरूचि भोजन ,पररूप श्रृंगार अर्थात  जो खुद को रुचे वो भोजन करें और जो दूसरे को अच्छा लगे वैसा श्रृंगार करें, छुटपन से ही ये कहावत माँ के मुँह से सुनती आई हूँ लेकिन आज कल अपने इर्दगिर्द देखकर यह महसूस होता है कि ये कहावत बिल्कुल उल्टी हो गयी है ,अापरुचि श्रृंगार और पररूप भोजन, जो खुद जंचे वो पहन लो और लोगों को दिखा कर खाओ ।कभी शिवानी जी ने लिखा था कि एक तो विधाता ही सौंदर्य प्रदान करने में दिनों दिन कृपण होता जा रहा है और  उसपर भी हम उसके दिए में मीन मेख निकाल कर एक अजीब सज्जा पेश कर रहे हैं ।आज अगर लड़कों की वेश भूषा देखे तो लंबे बालों की चोटी ,कान में टॉप्स, कमर से  खिसकती पैंट ,पता नहीं इन  लड़कों ने वृहन्नला ( महाभारत में अज्ञातवास के दौरान अर्जुन के द्वारा धरा गया छद्म रूप) का रूप क्यों धारण कर लिया है ।जब मैं अपनी बेटी को लेकर मुम्बई के निफ्ट होस्टल गई तो वहां के लड़के लड़कियों को देखकर दंग रह गई , लड़कों की स्त्री वाली भंगिमा देखकर मन ही मन हंस पड़ी कि न जाने इनके जन्म पर माता पिता ने  लड़के को पाने के लिए कितनी मन्नतें मानी होगी ।ऐसा नहीं है कि लड़कों ने ही इस रूप धर लिया है ।लड़कियों को देखिए  कपड़े से लेकर बात चीत तक में उनमें एक पुरुषोचित भाव  सहज ही नज़र आ जाएगा  क्या लड़के या लड़की अपने ही रूप में सार्थक नहीं ,मैं लड़कियों के पहनावे को लेकर विरोध नहीं करती लेकिन हम क्यों किसी भी काम में पुरूषों जैसा बनने की कोशिश करे जबकि वही काम खुद अपने रूप में  कर सकते हैं ।आखिर बेलन से स्टेरिंग तक का लम्बा सफर हमने खुद अपने रूप में ही तय किया है।  ये तो बात है युवा पीढ़ी की ।ये पीढ़ी तो हमेशा से ही परिवर्तन के पक्ष में रहती है ।मुझे तो आश्चर्य लगता है हमारी पीढ़ी के लोगों पर जो अपनी वेश भूषा से किसी षोडशी से टक्कर लेने को तैयार है ।फैशन में चूर ये लोग अपने वयस और शारीरिक बनावट को नकारते हुए भूल जाते हैं कि किसी भी फैशन का असली मतलब उस व्यक्तिविशेष के  शारीरिक  दोष को  लोगों की नज़र से छिपाना है न कि उजागार करना।

Thursday 4 May 2017

कुछ दिन पहले मैंने एक पोस्ट शेयर किया था जिसका सार यह था कि बिल गेट्स जैसी प्रसिद्ध हस्ती अपने खाने का प्लेट खुद साफ करती है । हमारे समाज के कितने पुरुष इस मामले में गेट्स का अनुसरण करना चाहते हैं ? शेयर किए गए इस पोस्ट को न के बराबर प्रतिक्रिया  मिली ।मैं नहीं जानती कि बिल गेट्स से संबंधित ये जानकारी कितनी सच है ! लेकिन इस पोस्ट ने मेरा ध्यान  किसी पुरूष के  अपने  के घर के  काम काज में हिस्सा लेने पर खींचा ।भारत एक पुरुष प्रधान देश है ।प्राचीन काल से ही हमारे यहाँ स्त्री और पुरुष के कार्य बंटे हुए हैं ,जहाँ पुरुषों का काम धन अर्जन करना था वहीं औरतों के जिम्मे घर के चारदीवारी के  अंदर का काम था ।जमाना बदला ,  घर की महिलाओं के जिम्मे बैंक ,बाजार ,बच्चों के स्कूल ऐसे कई काम जुड़ते गए  लेकिन ज्यादातर घरों में पुरुषों की भूमिका जीविकोपार्जन ही तक सीमित रही ।समय ने एक और करवट ली और अधिकतर घरों की महिलाओं ने  घर से निकलकर नौकरी भी करना शुरू कर दिया अर्थात  उन्होंने घर की अर्थव्यवस्था में भी अपनी हिस्सेदारी बाँटी । जाहिर  है  घर में औरतों के कार्य में हिस्सेदारी बढ़ी लेकिन पुरुष के कार्य अपनी सीमा में बंधे रहे ।मैं सभी पुरुषों को दोष नहीं देती लेकिन आज भी हमारे यहाँ उन पुरुषों की कमी नहीं जो शाम में लगभग घर एक साथ पहुँचने पर पत्नी से पूरी सेवा की उम्मीद रखते हैं ।यहाँ उनके मन में अपनी माँ या बहन जो कभी घर से बाहर ही नहीं निकली उनकी अमिट छवि है जो घर से बाहर की दुनिया से अनजान है औऱ उनके जिम्मे मात्र घर के कार्य हैं ।  इस संसार मे माँ की बराबरी कोई नहीं कर सकता लेकिन क्या किसी भी पुरुष के जीवन में पत्नी की कोई भूमिका नहीं जो हर तरह से उसके जीवन को सुखी करने को तैयार है । मैं इसके लिए पुनः हमारे सामाजिक ढांचे और बच्चे के पालन पोषण को ही दोष देना चाहूंगी बचपन से ही एक लड़के के मन में ये बात रहती है कि घर का काम करना मात्र लड़की की जिम्मेदारी है तो मैं ये सलाह सभी माताओं को देना चाहूंगी कि अपने बच्चों को  घर के काम की शिक्षा जरूर दे यहां बच्चे का लड़का या लड़की होना कोई खास मतलब नहीं रखता । माँ की दिलाई गई  छोटी सी आदत उसके बच्चे के दाम्पत्य जीवन की सफलता के लिए अहम भूमिका निभा सकती है। इसके पीछे  औरतों का नौकरीपेशा होने के साथ साथ हर घर में घरेलू सहायक( नौकरों या महरियों) की दिनों दिन होने वाली कमी है ।तो अगर हम सामाजिक और आर्थिक विकास में पाश्चात्य देशों की तरह बनना चाहते हैं तो हमें अपनी मानसिकता भी बदलनी होगी जो हमें सतत विकास की ओर आकर्षित करता है ये बात भले ही छोटी है लेकिन किसी घर को शांति दे सकती है ।