Wednesday 20 March 2019

घटना लगभग पाँच छह साल पुरानी है ।एक वयोवृद्ध सज्जन (दुर्भाग्य वश अब वो हमारे बीच नहीं है) हमारे निवास स्थान पर आए ।महानगरों की तर्ज पर हमारे शहर में कुकुरमुत्ते की तरह अपार्टमेंट्स जरूर बन गए हैं लेकिन उसमें रहने के नियम क़ायदों को शायद ही कहीं अपनाया गया है ।खैर मुद्दे की बात, हमारे अपार्टमेंट में मेरे फ्लैट की स्थिति इस तरह की है जिससे बालकनी से हम नीचे गेट और वहाँ मौजूद गार्ड को बखूबी देख सकते हैं । उस दिन जब मैं शाम के समय अपनी बालकनी में खड़ी थी तो मैंने नीचे गेट पर उन वयोवृद्ध सज्जन को खड़ा पाया ।उन्होंने आते ही गार्ड से रजिस्टर्ड माँगा ।गार्ड  ने रजिस्टर उन्हें दिया जिसमें उन्होंने पूरा ब्योरा दर्ज किया उसके बाद उन्होंने इंटरकॉम से अपने आने की सूचना हम तक पहुँचाने का आग्रह किया ।ये बात बहुत छोटी सी है लेकिन इसने मेरे मन में एक सवाल खड़ा किया कि किसी भी नियम को मनाना कितना जरूरी है ! मैंने आए दिन लोगों को इसी एंट्री करने को ले कर बक झक करते देखा है फलस्वरूप गार्ड ने भी रजिस्टर को किसी कोने में डाल दिया ।हम सब एक सामाजिक जीवन जीते हैं और समाज के बहुत से कहे और अनकहे बहुत से नियम होते हैं जिसे पूरा करने की समाज हमसे उम्मीद करता है ।हम अक्सर शादी विवाह या अन्य किसी पार्टी में दिए गए समय से घंटे दो घंटे देर से पहुंचते हैं क्योंकि अगर आप होस्ट के दिए गए समय से पहुंच जाए तो आपको बुलाने वाले खुद भी शायद  मौजूद नहीं होंगे ।मेरी एक सखी जिन्हें कहीं भी पार्टी में समय पर पहुंचने की बुरी आदत है उन्हें जल्द ही ऐसी भनक लग गई कि किसी भी फंक्शन में उन्हें दूसरे लोगों के एक घंटे बाद का समय दिया जाता है । पिछले साल दिसंबर में किसी दैनिक अखबार ने गुलज़ार साहब को पटना बुलवाया था ।सौभाग्य से मुझे भी उन्हें सुनने का मौका मिला ।गुलज़ार साहब ने कार्यक्रम के शुरू में ही इस बात का ज़िक्र किया कि पटना मैं पहले भी आ चुका हूं और यहां की जनता को कलाकारों की काफी कद्र है लेकिन उस दिन  वहां कार्यक्रम शुरू होने से लेकर खत्म  होने तक लोगों का आना जाना  और लगातार मना करने के बाद भी लोगों का मोबाइल के द्वारा फ़ोटो लेना बदस्तूर जारी रहा ।क़ाबिलेतारीफ  ये कि गुलज़ार साहब  दोनों ही बातों के लिए लोगों से  ऐसा न करने की गुजारिश करते रहे ।मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कहती कि मैं कलामर्मज्ञ हूँ पर उस प्रोग्राम में कई लोग ऐसे भी थे जो  परिवार के साथ चिप्स बिस्किट आदि खाते हुए लगातार बस अपनी बात चीत कर   अनायास ही वातावरण में बोझिलता
उत्पन्न कर रहे थे । यहां फिर मैं नियम मनाने की बात पर लोगों से ऐसा आग्रह करती हूं  किसी भी ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने न जाए जिसमें आपकी रुचि न हो और कम से कम उन जगहों पर समय पर पहुंचने की कोशिश करें । इन दिनों हमारी सरकार ने पॉलीथीन पर बैन लगाया है लेकिन मैंने लोगों को पॉलीथीन के लिए दुकानदारों को विवश करते हुए देखा है ।लोग डोर टू डोर कूड़ा गाड़ी आने के बाद भी यत्र कुत्र कूड़ा फेंकते हैं ।लगातार पानी की कमी के बाद भी मोटे पाइपों के द्वारा गाड़ी धोना जारी है ।इन सभी बातों के लिए कोई हमें दण्डित नहीं करता लेकिन इन्हें मानना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है ।कोई भी नियम तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक वहां के लोग उसे मानना न चाहे ।आज कश्मीर की हालत गंभीर है पर कभी पंजाब इससे कम नहीं था । मेरे हिसाब से वहां के निवासियों का सतत प्रयास ने ही उसे आतंकवाद मुक्त किया । हम सभी अगर अपनी ओर से थोड़ा थोड़ा प्रयास करें तो कोई  भी छोटी बड़ी समस्या निश्चय ही कम हो सकती है ।

Thursday 7 March 2019

लगभग दस साल पहले टीवी के किसी चैनल पर  एक सीरियल आता था"न आना इस देश लाडो" ।एक अजीब खूंखार सी औरत के चेहरे के साथ इस सीरियल की याद अब तक मेरे जेहन में है ।ये कहानी एक ऐसे गांव की थी जहां बेटी का जन्म लेना ही  गुनाह था औऱ अगर गलती से अगर बेटी ने जन्म ले लिया तो उसे जन्म के साथ ही मार दिया जाता था एक ऐसा गाँव जहां से सिर्फ बारात निकलती थी उस गाँव में बारात जाती नहीं थी । इन सारी बातों से मिलती जुलती कई कहानियां हमने पढ़ी है जहां बेटा न होने की स्थिति में बहुविवाह आदि बुराइयां भी प्रचलित थे । मुख्य तौर पर इसके पीछे  संभवत  दहेज था ।इन सबके उलट सौभाग्य से मैं एक ऐसे समुदाय से सबंधित हूँ जहां अब भी विवाह में दहेज नाम के दानव ने कदम नहीं रखा है जहां किसी भी युग में  बेटियों के जन्म को शाप नहीं माना जाता था ।सिर्फ अच्छे कुल शील को देख कर ही यहाँ शादियां होती रही हैं ।इन सबके बावजूद आज हमारे यहां एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है वो है लड़कों के लिए कन्या के प्रस्ताव की कमी । पहले जहां दहेज नहीं होने पर भी लड़को के लिए लड़कियों की लंबी लिस्ट होती थी और बहुधा वर को विवाह के लिए हामी भरने के लिए  उनके मामा, चाचा,बहिनोई आदि संबंधियों से जोर दिलाया जाता था ।अब इसके विपरीत  लड़कों के लिए विवाह प्रस्ताव आना ही मुश्किल हो गया है ।जब हमारे समाज ने लड़कियों की जन्म को बुरा नहीं माना तो निश्चय ही लिंग अनुपात बिगड़ने  जैसी समस्या से हम प्रभावित नहीं हुए होंगे ।ऐसा नहीं है कि विवाह प्रस्ताव की कमी जैसी समस्या से औसत वर ही ग्रसित हैं इनमें पाँच  छह अंकों में कमाने वाले लड़के भी शामिल हैं । हो सकता है कि लड़कियों के द्वारा की जाने वाली अंतरजातीय विवाह और स्री शिक्षा इसका एक कारण बना है ।लेकिन हमारे यहां अंतरजातीय विवाह तो शायद लड़कियों से अधिक लड़कों ने किया है तो विवाह प्रस्ताव  के लिए वधू की संख्या अधिक होनी चाहिए ? कुछ लोग ऐसी स्थिति से बचने के लिए बच्चों को खुद अपना जीवनसाथी चुनने  की हिमायत करते हैं लेकिन ये तो समाधान नहीं है क्योंकि  आज भी आधुनिकता के बावजूद  कई लड़के लड़कियां  विवाह अपने अभिवावक के द्वारा कराए जाने को उचित समझते हैं ।आज महिला दिवस के नाम पर अगर इसे समाज में महिलाओं का बढ़ता हुआ वर्चस्व मान ले तो क्या ये सही होगा  ?क्या इसे हम वर पक्ष की हेकड़ी खत्म होने का लक्षण मान कर प्रसन्नता का अनुभव करें  !  ऐसे तो समाज में असंतुलन की स्थिति आ जाएगी और किसी भी स्वस्थ समाज के लिए विवाह की अनिवार्यता से हम इन्कार नहीं कर सकते हैं !