Thursday, 7 March 2019

लगभग दस साल पहले टीवी के किसी चैनल पर  एक सीरियल आता था"न आना इस देश लाडो" ।एक अजीब खूंखार सी औरत के चेहरे के साथ इस सीरियल की याद अब तक मेरे जेहन में है ।ये कहानी एक ऐसे गांव की थी जहां बेटी का जन्म लेना ही  गुनाह था औऱ अगर गलती से अगर बेटी ने जन्म ले लिया तो उसे जन्म के साथ ही मार दिया जाता था एक ऐसा गाँव जहां से सिर्फ बारात निकलती थी उस गाँव में बारात जाती नहीं थी । इन सारी बातों से मिलती जुलती कई कहानियां हमने पढ़ी है जहां बेटा न होने की स्थिति में बहुविवाह आदि बुराइयां भी प्रचलित थे । मुख्य तौर पर इसके पीछे  संभवत  दहेज था ।इन सबके उलट सौभाग्य से मैं एक ऐसे समुदाय से सबंधित हूँ जहां अब भी विवाह में दहेज नाम के दानव ने कदम नहीं रखा है जहां किसी भी युग में  बेटियों के जन्म को शाप नहीं माना जाता था ।सिर्फ अच्छे कुल शील को देख कर ही यहाँ शादियां होती रही हैं ।इन सबके बावजूद आज हमारे यहां एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है वो है लड़कों के लिए कन्या के प्रस्ताव की कमी । पहले जहां दहेज नहीं होने पर भी लड़को के लिए लड़कियों की लंबी लिस्ट होती थी और बहुधा वर को विवाह के लिए हामी भरने के लिए  उनके मामा, चाचा,बहिनोई आदि संबंधियों से जोर दिलाया जाता था ।अब इसके विपरीत  लड़कों के लिए विवाह प्रस्ताव आना ही मुश्किल हो गया है ।जब हमारे समाज ने लड़कियों की जन्म को बुरा नहीं माना तो निश्चय ही लिंग अनुपात बिगड़ने  जैसी समस्या से हम प्रभावित नहीं हुए होंगे ।ऐसा नहीं है कि विवाह प्रस्ताव की कमी जैसी समस्या से औसत वर ही ग्रसित हैं इनमें पाँच  छह अंकों में कमाने वाले लड़के भी शामिल हैं । हो सकता है कि लड़कियों के द्वारा की जाने वाली अंतरजातीय विवाह और स्री शिक्षा इसका एक कारण बना है ।लेकिन हमारे यहां अंतरजातीय विवाह तो शायद लड़कियों से अधिक लड़कों ने किया है तो विवाह प्रस्ताव  के लिए वधू की संख्या अधिक होनी चाहिए ? कुछ लोग ऐसी स्थिति से बचने के लिए बच्चों को खुद अपना जीवनसाथी चुनने  की हिमायत करते हैं लेकिन ये तो समाधान नहीं है क्योंकि  आज भी आधुनिकता के बावजूद  कई लड़के लड़कियां  विवाह अपने अभिवावक के द्वारा कराए जाने को उचित समझते हैं ।आज महिला दिवस के नाम पर अगर इसे समाज में महिलाओं का बढ़ता हुआ वर्चस्व मान ले तो क्या ये सही होगा  ?क्या इसे हम वर पक्ष की हेकड़ी खत्म होने का लक्षण मान कर प्रसन्नता का अनुभव करें  !  ऐसे तो समाज में असंतुलन की स्थिति आ जाएगी और किसी भी स्वस्थ समाज के लिए विवाह की अनिवार्यता से हम इन्कार नहीं कर सकते हैं !  

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