Thursday 18 July 2019

आज कल जब भी मैं छोटे छोटे बच्चों को स्कूल जाते देखती हूँ अनायास ही सोचने लग जाती हूँ कि जब तक मेरी दोनों बेटियां कुछ इसी तरह से स्कूल जाती थीं मैं कितनी निश्चिंत थी काश मेरा वो समय फिर से लौट कर आ जाए ।शायद मेरी इस सोच के पीछे मेरी वर्तमान समय की परेशानी हो ।अभी मैं छोटी बेटी के कॉलेज के डोलड्रम वाली स्थिति से क्षुब्ध हूँ ।बड़ी बेटी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर मुंबई में एक अच्छी कंपनी में नौकरी शुरू कर ली लेकिन आए दिन कभी मुंबई की बरसात या फिर उसकी बाई की अनुपस्थिति उसकी ओर से परेशानी का कारण बन जाता है और मैं प्राय ये सोचती हूं कि काश मेरे बच्चे छोटे ही होते तो कम से कम ऐसी परेशानियां तो न होती ।गौर करने की बात यह है कि शायद मैं उस वक़्त ये सोचकर परेशान थी कि न जाने इनका स्कूल कब खत्म होगा । उसके साथ ही एक और समय का सोच कर मैं खुशी का अनुभव करती हूं जब मेरी दोनों बेटियों ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और हमने अपनी उनका विवाह करा दिया हो ।कुल मिला कर मुझे या तो भूतकाल आनंद दे रहा है या आने वाला समय ।कुछ इसी तरह की भावना अपने आस पास के बहुत से लोगों में देखा है जो अपने वर्तमान में नहीं बल्कि भूत या भविष्य में जीना चाहते हैं ।आपने अक्सर बुजुर्गों को अपनी बीमारियों से परेशान होकर अतीत में जीते हुए देखा होगा। याद आती है छुटपन में कवि बालकृष्ण राव द्वारा लिखित कविता "फिर क्या होगा उसके बाद" लोग हमेशा ऐसा सोचते हैं कि ऐसा होगा फिर हम सुखी होगें लेकिन शायद इस चक्कर वर्तमान भी हाथ से निकल जाता है ।इस वर्ष जब बच्चों ने फादर्स डे के दिन मुझे पापा के साथ एक फोटो लगाने को कहा तो हे प्रभु डॉक्टर के कहने के साल भर तक पापा के रहने पर भी हमने पापा के साथ की एक अच्छी तस्वीर तक नहीं ली ।
अभी लिखने के वक्त फिर इस बात के लिए दुखी हुई तो सहसा मन में ये बात कौंध गई कि मैं मूर्खा फिर से वही गलती कर रही हूं ।वर्तमान को जी भर जी लो ,भविष्य की योजना करो क्योंकि उसी से जिंदगी है अन्यथा शून्य हो जाएगा  और जीवन लक्ष्यहीन  । तो बीते दिनों को याद कर खुश हो जाऊं उसकी गलतियों से सबक लू   लेकिन वर्तमान की कीमत पर नहीं ।