Wednesday 26 August 2020

आज सासुमां को गए 32 दिन हो गए ।27 साल और कुछ महीने मैं उनके साथ रही ।पहले पति की  नौकरी और बाद में व्यवसाय के कारण ,अगर सासुमां और अपने  घूमने फिरने और कुछेक महीनों के कटिहार प्रवास को भी मिला दिया जाए तो भी हम अधिक से अधिक कुल मिला कर एकाध साल ही अलग रहे होंगे।मेरे हिसाब से जब इतने दिन लगातार सास बहू एक  साथ रहती हैं तो वो संबंध सास बहू का न होकर वो दो औरतों के बीच का संबंध बन जाता है।  उनमें ऐसी बहुत सी बातें थी जिन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया और आज मैं  अपने बच्चों के साथ साथ अपने सभी मित्रों को जीवन में उन मूलमंत्रों को अपनाने की सलाह दूँगी ।क्षमाशीलता या घर परिवार में होने वाली छोटी या बड़ी बातों को नजरअंदाज करने की आदत ने उन्हें दूसरों से बिल्कुल अलग कर दिया था ।शायद  अपने इसी गुण के कारण अपने विवाह के प्रारंभ से ही  सास ससुर के साथ साथ देवर ननद के परिवारों के साथ रहने में वो  सामंजस्य बना पाती थी । अपने विवाह के शुरू के वर्षों में मैं इस बात से आश्चर्य में पड़ जाती थी कि घर में होने वाली किसी भी बहस का अंत एक चाय के प्याले के साथ हो जाता था ।रात की बात रात में ही खत्म करना और चाहे कोई कितना भी गुस्से में क्यों न हो हमारे घर में किसी को अपना गुस्सा खाने पर निकाल कर भूखे रहने की इजाज़त नहीं थी और न ही उस  विवादित बात को  वो फिर दुहराती थीं । चाय पीना उन्हें अत्यंत प्रिय था ।अक्सर मुझे हँसकर कहा करती थीं कि मेरे श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन से पहले  चाय पिला देना ,मधुशाला की तर्ज़ पर चाय वाली इच्छा को  मैंने श्राद्ध में पालन करने की कोशिश की। खाने और खिलाने की बेहद शौकीन सासुमां एक बेहतरीन कुक थी छोटी उम्र में शादी होने के कारण आज भी मेरी रसोई पर माँ से अधिक सास की ही स्पष्ट छाप प्रतीत होती है। इन बातों के साथ जीवन के प्रति सकारात्मक सोच से मैं बहुत प्रभावित थी ।जितना है उसी में बेहद खुश और संतुष्ट हो कर जीना , घर में होने वाले किसी भी पर्व त्योहार के लिए  बेहद उत्साहित रहना घर में अनायास ही स्वस्थ वातावरण को जन्म देता है।किसी भी त्योहार के लगभग एक सफ्ताह पहले से उनकी बातों में उसी पर्व या व्रत का जिक्र रहता था ।आज महिलाओं को एक मेहमान एक शाम के लिए परेशान होते देखती हूं जबकि मायके ससुराल  रिश्ते के कितने ही लोग अपने काम के सिलसिले में पटना आते और  कई बार कई दिनों तक बने रहते लेकिन इसके लिए मैंने कभी माँ के चेहरे पर शिकन आते हुए नहीं देखा वो मेरे भाई बहन के लिए भी उतनी ही ममतामयी थी जितनी अपने किसी खास के लिए ।माँ की ऐसी बात का मैं जिक्र करना चाहूंगी जिसे कितने ही आधुनिक परिवारों में सीखने की जरूरत है ।मेरे पति अकेले भाई है और मेरी दो बेटियां हैं ।आज भी मैंने कई आधुनिक और पढ़ी लिखी महिलाओं को पोते के लिए बिसूरते देखा है लेकिन आज मैं गर्व से कह सकती हूं कि माँ के मन में कभी भी मैंने इस बात का मलाल नहीं देखा मेरे बच्चों के लिए वो मुझसे अधिक फिक्रमंद रहा करती थीं ।शायद इसी कारण नौकरी और पढ़ाई के बाद भी कोरोना हमारे लिए एक हिसाब से फायदेमंद साबित हुआ कि दोनों ही बच्चे दो महीने से दादी के पास थे । पिछले लगभग चार पाँच साल से वे अपनी पैर की तकलीफ से बहुत व्यथित थी ।भगवान पर अगाध आस्था रखने वाली माँ से शायद ही कोई व्रत अछूता था । जब किसी के बारे में हम कुछ लिखते हैं तो इस बात का संदेह बना ही रहता है कि कोई ऐसी बात मेरी लेखनी से अछूता न रह जाए लेकिन मेरी इस माँ के हृदय में क्षमा का विशाल भंडार था तो निश्चय ही मेरी इस उच्श्रृंखलता को वो दूर से भी माफ करेंगी।

Wednesday 19 August 2020

29 july शाम को 6 बजे सासु माँ की इहलीला खत्म हो गई ।17 की रात को उन्हें पैरालिसिस अटैक हुआ था ।  शादी के लगभग 27 साल तक मैं उनके साथ रही ।पहले  पति की उसी शहर में नौकरी और बाद में व्यवसाय के कारण  अगर कुछ दिनों के कटिहार प्रवास  अथवा घूमने आदि को  जोड़ दिया जाए तो कुल मिला कर बीच के एकाध साल ही शायद हम अलग रहे होंगे ।मेरे हिसाब से जब इतने दिन लगातार सास बहू एक  साथ रहती हैं तो वो संबंध सास बहू का न होकर वो दो औरतों के बीच का संबंध हो जाता है । मनुष्य होने के नाते नहीं कह सकती कि उनमें कोई खामी नहीं थी या मैं ही गुणों की खान थी पर शायद किसी नए संबंध के प्रति उनकी प्रारंभिक सूझ बूझ थीं कि इतने वर्ष साथ रहने के बाद हम दोनों में बहस न के बराबर हुई । 
 वे याद आती है मेरी शादी से 5 साल पहले हुई दीदी की शादी के समय की बात ।दीदी की सास का देहांत जीजाजी के विद्यार्थी जीवन में ही हो गया था तो जब दीदी की शादी की बात चली तो पहले पहल माँ ने कहा कि यहां कैसे शादी होगी लड़के की तो माँ ही नहीं है ! बाद में वर की योग्यता को ध्यान में रखते हुए दीदी की शादी वही हुई लेकिन ये बात बिल्कुल सच है कि समय समय पर उनकी कमी सभी को खली। सास के रूप में पहली छवि मैंने अपनी दादी की देखी जो अत्यंत निरीह और भोली थी । बाद में मेरी शादी इस परिवार में हुई जो छोटा होते हुए भी संयुक्त होने के कारण काफी वृहत था ।आज मन फिर से वर्षों पहले की याद दिलाता है जब मैंने ससुराल में पहला कदम रखा था । ये कहना शायद मेरी अतिश्योक्ति होगी कि किसी भी नवब्याहता के मन में सास के लिए अत्यंत