Wednesday, 19 August 2020

29 july शाम को 6 बजे सासु माँ की इहलीला खत्म हो गई ।17 की रात को उन्हें पैरालिसिस अटैक हुआ था ।  शादी के लगभग 27 साल तक मैं उनके साथ रही ।पहले  पति की उसी शहर में नौकरी और बाद में व्यवसाय के कारण  अगर कुछ दिनों के कटिहार प्रवास  अथवा घूमने आदि को  जोड़ दिया जाए तो कुल मिला कर बीच के एकाध साल ही शायद हम अलग रहे होंगे ।मेरे हिसाब से जब इतने दिन लगातार सास बहू एक  साथ रहती हैं तो वो संबंध सास बहू का न होकर वो दो औरतों के बीच का संबंध हो जाता है । मनुष्य होने के नाते नहीं कह सकती कि उनमें कोई खामी नहीं थी या मैं ही गुणों की खान थी पर शायद किसी नए संबंध के प्रति उनकी प्रारंभिक सूझ बूझ थीं कि इतने वर्ष साथ रहने के बाद हम दोनों में बहस न के बराबर हुई । 
 वे याद आती है मेरी शादी से 5 साल पहले हुई दीदी की शादी के समय की बात ।दीदी की सास का देहांत जीजाजी के विद्यार्थी जीवन में ही हो गया था तो जब दीदी की शादी की बात चली तो पहले पहल माँ ने कहा कि यहां कैसे शादी होगी लड़के की तो माँ ही नहीं है ! बाद में वर की योग्यता को ध्यान में रखते हुए दीदी की शादी वही हुई लेकिन ये बात बिल्कुल सच है कि समय समय पर उनकी कमी सभी को खली। सास के रूप में पहली छवि मैंने अपनी दादी की देखी जो अत्यंत निरीह और भोली थी । बाद में मेरी शादी इस परिवार में हुई जो छोटा होते हुए भी संयुक्त होने के कारण काफी वृहत था ।आज मन फिर से वर्षों पहले की याद दिलाता है जब मैंने ससुराल में पहला कदम रखा था । ये कहना शायद मेरी अतिश्योक्ति होगी कि किसी भी नवब्याहता के मन में सास के लिए अत्यंत

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