Saturday 6 March 2021

पिछले दो ढाई साल हमारी जिंदगी के उथल पुथल वाले साल कहे जा सकते हैं ।कारण ढाई साल पहले पापा का देहांत और सात माह पहले सासु माँ का निधन ।जहां पापा के जाने से ऐसा लगा कि रांची नामक स्थान हमारे हाथों से धीरे धीरे फिसलती जा रही  है वही हर जाड़े गर्मी की छुट्टियों से पहले  सुबह आने वाली फोन की घंटी ने भी  बंद  कर दिया। वहीं सासु माँ के निधन  ने मुझे अचानक एक बड़ी जिम्मेदारी का अहसास करा दिया और मात्र चंद महीनों में काफी दुनियादारी सीखा दी। हालांकि माता पिता के जाने की कमी  से बेटे बेटी काफी व्यथित होते हैं लेकिन इस बारे में मेरी ये व्यक्तिगत  धारणा है कि पति या पत्नी के जाने से एक उम्र के बाद धीरे धीरे  बाल बच्चे अपनी दुनिया में मग्न हो जाते हैं और मात्र पति या पत्नी, जिसने अपने साथी को खोया है, ही प्रभावित होता है। संयुक्त परिवार के विघटित होने , शिक्षा के प्रसार और रोज़गार के कारण कमोबेश हर दूसरे परिवार में शुरू के बीस पचीस वर्ष के बाद घर में सिर्फ पति पत्नी ही बच जाते हैं जबकि पहले के समय में मात्र बेटी ही विवाह के बाद माता पिता से दूर होती थी और परिवार का आकार बड़ा होने के बेटों के नौकरी के कारण बाहर जाने के बाद भी एकाध भाई माता पिता के साथ बना ही। रहता था । ये तो सर्वविदित है कि संयुक्त परिवार के विघटित होने का खामियाजा बच्चों और बूढों को ही भुगतना पड़ता है । अब सवाल आता है वैसे बुजुर्गों का जो अपने उम्र के चौथेपन में अपने साथी को खो बैठते हैं और  अकेले नहीं रहने की हालत में अपने बच्चों के पास रहने जाते हैं । यहां मैं उन बुजुर्गों को सौभाग्यशाली कहूंगी जो अपने साथी का साथ छूटने के बावजूद  अपनी  ही  बिताई जगह में अपने बच्चों के साथ रहते हैं ।यहां बच्चों की ये लाचारी है कि वो अपनी नौकरी के कारण अपने माता पिता वाली जगह पर कुछ ही दिन रह सकते हैं । स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि कारणों से माता या अकेले पिता को अकेला नहीं छोड़ सकते हैं ।यहां हम सभी इस बात पर ही एकमत हो जाते हैं कि किसी भी वरिष्ठ को अकेला नहीं रहना चाहिए लेकिन इस जगह पर उन बुजुर्गों की स्थिति अपने जड़ से अलग किए गए पेड़ के सामान हो जाती है जो इस उम्र में अपने साथी को खोने के बाद उस जगह की यादों   से भी दूर हो जाते हैं । अपने ही बच्चों के साथ रहने के बाद भी उन्हें लगातार अपने बिताए समय और समाज की कमी महसूस होती हैं । 
इस परिस्थिति की अगर समीक्षा की जाए तो हर परिवार में कोई न कोई ऐसा सदस्य जिसे उस बुजुर्ग के आर्थिक सहायता की जरूरत हो मेरी जानकारी में कुछ लोगों ने इस प्रकार से बीच के रास्ते को अपनाया है लेकिन इसमें  बहुधा आपसी सामंजस्य की कमी से समस्या होती है। दूसरी ओर अगर हम गाँव के विषय मे सोच सकते हैं अगर कोई भी गाँव स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं से सम्पन्न हो तो वहां घरेलू सहायकों के साथ कई बुजुर्ग अपने जैसे लोगों के साथ रह सकते हैं ।अंत में  एक ऐसी जगह के बारे में कहना चाहूंगी जिसके बारे में आज लोग जाना तो दूर  सुनना तक पसंद नहीं करते हैं ।वृद्धाश्रम ,आज भले ही हम इसके संबंध में मात्र गलत धारणा पाले हुए हैं लेकिन हमारी  पीढ़ी के लोगों को इस अनछुए विषय में सोचना होगा ।अगर हम अन्य बातों में पश्चिम देशों का अनुकरण करेंगे तो हम इन विषयों पर भी सोचना होगा क्योंकि ये आने वाले समय की मांग है ।हालांकि कुछेक फिल्मों और किताबों में इसके अच्छे स्वरूप को भी दिखाया गया है लेकिन अब भी इसके बारे में ऐसी धारणा है कि सिर्फ बच्चों के दुर्दशा के कारण लोग यहां जाते हैं।  मात्र फिल्मों और समाज में फैले  नकारात्मक विचारों के कारण हम इसे दरकिनार नहीं कर सकते हैं ऐसी संस्थाएं ,निःसंतान  दंपत्तियों के साथ साथ  आने पीढ़ी के वैसे बुजुर्ग जिनके बच्चे रोज़गार के कारण उनसे दूर हैं  उनके लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बन सकती है ।