Monday 16 October 2017

आज मेरे मन में अपने जैसी महिलाओं के लिए थोड़े विचार आए हैं ।मेरे जैसी महिलाएं से मेरा मतलब उन महिलाओं से है जो नौकरी नहीं करती और खुद को होममेकर कहलाना पसंद करती हैं ।  इस उम्र में,कमोबेश सभी के बच्चे या तो कैरियर के कारण या तो दूर चले गए हैं या फिर अपनी खुद की जिंदगी में व्यस्त हैं ।पति अपने ऑफिस में अत्यधिक व्यस्त और लगभग एक या दो प्रतिशत के साथ ही सास ससुर  साथ होते हैं ।हैसियत के अनुसार घर में खाना बनाने से लेकर हर काम के लिए सहायक मौजूद ।अगर हमारी तरह छोटे शहर में हैं तो मेहमानों की आवाजाही होती है वरना महानगरों में सालों तक कोई मेहमान नहीं ।ऐसे में उन महिलाओं का समय सोशल मीडिया के साथ साथ शॉपिंग और किटी पार्टियों में बीतता है। मैं उन महिलाओं को दोष नहीं देना चाहती हूँ लेकिन ये इस तरह की जिंदगी की इतनी अभ्यस्त हो जाती हैं कि दिनों की बात छोड़ दें  इनके घर  में एक शाम भी  किसी निकटस्थ का आना काफी भारी साबित होता है । अगर हम कुछ समय के लिए अपनी मां या सास के कार्यशैली के विषय में सोचे तो निश्चय ही आधुनिक सुविधा से हीन जिंदगी हमारे जेहन में आएगी ।लकड़ी या कोयले से बने चूल्हे जिन पर खाना बनाने की प्लानिंग घंटे भर पहले करनी होती थी।सील बट्टे पर पिसा जाने वाला मसाला ,घंटों तक मेहनत करके की जाने वाली घर और कपड़े की सफाई और भी बहुत कुछ।हमारे मिथिला के गाँव में भले ही पूरा घर लालटेन और कभी कभी पेट्रोमैक्स से जगमगा जाए औरतों के हिस्से में अर्थात रसोई में एक ढिबरी ही होती थी जिसे लकड़ी के स्टैण्ड जिसे दियेट कहते थे ,आता था ।औऱ इतनी असुविधाओं के बाद  हर घर महीनों रहने वाले मेहमानों से पटा और तारीफ की बात ये किसी एक के मुंह पर शिकन तक नहीं।अब अगर अपने आज को देखे तो हर एक घर वाशिंग मशीन ,माइक्रोवेव ,मिक्सी के साथ साथ सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस है लेकिन फिर भी महिलाएं डिप्रेशन में जा रही हैं ।पहले की  औरतें जहां घर के नियमित काम के साथ साथ घंटे भर की मेहनत से पकवान तैयार करना, सिलना ,बुनना और अचार ,बड़ी जैसी हर मौसमी चीज़ों को तैयार रखती थीं अब वो हर चीज़ बाजार में सहज उपलब्ध है ।अगर निहायत ही व्यक्तिगत बात हो तो सैनेट्री नैपकिन जैसी सुविधा से भी हमारी पिछली पीढ़ी वंचित थी । यहां मेरा इन बातों को कहने का अभिप्राय ये बिल्कुल नहीं ये सुविधाए गलत हैं गलत तो हमारी जीवन शैली हो गई है जो हमें कामचोरी की ओर बढ़ा रही है ।इस गलत तरीके के जीवन शैली के कारण हम असमय ही मानसिक तनाव और शारीरिक बीमारियों का शिकार बन रहे हैं।रोज़ाना हम उपाय की तलाश में डॉक्टरों की सलाह ले रहे हैं। खुद को बिजी रखने की चाह में जरूरत के बिना शॉपिंग और पार्टियों की राह खोजते हैं जो एक हद तक ही संभव है ।तो हम विज्ञान को अपनी पीढ़ी के लिए वरदान के रूप में ही ले न कि अभिशाप के रूप में ।हर सिक्के के दो पहलू हैं जिसमें से हमें सकारात्मक को ही अपने लिए चुनना होगा ।