Friday 23 December 2016

कई लोगों को यह कहते सुना है कि आज कल की लगभग सभी पिक्चर्स की कहानी एक सी होती है कोई नयापन नहीं। बात तो  सही है लेकिन जहाँ तक मेरी अल्पबुद्धि काम करती है तो अगर जरा गौर से सोचें तो  सभी के जीवन में एक ही कहानी क्या बार बार दुहराई नहीं जा रही। अगर अपने स्कूली जीवन को याद करती हूँ तो कुछ पल के लिए ये बात जेहन से उतर जाती है किअगले साल तो बेटी के स्कूल का अंतिम साल होगा।

स्कूल मिशनरी होने के कारण  हमारे लिए क्रिसमस हमेशा से उतनी ही ख़ुशी लेकर आता था जितना कोई अन्य पर्व।समय बीता, फिर वही कहानी, आज मेरी बच्चियां क्रिसमस के नाम से काफी खुश, बचपन से और सच्चाई जानने के बाद भी (प्रत्येक बच्चे के लिए उसके पिता ही सांता क्लाउस की भूमिका निभाते हैं) अपने मन चाहे उपहार के लिए  सांता क्लाउस का काफी बेसब्री से प्रतीक्षा करती हैं, एक ऐसा काल्पनिक व्यक्ति जो उत्तरी ध्रुव में काफी सारे बौनों और अपनी बीवी के साथ रहता है और वहाँ एक खिलौनों की फैक्ट्री है। उन खिलौनों को सांता क्रिसमस की रात अपने रेनडिअर घोड़े पर सवार होकर पूरी दुनिया के बच्चों को उपहार स्वरूप देता है।

मेरी बड़ी बेटी क्रिसमस वाले दिन अपने सेमिस्टर ख़त्म होने पर घर आ रही है, छोटी बहन को जितनी ख़ुशी उसके आने से है उसकी दुगुनी जिज्ञासा अपने लिए आने वाले छोटे बड़े सामानों के लिए है जो मुम्बई से उसकी दीदी लाने वाली है ।कई जोड़ी चप्पले, पेंसिल बॉक्स ,हेयर बैंड और न जाने क्या क्या? इस साल क्रिसमस पर शायद उसकी बहन ही सांता क्लाउस की तरह उसके लिए  उपहार लाने वाली है। जब मेरे जेहन में ये बात आई तो फिर लगा क़ि कभी ऐसे ही मैं अपने दिल्ली में पढ़ने वाले भइया के आने का और उसके लाए छोटे छोटे सामानों का बेसब्री से इंतज़ार  करती थी। तो क्या फर्क है? है न वही कहानी !!!