आज से बहुत पहले ही कभी किसी मंत्री ने अपने देश के भ्रष्ट शासन व्यवस्था को देखते हुए इस बात पर दुःख व्यक्त किया था कि अगर हमारे देश में केंद्र सरकार 1 रूपए मंजूर करती है तो उस व्यक्ति तक पहुँचते पहुँचते वो रकम मात्र 19 पैसे रह जाती है। ये आंकलन बहुत पहले का है तो निश्चय ही ये 19 पैसे वाली रकम घटकर5 पैसे तक रह गयी होगी क्योंकि हमारे देश में इस तरह की समस्या तो दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हैं। खैर, इस मुद्दे पर मेरी चिंता यह मापने की नहीं है कि भ्रष्टाचार कितनी बढ़ी है। उसके लिए काफी सरकारी विभाग और कर्मचारी तैनात हैं। यहाँ मेरी चिंता समाज में बढ़ते हुए बदलाव की ओर है। हाल के कुछ वर्षो में समाज में पैसे की इज्जत बहुत तेजी से बढ़ी है ,लोगो को इस बात से कोई मतलब नहीं कि अमुक व्यक्ति के पास पैसा कहाँ से आया या उसने किस तरह से धन कमाया . आज अगर किसी के पास पैसा है तो उसकी समाज में प्रतिष्ठा है। जहाँ पहले लोग बेईमान लोगो को घूसखोर ,चोर आदि नामो से संबोधित करते थे ,वही अब उनकी इज्जत समाज में बढ़ती जा रही है। एक ही पोस्ट पर बेईमान और ईमानदार कर्मचारी के रहन सहन में अंतर को समाज प्रशंसा नहीं हिकारत की दृष्टि से देखता है।अपने इस प्रकार की भावना के द्वारा हम समाज में अनेक कुरीतियों को बढ़ावा दे रहे हैं। आज दहेज़ के कारण अनेक गुणी लड़कियां अपने योग्य वर से वंचित रह जाती है.न सिर्फ दहेज़ बल्कि जीवन के हर एक मोड़ पर नाकाबिल व्यक्ति किसी योग्य की जगह को पैसे के सहारे उस जगह को हासिल कर लेता है ,फिर वो चाहे नर्सरी क्लास की सीट हो या कोई महंगा कॉलेज। अगर कोई भौतिक सुविधओं से वंचित रह कर भी समाज में अपने लिए इज़्ज़त हासिल कर लेता है तो वो उसके लिए आत्मसंतोष की बात होती है। लेकिन आज के समाज ने अपने बदलते हुए रूप से एक ईमानदार व्यक्ति को बजाय अतिरिक्त इज्जत के हिकारत ही दिया है।तो ऐसे में किसी भी मजबूत से मजबूत शख्स के पथविचलित होने में कोई आश्चर्य की बात नहीं। हमने बचपन से एक ही बात सुनी थी कि जिंदगी में पैसा बहुत अहम् स्थान रखता है लेकिन पैसे से भी बड़ी चीज़ इज्जत है क्योंकि पैसा तो एक स्मगलर भी कमा लेता है। आज भी ये बात 100 में से 5 % लोगो में मौजूद है भले ही हम न्यूज़ और अखबारों रोज भ्रष्ट अधिकारियों की लंबी लिस्ट देखते है लेकिन यदा कदा श्री अशोक खोसला (आई .ए .एस . अधिकारी ) जैसों को भी देख लेते है जिन्होंने अपनी ईमानदारी का मूल्य 19 साल में 20 ट्रांसफर के द्वारा चुकाया। मेरा तो इस बारे में यह मानना है कि भले ही कोई अपने बुरे कर्मो की सजा संसार की अदालत में न पाए लेकिन वो सबसे बड़ी अदालत से नहीं बच सकता। अपने नैनीताल के भ्रमण में मैंने वहाँ एक ऐसे मंदिर को देखा जो न्याय के देवता गोलुमहाराज कहे जाते है उस मंदिर में अनगिनत पर्चियां टंगी हुई थी। कहते है कि जिनकी फ़रियाद कोई नहीं सुनता उसकी अपील गोलुदेव सुनते हैं। उस मंदिर में जिनकी फ़रियाद पूरी होती है वो अपनी सामर्थ्य के अनुसार घंटे का चढ़ावा चढ़ाता है। बुरे कर्मो का फल देर सवेर तो मिलता ही है इसका प्रमाण मुझे उस मंदिर में ही मिला क्योंकि मैंने वहाँ न सिर्फ अनगिनत पर्चियां ही देखी बल्कि उतनी ही मात्रा में असंख्य घंटे और घंटियाँ भी देखी।
Monday 26 September 2016
Sunday 18 September 2016
किशोरवय बच्चे
आधुनिकीकरण के कारण हमने बहुत सी चीज़ों को पाने के साथ काफी कुछ खोया भी है। एक समस्या मुझे काफी व्यथित करती है वो है हमारे किशोर होते हुए बच्चो की समस्या। क्यों आज कल के बच्चे इतने भावुक होते जा रहे हैं।आए दिन बच्चों के क्रियाकलाप को देखकर हम दंग रह जाते है ।कई बार टीवी,कई बार सिनेमा आदि से प्रभावित होकर वो ऐसे कदम उठा लेते है जिनकी कल्पना भी मुश्किल थी। पहले जहाँ घर में एक साथ कितने ही बच्चे रहते थे वही परिवार के एकल होने के कारण उनकी संख्या काफी कम हो गयी है। साथ ही परिवार में बच्चों की संख्या काफी कम हो गयी है ।पहले की तुलना में माँ बाप उनके खाने पीने से लेकर हर चीज़ को लेकर विशेष सतर्क हो गए है लेकिन बच्चे और ज्यादा आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। मुझे ऐसा लगता है कि जैसे जैसे माँ बाप का बच्चों को सुविधा देने का ग्राफ बढ़ता जा रहा है उसी अनुपात में बच्चे अधिक सुविधा पसंद होते जा रहे हैं।मुझे न सिर्फ अपनी बल्कि अपने साथ के सभी बच्चों की खाने के प्रति ऐसी कोई बात याद नहीं कि अमुक बच्चे को अमुक चीज़ नहीं खानी है । पहले प्रायः ये बात थी क़ि हर खाने वाली चीज़ खानी है ।लेकिन अब हर घर में हर माँ बच्चे की पसंद और नापसंद से परेशान है ।अगर घर दो बच्चे है तो एक बिस्कुट में भी विविधता है ।अब की पीढ़ी को किसी भी काम में टोकना पसंद नहीं है ।चाहे वो दोस्तों की बात हो या उनके कैरियर की ।वो अपना फैसला खुद लेते हैं ।ठीक है आज के बच्चे हमारी तुलना में काफी जागरूक हैं लेकिन गलती होने की संभावना तो रहती ही है ।तो मैं एक प्रश्न करना चाहती हूँ कि उम्र के इस पड़ाव पर अगर माता पिता न टोके गुरुजन नहीं टोकें तो वो कौन है जो गलत सही की पहचान करवा सके ।आज किसी भी जुर्म में अगर मुजरिमो की शिनाख़्त की जाए तो ज्यादातर मुजरिम नाबालिग होते है और कई बार अच्छे और रसूखदार परिवार के ।हैरानी की बात ये है कि कई बार ये अपराध मौज मस्ती या गर्ल फ्रेंड को इंप्रेस करने के लिए होती है।इस मामले में लड़किया भी पीछे नहीं है । जहां तक हार्मोनल बदलाव की बात है वो तो हर पीढ़ी के साथ हुआ होगा ।किसी एक बच्चे या किसी एक परिवार नहीं मेरी चिन्ता तो समाज के प्रति है।और तो और अगर एक बात गौर की जाए तो आज के बच्चों ने तो कुदरत के साथ भी दो दो हाथ कर लिया है ।जहाँ हमारे लिए सुबह छह बजे अनिवार्य रूप से बिस्तर छोड़ने की पाबन्दी होती थी वही अब तो सभी बच्चों ने रतजगे का नियम बना लिया है ।जाहिर है जब पूरी रात जगे रहेंगे तो सुबह छुट्टी वाले दिन हर घर में बच्चे सोये ही मिलेंगे ।फिर भी आज की बिंदास पीढ़ी अच्छी ही लगती है ,हर बच्चा चाहे कितना ही स्वछन्द हो ,चाहे मोबाइल पर कितना ही वक़्त बिताए एक बात मुझे इनकी बड़ी ही प्रभावित करती है वो है इनके भविष्य की योजना ।जिस समय हमने कुछ भी सोचा न था उसी अल्पायु में बच्चे न सिर्फ कैरियर का फैसला कर लेते है बल्कि उसके प्रति पूर्ण समर्पित भी हो जाते हैं ।
Wednesday 14 September 2016
हिंदी दिवस
जिस देश की राष्ट्रभाषा हिंदी हो उस देश में हिंदी दिवस अलग से मनाया जाए ये बात दुर्भाग्यपूर्ण किन्तु सच है। ये बात आज मेरी सखी ने हिंदी दिवस के अवसर पर कहा। क्या लगता है आपको हम देश में हिंदी की कितनी इज़्ज़त करते है ? मेरी नज़र में इस तरह के किसी भी दिवस का मनाया जाना एक ढकोसला के अलावा कुछ नहीं। अखबारों में दो चार हिंदी से समन्धित रचनाओं प्रकाशित किया गया। हिंदी के उत्थान की भाषणबाजी हुई और बात खत्म।बैंक और दूसरे सरकारी जगहों पर हिंदी को बढ़ावा देने जैसी तमाम बातें लिखी रहती हैं लेकिन बस लिखी ही रहती है ।क्यों हमारी मानसिकता ऐसी हो गयी है कि हम अंग्रेजी बोलने वाले के प्रति एक अतिरिक्त इज़्ज़त की भावना रखते हैं। हमारे बच्चे जब हिंदी के महीने या हिंदी की गिनती गिन नहीं पाते तो हमारी शान में चार चाँद लग जाते हैं ।क्यों हमारे हिंदी सिनेमा से पैसा कमाने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियां सार्वजनिक जगहों पर अपना भाषण अंग्रेजी में करते हैं।उस समय मैं अपने आप को लज्जित महसूस करती हूँ जब सरकारी दफ्तर और सड़को पर यातायात की जानकारी के लिए कई जगपर हिंदी में लिखे हिज्जे भी गलत होते हैं। ऐसी भावना किसी भी भाषा के लिए घातक है। हमें तो गर्व होना चाहिए कि हमारे देश में ऐसे लेखक और कवि हुए हैं जिनकी तमाम पढाई अंग्रेजी भाषा के लिए हुई हो और पीढ़ियों तक उन्हें हिंदी की कविताओं के लिए जाना जाए ।जी हाँ स्वर्गीय हरिवंश रॉय बच्चन एक ऐसी ही शख्सियत थे। ऐसा नहीं है कि स्वर्गीय बच्चन जी के बाद ऐसे लोग नहीं होते ।आज भी हमारे एक भाई श्री सुनील झा ऐसी ही शख्सियत है जिनकी पढाई तो अंग्रेजी के शीर्ष तक हुई लेकिन हिंदी और अंग्रेजी पर उनका समानाधिकार है ।जरूरत है सिर्फ सोच बदलने की।
Wednesday 7 September 2016
रक्षा बंधन
पिछले महीने से लेकरआनेवाले दो महीने अपने साथ मानों त्योहारों की बाढ़ लेकर आता है। सावन पूर्णिमा के दिन राखी का पर्व भाई बहन के आपसी प्रेम को दर्शाता है. राखी का त्यौहार हमारे मिथिला में आज भी उतना महत्व नहीं रखता जितना की भाई दूज। फिर भी हमने तो राखी बचपन से मनाई है तो जाहिर है उस दिन तो भाई को याद करके दिन में कई बारआँखें गीली हो उठती है। अब बात आती है उन बच्चो की जिनकी या तो बहन नहीं है या फिर भाई नहीं है। यहाँ मेरा अभिप्राय उन बच्चो से है जो या तो दो भाई है या फिर दो बहने।अब तो हमारे समाज में बच्चो की संख्या एक या दो तक ही सिमट कर रह गयी है जो की जमाने को देखते हुए उचित है। ऐसे में वे बच्चे यकीनन भाई या बहन की कमी उनसे भी ज्यादा महसूस करते है जो परिस्थितिवश अपने सहोदरों से दूर है। प्रत्येक वर्ष जब राखी की छुट्टियों के बाद मेरे बच्चियां स्कूल से आती तो राखी वाले दिन से भी ज्यादा उदास हो जाती। कारण उस दिन सभी लड़किया अपने अपने भाइयो के दिए गिफ्ट का बखान करती। बाद के कुछ वर्षो में दोनों बहनों में एक समझौता हो गया कि नौकरी करने के बाद बड़ी बहन छोटी को गिफ्ट देगी। इस साल राखी वाले दिन सुबह से दोनों बहनों ने फ़ोन पर रोज की बात चीत की। पूरे दिन के बीतने के बाद अचानक जब रात के नौ बजे घंटी बजती है और domino's से पिज़्ज़ा लेकर डिलेवरी बॉय हमारे घर आता है तो हम सभी इसलिए आश्चर्यचकित हो जाते है क्योंकि इसे तो हम में से किसी ने आर्डर ही नहीं किया। तब ये पता चलता है कि ये एक अग्रजा के द्वारा अपनी अनुजा को दिया राखी का गिफ्ट है। अब तो न बादशाह हुमायूं और रानी कर्णावती का ज़माना रहा और न ही भाई बहन की रक्षा युद्ध कर के करे ऐसी कोई बात है। ये तो एक स्नेह की डोर है जो रिश्तो में बंधी है। फिर चाहे दो बहनों के बीच हो या दो भाईयों के बीच।
Monday 5 September 2016
गुरु की महिमा
डॉ राधाकृष्णन के जन्म दिवस को हम सभी शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। ये तो सर्वविदित है कि बच्चे की पहली गुरु उसकी माँ होती है। लेकिन ये बात सिर्फ छुटपन की नहीं है मेरे अनुसार माँ तो पूरी जिंदगी ही किसी के व्यक्त्वि निर्माण में अहम् भूमिका निभाती हैं। ससुराल जाने के पहले माँ की छोटी सी सीख किसी लड़की की वैवाहिक जिंदगी में काफी महत्व रखता है। अगर मैं अपनी बात करूँ तो स्कूली जीवन से लेकर कॉलेज तक मैं अपनी टीचरो से काफी प्रभावित रही। सातवीं क्लास से लेकर दसवी तक सिस्टर गुलाब ने स और श के अंतर को कुछ इस तरह हमारे अंदर कूट कूट कर भर दिया कि वो गलती तो मैं ही नहीं उनकी पढाई शायद ही कोई लड़की करें। वो इस तरह से ब्लैक बोर्ड के दोनों सिरो पर स और श की लिखावट तो नींद में भी नहीं भूल सकती। कॉलेज का अनुशासन स्कूल के मुकाबले थोड़ा ढ़ीला था लेकिन पढ़ाई के साथ हमने काफी मस्ती भी की। ये बात तो मात्र हमारे पढाई से जुड़ी है।जब छोटी थी तो अपने मिश्रा चाचा के मुँह से न सिर्फ पंचतंत्र जैसी मनोरंजक कहानियों को सुना बल्कि उसने कहा था जैसी मार्मिक कहानियो की भी सीख ली है. लेकिन मेरे मन में एक बात बार बार आती है की क्या गुरु का महत्व मात्र पढ़ने लिखने तक ही सीमित है? हमारे जीवन में उनका क्या जिन्होंने हम व्यवहारिक ज्ञान दिया है. मेरी नज़र में तो मेरे ससुराल के वो रसोइया के भी उतने ही पूजनीय है जिन्होंने न जाने कितनी बार मेरी गलतियों सुधारा। मैं उस ड्राइवर को भी गुरु ही मानती हूँ जिसने मुझ अनाड़ी को गाड़ी सिखाने की हिम्मत दिखाई, कैसे भूल जाऊ अपनी काम वाली अनपढ़ बाई संजू को जो उम्र में मुझ से काफी छोटी होने के बाद मुझे रोज़ एक नई बात सीखा देती है. आज कल तो मेरी सबसे बड़ी टीचर मेरी बेटियां है जो कंप्यूटर और मोबाइल की रोज़ होने वाली परेशानियों से मुझे उबारती हैं। गुरु तो गुरु है फिर चाहे वो पढ़ा हो या न हो। रसोई से लेकर व्यापार तक में गुरु का महत्व अतुलनीय है। तो गुरु को सिर्फ पढाई तक ही क्यों सीमित करें।
इस बात की चर्चा में एक व्यक्ति को नहीं भूल सकती मेरे स्वर्गीय कका। कका मेरी ही नहीं हम तीनो भाई बहन का एक अविस्मरणीय आद्याय है जिसे हम अपनी जिंदगी में कभी नहीं भूल सकते। मेरे चाचा जिन्हें हम कका कहते थे अत्यंत मेधावी छात्र और CCL में उच्च पदस्थ इंजीनियर थे। मेरी बालपन की याद में वो BIT SINDRI में पढ़ते थे। छुट्टियों में जब भी घर आते हमारी पढाई देखते। मुझे याद है मैं जब पढ़ते पढ़ते गुस्सा हो जाती तो मनुहार करते। न जाने कितनी बार उन्होंने हमे माँ की डॉट और फटकार से बचाया है। जब कका ने नौकरी की शरुवात की तो हम प्रायः उनके पास जाते। उनके अधीनस्थ कर्मचारियों को आराम की जिंदगी जीते हुए देखती वही काकी जरूरत पड़ने पर भी एक जीप को तरसती। वो ऑफिस की गाड़ी है और उसका इस्तेमाल मैं अपने काम के लिए नहीं कर सकता ये हमारे घर का एक अलिखित नियम था । चूँकि वो हमारे लिए एक आदर्श थे तो ये ईमानदारी की बात बालपन से ही हमारे मन में घर कर गयी। कहते हैं अत्यंत मेधावी लोगो की आयु कम होती हैं तो कका काफी काम उम्र में चले गए लेकिन अपनी छोटी सी जिंदगी काफी कुछ सीखा गए। आज के इस खास दिन पर अपने समस्त गुरुजनों को मेरा शत शत नमन।
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