जिस देश की राष्ट्रभाषा हिंदी हो उस देश में हिंदी दिवस अलग से मनाया जाए ये बात दुर्भाग्यपूर्ण किन्तु सच है। ये बात आज मेरी सखी ने हिंदी दिवस के अवसर पर कहा। क्या लगता है आपको हम देश में हिंदी की कितनी इज़्ज़त करते है ? मेरी नज़र में इस तरह के किसी भी दिवस का मनाया जाना एक ढकोसला के अलावा कुछ नहीं। अखबारों में दो चार हिंदी से समन्धित रचनाओं प्रकाशित किया गया। हिंदी के उत्थान की भाषणबाजी हुई और बात खत्म।बैंक और दूसरे सरकारी जगहों पर हिंदी को बढ़ावा देने जैसी तमाम बातें लिखी रहती हैं लेकिन बस लिखी ही रहती है ।क्यों हमारी मानसिकता ऐसी हो गयी है कि हम अंग्रेजी बोलने वाले के प्रति एक अतिरिक्त इज़्ज़त की भावना रखते हैं। हमारे बच्चे जब हिंदी के महीने या हिंदी की गिनती गिन नहीं पाते तो हमारी शान में चार चाँद लग जाते हैं ।क्यों हमारे हिंदी सिनेमा से पैसा कमाने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियां सार्वजनिक जगहों पर अपना भाषण अंग्रेजी में करते हैं।उस समय मैं अपने आप को लज्जित महसूस करती हूँ जब सरकारी दफ्तर और सड़को पर यातायात की जानकारी के लिए कई जगपर हिंदी में लिखे हिज्जे भी गलत होते हैं। ऐसी भावना किसी भी भाषा के लिए घातक है। हमें तो गर्व होना चाहिए कि हमारे देश में ऐसे लेखक और कवि हुए हैं जिनकी तमाम पढाई अंग्रेजी भाषा के लिए हुई हो और पीढ़ियों तक उन्हें हिंदी की कविताओं के लिए जाना जाए ।जी हाँ स्वर्गीय हरिवंश रॉय बच्चन एक ऐसी ही शख्सियत थे। ऐसा नहीं है कि स्वर्गीय बच्चन जी के बाद ऐसे लोग नहीं होते ।आज भी हमारे एक भाई श्री सुनील झा ऐसी ही शख्सियत है जिनकी पढाई तो अंग्रेजी के शीर्ष तक हुई लेकिन हिंदी और अंग्रेजी पर उनका समानाधिकार है ।जरूरत है सिर्फ सोच बदलने की।
No comments:
Post a Comment