Friday 17 July 2020

आज पापा की दूसरी बरखी है ।कोरोना ने कुछ ऐसा कहर ढाया कि घर पर किसी भी ब्राह्मण को बुला कर खिलाने की बात सोची तक नहीं जा सकती है ।हम दोनों बहनों के लिए तो हमारे मिथिला के अनुसार  दामाद ही 11 के बराबर की तर्ज पर कोई दिक्कत नहीं पर कोरोना के हॉटस्पॉट बना मुंबई में रहने वाले भाई के लिए किसी बाहरी को बुलाना असंभव है तो मन को शांत करने के लिए उसने दान धर्म का सहारा लिया। वैसे भी हम  मनुष्यों को ही इस तरह की बातें परेशान करती हैं बाकी देवता या पितर हमारी सभी समस्याओं को समझते हैं । किसी भी अनुष्ठान को अपनी शारीरिक और आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार ही  करना पापा के सिद्धांत में था फिर चाहे वो धार्मिक हो या श्राद्ध कर्म ।याद आता है तीन चार साल पहले जबकि भयंकर गर्मी में रांची के घर में नए बोरिंग के साथ सुम्मेरसैबले पंप लगाने की जरूरत पड़ी ।पापा जब तक अचानक आए हुए बड़े खर्च का हिसाब लगाते भइया ने नए बोरिंग के साथ नया मोटर लगवा दिया बात बहुत छोटी सी है पर पापा हमेशा हमसे कहा करते थे कि कहते हैं कि बेटा बाप को मरने के बाद पानी देकर तृप्त करता है  लेकिन आलोक  ने मुझे मेरी जिंदगी में ही पर्याप्त पानी दे देकर तृप्त कर दिया। पापा अपनी जिंदगी के अंतिम  एक साल में पटना के हृदय रोग विशेषज्ञ के इलाज में थे मुझे  बहुत से लोगों ने कहा कि तुमने पापा को डॉक्टर से दिखा कर आलोक का काम कर दिया ।आज मैं उन सभी लोग जिन्हें बेटे और बेटी दोनों हैं ,उनसे  एक प्रश्न पूछती हूँ कि माता पिता की जिम्मेदारी क्या सिर्फ बेटे की हैं अथवा अगर बेटी अपने माता पिता की कोई सेवा करें  तो क्या वो अपने भाई के ऊपर कोई उपकार कर रही है ?

Saturday 11 July 2020

मार्च के अंतिम सफ्ताह से हमारे देश में लोकडौन की अधिकारिक घोषणा की गई । नतीजतन सभी काम बंद हो गए और एक तरह से छुट्टियों की स्थिति आ गई । अब जबकि चारों ओर से सिर्फ नकारात्मक खबर ही आ रही थी तो इसे कुछ सकारात्मक रूप देते हुए अपने आप से मैंने लोकडौन के समय कुछ ऐसे कामों को करने का वादा किया जो मैं रोज़ की दिनचर्या में नहीं कर पाती थी ।सबसे पहले नज़र उन किताबों की ओर गई ,अकसर मैं पुस्तक मेले या अन्य किताब की दुकान पर किताब खरीदते वक़्त एक साथ चार पाँच खरीद लेती हूं और बाद में पढ़ते समय एकाध को भूल जाती हूँ ,मैंने इस अवधि में उन किताबों को खोज कर पढ़ने की सोची ।उसके बाद घर के कई ऐसे काम जो मैं भाग दौड़ में नहीं कर पाती हूँ उन्हें पति और बच्चों की मदद से करना मेरे दूसरे नम्बर पर था ।मेरी कई दोस्त या रिश्तेदार जिनके कामकाजी होने के कारण प्राय महीनों बात नहीं हो पाती है उन्हें फोन कर फिर से यादें ताज़ी करने की सोची पर आज की तारीख में एक नहीं दो दो लोकडौन खत्म हो गए बीच में दिनचर्या सामान्य होने के बाद फिर से  लोकडौन लगा दिया गया और मेरी स्पेशल लिस्ट ज्यों की त्यों रही ,हालांकि मैंने उनमें से कई किताबों को पढ़ा पर सबों को नहीं । उनमें से कई काम हुए पर सब के सब नहीं मेरे हिसाब से इन सबका का कारण समय की कमी या काम की अधिकता नहीं बल्कि मेरी टालने की प्रवृत्ति है । आप में से कई लोगों को शायद मेरे जैसी एकाध प्रवृत्ति हो और अक्सर काम को कल पर टालते हो ।जब तक ये आदत घरेलू कामों तक रहता है तब तक हमें एक झुंझलाहट भर होती है लेकिन जब ये आदत ऑफिस या कार्यालय के जरूरी काम पर पहुंच जाता है तो समस्या गंभीर हो जाती है । हम किसी भी काम के अंतिम तारीख का इंतजार क्यों करे चाहे वो बिजली बिल या insurance की प्रीमियम भरने की तारीख  हो या बैंक के एकाउंट सबंधित कार्य । कभी कभी इन कागजों संबंधी छोटी सी लापरवाही हमें बड़ा नुकसान दे देती है और हम इस आदत के कारण परेशानी में पड़ जाते हैं और एक के बदले दो के चक्कर में पड़ जाते हैं फिर चाहे वो नकद के रूप में हो या मेहनत के रूप में हो । कोई भी बड़ी समस्या तभी बड़ी हो जाती है जब उसे छोटे रहने तक ध्यान नहीं दिया जाता है । तो " काल करे सो आज कर आज करे सो अब ,पल में प्रलय आएगा बहुरि करेगा कब "को बदल कर "आज करे सो कल कर ,कल करें सो परसों इतनी क्या है जल्दी पड़ी अभी पड़े है बरसों " न करें उसे उसके मूल रूप में ही रहने दें ।

Wednesday 8 July 2020

19जुलाई को पापा की दूसरी बरखी है इस कोरोना के कहर को देखते हुए घर में किसी भी बाहरी व्यक्ति को बुलाने की बात सोचना भी मना है ।हम दोनों बहन तो निश्चिंत है क्योंकि हमारे घर में ही जीमने के लिए ब्राह्मण मौजूद हैं ।समस्या तो भाई के लिए है क्योंकि अब वहां पूर्ण रूप से अब भी lockddown है और स्थिति बेहद खराब है खैर उसके लिए कोई न कोई रास्ता निकल ही जाएगा क्योंकि परिस्थिति हम आप जैसे लोग नहीं समझते हैं देवता और पितर हर परेशानी में हमारे साथ है ऐसा मेरा विश्वास है ।पापा की बरखी के साथ मुझे पापा के एक साल पहले बीमार होने की बात याद आई ।पापा की तबीयत ठीक नहीं ।ये सुन के मैं उन्हें देखने रांची गई ।संजोग की बात थी उसी समय मुंबई में जीजाजी की एक कठिन सर्जरी होनी थी इसलिए दोनों भाई बहन का वहां से आना मुश्किल था ।मैंने जब पापा की स्थिति को देखते मैं अपने साथ पटना ले आई । कुशल डॉक्टर के चिकित्सा में पापा महीने भर में ही ठीक हो गए लेकिन साथ ही डॉक्टर ने जल्दी ही इनके महाप्रस्थान की भविष्यवाणी भी कर दी जिंदगी देना किसी के हाथ में नहीं पर उसके बाद की एक साल की जिंदगी कुछ हिदायतों के साथ उनके लिए आसान हो गई । अब यहां बात आती है लोगों की ।हर दूसरा व्यक्ति मुझसे ये कह रहा था कि तुमने आलोक (मेरा भाई ) का काम कर दिया । अरे ऐसा क्यों क्या माता पिता के प्रति मेरा कोई

Sunday 5 July 2020

इन बड़ी हस्तियों के साथ ही हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपने जरिए कुछ अधिक तो नहीं पर दस पंद्रह लोगों को रोजगार दिया है यहां मैं जिक्र करना चाहूंगी कि अपने पति श्री अशोक झा का । लगभग17 साल kitply और Greenply जैसी प्रतिष्टित कंपनियों में काम करने के बाद इन्होंने छोटी सी राशि सेअपना काम शुरू किया । कंपनियों में काम करने के दरम्यान इन्होंने कई नए लोगों को सफल व्यापार करवाया था शायद इसी कारण उन्हें इस तरह के काम की हिम्मत मिली । पिछले 10वर्षों से असम से ply के ट्रक मंगा कर पूरे बिहार में थोक विक्रेता के रूप में काम कर रहे हैं ।समय के साथ इसमें sunmica ,fevicol जुड़ते गए आदि के ।इसी दिशा में धीरे धीरे आगे कदम बढ़ाते हुए शौकिया तौर पर लोगों के इंटीरियर का काम तो विगत कई वर्षों से कर ही रहे थे उसे पिछले एक साल पहले दुकान का रूप दिया ।इनके द्वारा रोज़गार पाने वालों में ट्रांसपोर्ट वाले ,ठेला वाले ,बढ़ई औरअपने दुकान में काम करने वाले लोग हैं ।हालांकि हमारे ग्राहकों की संख्या चुनिंदा ही है शायद इसका कारण इनका quality product की वजह से पड़ने वाला अधिक मूल्य है लेकिन हमारे यहां ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जिन्होंने ने 5 से 7 साल पहले भी कभी चीज़ खरीदी हो ।

Friday 3 July 2020

श्रीमती वीना उपाध्याय ,यही नाम है जो खुद भी उच्च शिक्षित और एक IPS अधिकारी की पत्नी होते हुए छोटे तबके की महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने का सफल संचालन कर  रही हैं ।श्रीमती उपाध्याय से मैं पिछले 8-10 सालों मेरी बेटी की अभिन्न सखी की माँ के रूप में परिचित थी जो ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए काम करती थीं । इस लोकडौन के बाद जब मेरी बेटी मुंबई से आई तब मैंने वीनाजी के कार्यों की गंभीरता को महसूस किया ।आज बिहार की कला के नाम पर हमारे जेहेन में जो नाम आता है वो है  मधुबनी पेंटिंग और भागलपुर के सिल्क उद्योग ।लेकिन वीनाजी का कहना है मेरे हिसाब से बिहार एक ऐसा राज्य है जिसके हर जिले में हस्तकला छुपी हुई है फिर चाहे वो पटना हो, बिहारशरीफ हो ,नालंदा हो ,बेगूसराय ही हो । वर्तमान में वीनाजी  एक संस्था से जुड़ी है लेकिन उनका काम सिर्फ अन्य NGO की तरह ऑफिस तक ही सीमित नहीं है । इन बुनकर और अन्य हस्तकला के कारीगरों का पेट तो पूरे साल में एक दो मेले या प्रदर्शनी की आमदनी से तो नहीं भरता इसके अलावा जो बिक्री होती है उसका अधिकांश भाग बिचैलियों के हाथों में चला जाता है रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी परिणामस्वरूप ये लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए ऐसी स्थिति में वीनाजी जैसे अन्य लोगों ने इन कारीगरों को ऑनलाइन ट्रेंड करने की मुहिम उठाई इस काम में उन्हें सही ढंग से फोटोशूट करने से लेकर उचित मूल्य रखने के साथ साथ कुछ इस से ट्रेंड किया जा रहा है जिससे कोरोना संकट के बाद भी उनका भविष्य ठीक रहे ।