Friday 30 October 2020

आज मैंने पेपर में श्री रघुरामन का एक पोस्ट पढ़ा । किसी नए बिज़नेस को शुरू करने की सलाह देता हुआ ये पोस्ट बाएं हाथ से काम करनेवालों के बारे में था ।  बाएं हाथ से लिखना या काम करने में कोई बुराई नहीं होती पर लिखने या काम करते हुए सामने वाला एक पल के लिए आप पर एक नज़र डाल ही देता है ।आज इस पोस्ट को पढ़कर मैं अपने बचपन में लौट गई जब मेरा बाएं हाथ से लिखना या काम करना सबके लिए  कौतुक की बात हुआ करती थी ।घर में भले ही इस बात के लिए कोई नहीं टोकता पर स्कूल में कम से कम प्राइमरी कक्षा तक तो मेरी हर दूसरी सहपाठिनी मुझसे बस एक बार दाहिने हाथ से लिखने की जिद करती और मेरी असमर्थता पर आश्चर्य करती ।बाद में जब मैं उच्च क्लास में पहुंच गई तो लड़कियों के ऐसे करने पर अमिताभ बच्चन ,सचिन तेंदुलकर 

Thursday 15 October 2020

पूजा संबंधी एकटा आउर जिज्ञासा ,पूजा कत्ती काल करि ? किछ लोक क पूजा म मोन लगैत छै लेकिन हमरा बुझने एकर निर्धारण वयस ,समय आ स्थिति पर छै ।मिथिला म बियाह संगे गौरी क पूजा होइ छै ओना कत्ते गोटा  बियाह स पहिने स इ पूजा करै छै लेकिन बियाह क बाद एकर अनिवार्यता होए छै अर्थात कोनो कनिया बियाह क बाद नहा क पहिने गौरी क पूजा करू तखन किछ खाओ ओना परिस्थितिवश कोई आन ओइ गौरीक पूजा करथिन अर्थात ओ गौरी अपूज्य न रहती ।अई म हम अपन अनुभव share करै छी ज बियाह क तुरंत बाद ,पहिने स पूजा करै क अभ्यास नै रहे तै जोर स भूख लागि जाए आ चाह क अभ्यास नै रहे बेसी काल सासु माँ कहैत जे अहा खा लिअ हम अहा क गौरी क पूजा कअ देब ।परिवार पैघ रहे त कएक बेर हुनका लोक टोकि डाइत रहेन कि अहा किया हुनकर पूजा करै  छियैन त ओ कहथिन ज अखन बच्चा छैथ आ बच्चा बुच्ची कम्मे पूजा करे छै अवस्था हेतैन त अपने करअ लगती ।ओना हमर अलावा अगर कोनो कम वयस क लोक क बेसी पूजा करैत देखथिन त कहथिन जे अखन अहा क वयस एतेक पूजा करै क नै अछि परिवार क देखब पहिल पूजा अछि । जहां तकअपन नैहर स कोनो पूजा सीखै क बात त अइ मामला म हमर माँ पापा क बहुत पुरान विचार अर्थात  सासुर क कोनो बात , विध या पूजा पाठ म कोनो हस्तक्षेप नै ।माँ क कहब जे साउस कहे छैथ से करूं । 2011 म हम सब अपन साउस ससुर आ माँ पापा क लअ क पुरी गेल रही ।ओइ ग्रुप म सबसे बेसी प्रसन्न पापा रहैत लेकिन जखन हम सब पुरी क मंदिर पहुँचलौ त मूर्ति क समक्ष पापा गोर लागि क तुरंत कात म ठार भअ गेलत माँ हुनका कहलकैंन जे एतेक जल्दी गोर लागि लेलौ ठीक स गोर लगितोउ नै ,त सहज हुनकर जवाब रहेन जे हमर सबटा बात भगवान के बुझल छैन तै बरि काल गोर लगै क कोन काज ।पापा क कहियो कतौ बरि काल गोर लगैत नै देखियेन । पुनः अपन सासु माँ क बात पर पहुंचे छी जे हुनका रहैत कहियो इ बुझबे नै केलौ जे आब अवस्था भेल आ पूजा करबाक चाही अर्थात सब दिन बच्चे रहि गेलौ ।कहे छै जे माय बाप लेल लोक सब दिन बच्चे रहैय त दु बरख पहिने पापा क गेला स आ दू मास पहिने सासु माँ क गेला स अचानक लागि रहल अछि जे आब पैघ भअ गेलौ आ माथ पर स धीरे धीरे रक्षा कवच हटल जा रहल अछि ।

Saturday 10 October 2020

लगभग दो तीन माह पहले मैंने अपने बीच की कुछ ऐसी हस्तियों की चर्चा की थी जो लीक से थोड़े अलग हैं अथवा उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण मैं उनकी इज़्ज़त करती हूं । इसी क्रम में आपसे अपनी एक सहेली के विषय में बताना चाहूंगी ।वैसे अपने स्वभाव और उम्र दोनों के हिसाब से अब मेरे लिए किसी से नई मित्रता करने की कोई गुंजाइश नहीं होती लेकिन sister shivani के अनुसार बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनसे हमेशा भेंट या बात चीत नहीं होने पर भी  उनसे एक अलग ही लगाव होता है । मेरी इस मित्रता की सूत्रधार  हम दोनों के घर काम करने वाली महरी बनी ।बहुधा वो उनके बारे में मुझसे एकाध ऐसी बातें कहती जिससे मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती ।मार्च के अंतिम दिनों से कोरोना ने अपनी विभीषिका दिखानी शुरू कर दी । उसी दौरान मैंने पेपर  में   पुणे में स्थित एक ऐसे NGO  के बारे में पढ़ा जो कोरोना से पीड़ित परिवारों के लिए खाना और जरूरत की चीजें मुहैया करती है । दुर्भाग्य से हमने अपने शहर में इस प्रकार की किसी भी संस्था के बारे में नहीं सुना जबकि यहां ऐसे बुजुर्गों की कमी नहीं जो बिल्कुल अकेले नौकरों के भरोसे रहते हैं  और इस रोग ने कुछ ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दी जिससे बुजुर्ग क्या नौजवान भी हाशिये पर आ गए । इस बीमारी की खास बात यह थी कि इसने दोस्त ,संबंधी के साथ साथ घरेलू सहायकों को भी हमसे दूर कर दिया । इस प्रकार की स्थिति में आप कल्पना करें किसी ऐसे परिवार की जहां बिस्तर पर पड़े बुजुर्ग हो उनके बच्चे कोरोना ग्रस्त हो गए हो और घर में एक भी घरेलू सहायक न हो या कोई ऐसा परिवार जिसके सभी सदस्य कोरोना से पीड़ित हो ।उन दिनों रोग ने कुछ इस तरह आतंक मचा रखा था कि लोग उनके घरों को  दूर से भी देखकर डर जाते थे। ऐसी ही स्थिति से गुजरने वाले परिवार को सुबह शाम खाना पहुंचाने का बीड़ा मेरी इस सखी ने  उठाया जबकि  पर थी जबकि खुद उसके पति डायबिटिक है । ये बात मेरे हिसाब से share करने की इसलिए है क्योंकि किसी एक के शुरुआत पर ही उसका अनुकरण दूसरे भी करते हैं जैसा वहां की स्थिति में हुआ ।इसके शुरुआत करने के बाद  दूसरों ने भी कदम उठाया और ये काम जरूरी प्रीकॉशन के साथ किया गया तो भगवान की दया मदद करने वाले और पीड़ित परिवार दोनों ही ठीक रहे । मेरी नजर में मेरी इस सखी की इज़्ज़त और बढ़ गई जिसकी दिनचर्या में अब तक निर्धन धोबी के बेटे को पढ़ाने और जरूरतमंदो की सेवा तक थी ।आज कोरोना के कारण समाचारों में करोड़ों की संख्या में लोगों की नौकरी छूटने की खबर देखती हूँ ।इसे मेरी आत्मश्लाघा नहीं समझी जाए क्योंकि जब अपने लघु व्यवसायी पति के पिछले जीवन को देखती हूँ तो न सिर्फ अपने व्यवसाय से वर्तमान में उन्होंने चार पाँच लोगों को रोजगार देने का काम किया है बल्कि सात साल पहले अपने दो भांजों को भी दरभंगा में अपने निर्देशन में व्यापार शुरू करवाया ।मामा की दिखाई गई राह और बच्चों की मेहनत रंग लाई जिसका नतीजा एक सफल व्यापार ने लिया । कहते हैं चाहे दुनिया कितनी भी मतलबी क्यों न हो जाए आज भी हमारे बीच ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो गलत  सरकारी सिस्टम और समाज की भत्सर्ना की परवाह न करते हुए दूसरों की मदद करते हुए कस्तूरी मृग की भांति अपनी खुशबू हमारे इर्द गिर्द फैलाते जाते हैं।