Saturday, 10 October 2020
लगभग दो तीन माह पहले मैंने अपने बीच की कुछ ऐसी हस्तियों की चर्चा की थी जो लीक से थोड़े अलग हैं अथवा उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण मैं उनकी इज़्ज़त करती हूं । इसी क्रम में आपसे अपनी एक सहेली के विषय में बताना चाहूंगी ।वैसे अपने स्वभाव और उम्र दोनों के हिसाब से अब मेरे लिए किसी से नई मित्रता करने की कोई गुंजाइश नहीं होती लेकिन sister shivani के अनुसार बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनसे हमेशा भेंट या बात चीत नहीं होने पर भी उनसे एक अलग ही लगाव होता है । मेरी इस मित्रता की सूत्रधार हम दोनों के घर काम करने वाली महरी बनी ।बहुधा वो उनके बारे में मुझसे एकाध ऐसी बातें कहती जिससे मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती ।मार्च के अंतिम दिनों से कोरोना ने अपनी विभीषिका दिखानी शुरू कर दी । उसी दौरान मैंने पेपर में पुणे में स्थित एक ऐसे NGO के बारे में पढ़ा जो कोरोना से पीड़ित परिवारों के लिए खाना और जरूरत की चीजें मुहैया करती है । दुर्भाग्य से हमने अपने शहर में इस प्रकार की किसी भी संस्था के बारे में नहीं सुना जबकि यहां ऐसे बुजुर्गों की कमी नहीं जो बिल्कुल अकेले नौकरों के भरोसे रहते हैं और इस रोग ने कुछ ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दी जिससे बुजुर्ग क्या नौजवान भी हाशिये पर आ गए । इस बीमारी की खास बात यह थी कि इसने दोस्त ,संबंधी के साथ साथ घरेलू सहायकों को भी हमसे दूर कर दिया । इस प्रकार की स्थिति में आप कल्पना करें किसी ऐसे परिवार की जहां बिस्तर पर पड़े बुजुर्ग हो उनके बच्चे कोरोना ग्रस्त हो गए हो और घर में एक भी घरेलू सहायक न हो या कोई ऐसा परिवार जिसके सभी सदस्य कोरोना से पीड़ित हो ।उन दिनों रोग ने कुछ इस तरह आतंक मचा रखा था कि लोग उनके घरों को दूर से भी देखकर डर जाते थे। ऐसी ही स्थिति से गुजरने वाले परिवार को सुबह शाम खाना पहुंचाने का बीड़ा मेरी इस सखी ने उठाया जबकि पर थी जबकि खुद उसके पति डायबिटिक है । ये बात मेरे हिसाब से share करने की इसलिए है क्योंकि किसी एक के शुरुआत पर ही उसका अनुकरण दूसरे भी करते हैं जैसा वहां की स्थिति में हुआ ।इसके शुरुआत करने के बाद दूसरों ने भी कदम उठाया और ये काम जरूरी प्रीकॉशन के साथ किया गया तो भगवान की दया मदद करने वाले और पीड़ित परिवार दोनों ही ठीक रहे । मेरी नजर में मेरी इस सखी की इज़्ज़त और बढ़ गई जिसकी दिनचर्या में अब तक निर्धन धोबी के बेटे को पढ़ाने और जरूरतमंदो की सेवा तक थी ।आज कोरोना के कारण समाचारों में करोड़ों की संख्या में लोगों की नौकरी छूटने की खबर देखती हूँ ।इसे मेरी आत्मश्लाघा नहीं समझी जाए क्योंकि जब अपने लघु व्यवसायी पति के पिछले जीवन को देखती हूँ तो न सिर्फ अपने व्यवसाय से वर्तमान में उन्होंने चार पाँच लोगों को रोजगार देने का काम किया है बल्कि सात साल पहले अपने दो भांजों को भी दरभंगा में अपने निर्देशन में व्यापार शुरू करवाया ।मामा की दिखाई गई राह और बच्चों की मेहनत रंग लाई जिसका नतीजा एक सफल व्यापार ने लिया । कहते हैं चाहे दुनिया कितनी भी मतलबी क्यों न हो जाए आज भी हमारे बीच ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो गलत सरकारी सिस्टम और समाज की भत्सर्ना की परवाह न करते हुए दूसरों की मदद करते हुए कस्तूरी मृग की भांति अपनी खुशबू हमारे इर्द गिर्द फैलाते जाते हैं।
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