जिस तत्परता से कोई भी अनुभवी माँ बाप अपनी सम्पत्ति का बंटवाराअपने बच्चों के बीच करता है ठीक उसी ईमानदारी से विधाता उस माँ बाप की बीमारियों का बंटवारा उनके बच्चों के बीच करता है ऐसा मैंने अपनी जिंदगी में अनुभव किया है। इसे मेरीअतिशयोक्ति भी कह सकते है कि मुझे पूरा विश्वास है, हृदय संबंधी बीमारियां हम भाई बहन भगवान के घर से अपने लिए लेकर आये है।कभी कभी मैं इस सम्बन्ध में कुछ अधिक ही सशंकित हो उठती हूँ |पिछले महीने जब मैं अपनी रूटीन चेकअप के लिए डॉक्टर के पास गई और डॉक्टर के पूछने पर कि आपको कोई समस्या अभी है क्या ?मैंने अपनी छोटी छोटी परेशानियों को एक लम्बी लिस्ट के रूप में डॉक्टर के सामने पेश किया|अचानक मैंने ये महसूस किया की डॉक्टर की मुख मुद्रा बदल गई और झल्लाते हुए उन्होंने मुझसे कहा "कुछ नहीं हुआ है आपको ,अगर मैं आपको मॉर्निंग वॉक करने को कहूंगा तो आप करेगी नहीं "सब नार्मल है।मैं बिलकुल आश्चर्य में पर गई क्योंकि मैंने उस डॉक्टर को कभी जोर से बोलते भी नहीं सुना था। तभी मेरा ध्यान उस फूल सी बच्ची पर गया जो मुझ से पहले अपनी माँ के साथ डॉक्टर के चेम्बर में गयी थी और जब वो बाहर आई तो मैंने बस उस सुन्दर सी बच्ची से पूछा कि मम्मी को दिखाने आई हो ?नहीं नहीं मम्मी मुझे दिखाने आई है।अरे,एक कार्डियोलॉजिस्ट के पास बच्चों का क्या काम? मैंने इसे उसकी नादानी समझ कर कहा, क्या बुखार है? नहीं ,मेरे हार्ट में छेद है. तभी उसकी माँ उसके तमाम रिपोर्ट्स लेकर बाहर आई और कम्पाउण्डर को फीस देने लगी। नहीं, डॉक्टर ने आपसे फीस लेने से मना किया है। वह लडकी इतनी ही मासूम थी कि वो अपनी माँ से सिर्फ इस बात के लिए झगड़ रही थी कि जब ये मेरी रिपोर्ट है तो इसे मैं खुद क्यों नहीं पकड़ सकती हूँ?
मैं अपने बर्ताव पर खुद शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। मुझे उस डॉक्टर में फिल्म आनंद के एंग्रीयंग मैंन की छवि वाले अमिताभ बच्चन की याद आ
गयी जो एक मरीज की बेकार की तकलीफों से झल्ला उठता है। क्यों कभी कभी हम इतने स्वार्थी हो उठते है की हमें दुनिया में अपने सिवा किसी की तकलीफ नज़र ही नहीं आती है और हम खुद को सबसे ज्यादा दुखी महसूस करते है। क्या उम्र थी बच्ची की कि वो इस दुख को झेल रही थी? उस डॉक्टर ने तो अपनी छोटी सी मदद से शायद कुछ आत्मसंतोष पा लिया लेकिन हमारा औरआपका क्या?