Monday 24 May 2021

भारत  में अगर कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो धान (चावल) लोगों का  प्रमुख भोजन है । धान की खेती का इतिहास संभवत मानव सभ्यता के इतिहास के साथ ही जुड़ा है।दुनिया में धान के उत्पादन में चीन के बाद भारत  दूसरे नम्बर पर आता है ।धान या किसी भी अन्य फसलों के विषय में मेरी सबसे पहली किसान भाइयों को यह सलाह  है कि अमूमन हर जिले में सरकार की ओर से कृषि सहायक केंद्र मौजूद हैं जहां फसल संबंधी  विषयों पर  करीब करीब मुफ़्त सलाह दी जाती है ।वैसे इस तरह के निजी केंद्र भी हर छोटे बड़े जिले में मौजूद है । इन केंद्रों में किसानों को  मिट्टी की तैयारी से लेकर फसल की कटाई  तक के संबंध में जानकारी दी जाती  है । बुआई से पूर्व मिट्टी परीक्षण करवानी चाहिए । धान की खेती के लिए दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है । वैसे धान के उपज की अवधि110 दिनों से145 दिनों तक की होती है ।ये अवधि धान की किस्म पर निर्भर करती है। चूँकि धान की खेती में पानी बहुत जरूरी है इसलिए  बरसात शुरू होने से बाद ही इसकी खेती शुरू करनी चाहिए ।वैसे अब समृद्ध किसानों ने बोरिंग के द्वारा बरसात वाली जरूरत को अपने साधनों से पूरा करने की कोशिश कर ली है ।प्रथम चरण के अंतर्गत बीजों के लिए सबसे आवश्यक होता है  कीड़ों और दीमक  से बचाव । इसमें गोबर का खाद हर जगह की मिट्टी के लिए उपयुक्त है लेकिन अन्य रासायनिक उर्वरकों को  विशेषज्ञ की सलाह से ही डालना चाहिए  जिससे कम लागत में अधिक फसल मिले ।ध्यान देने लायक बात है कि  धान की खेती में कीटनाशक का प्रयोग कई चरणों में किया जाता है ।पहले चरण के अनुसार बीजों में फूल आने के बाद ही कीटनाशक का प्रयोग किया जाना चाहिए ।  वैसे तो किसी भी तरह की  खेती के लिए मानव श्रम सबसे अधिक जरूरी है लेकिन जब बात धान की आती है तो इसमें बुआई से लेकर खर पतवार तक के लिए लोगों की काफी जरूरत पड़ती है। वैसे इस क्षेत्र में अब काफी प्रगति हो चुकी है और लोगों का काम मशीनों और खर पतवार के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है । धान के पौधों को भरपूर पानी की जरूरत होती है जो इसके फसल के दौरान बरसात से होने वाले बारिश के द्वारा पूरी होती है ।किसानों को मेरी यह सलाह है कि खेतों की तैयारी में मजबूत मेड़ों के निर्माण पर भी विशेष ध्यान दे  क्योंकि इसका निर्माण फसल के रोपाई से पहले हो जानी चाहिए।  आज वैज्ञानिकों ने धान के अनेक उन्नत किस्म के बीजों को उपलब्ध करवा दिए है । जो  हमारे किसान भाइयों को  उनके मेहनत का पूरा फल दे । पौधों की अवधि पूर्ण होने के बाद  इसकी कटाई में भी सही समय का आकलन करना चाहिए ।वैसे युग ने नई करवट ले ली है और मशीनों की मदद से उन्नत खेती कर हमारे किसान भाई समृद्धि पा रहे हैं ।जरूरत है आज नई पीढ़ी के लोगों की ,जो तकनीकी रूप से शिक्षित होकर  कृषि कार्यो के लिए आगे आए ताकि हमारा देश विभिन्न फसलों के मामले में आत्मनिर्भर बन सके ।

Saturday 15 May 2021

12मई की शाम सोनी ने msg दिया  पिंकी ,पापा चले गए। पापा मतलब  मेरे जन्म से बहुत पहले से ही हमारे परिवार के साथ जुड़े हुए  हमारे स्नेहिल मिश्रा चाचा (Dr S. P. Mishra) । सिस्टर शिवानी कहती हैं हमारी जीवन में कुछ हस्तियां ऐसी होती है जिसके साथ कोई रक्त  संबंध न रहने पर भी वो किसी अपने से अधिक प्रिय लगता है बस कुछ इसी तरह की डोर उस घर से बंधी हुई थी । वैसे तो हमारा पूरा परिवार ही उस परिवार के बहुत करीब था लेकिन मेरी तो सुबह शाम और हर छुट्टी ही वही बीतती थी शायद इसका कारण मेरा और सोनी (चाचाजी की बेटी) का हमउम्र होना हो ।  याद आता है बिल्कुल बचपन की धुंधली यादें जब चाचाजी हमें छोटी छोटी पहेलियों और अत्यंत मनोरंजक कहानियां सुनाते थे उसके बाद जैसे जैसे  उम्र बढ़ी चाचाजी के साथ "उसने कहा था","हार की जीत" जैसी ज्ञानवर्धक  कहानियों को सुनना याद है वहीं जाड़े  गर्मी की छुट्टियों में  बैठकर  Greetings बनाने और बहुत सी  बातें जो आज के बच्चों को मूल्य के हिसाब से  भले ही तुच्छ प्रतीत हो लेकिन अब  स्कूलों में समर कैंप में कुछ इस तरह की भी  activity करवाने की बात  सुनने में आती  हैं जो हमने चाचाजी के कारण वर्षों पहले कर ली थी ।शायद ही बचपन की कोई ऐसी समस्या रही हो जिसका समाधान उनके पास नहीं  रहा हो । समय के साथ साथ दोनों परिवार बरियातू वाले मुहल्ले को छोड़कर एक साथ खरीदे गए हरमू वाले नए मकानों  में आ गए ।इसी बीच बहुत सी अच्छी बुरी बातें दोनों परिवार में हुई पर दोनों  साथ मे बने रहे । दीदी की शादी और मेरी शादी दोनों में वे हमारे गाँव गए ।किसी भी संस्कृति को समझना उनकी आदत थी ।हर उम्र के लोगों से बात करना उन्हें प्रिय था और लोग भी उनसे बातें करने को  उत्सुक रहते थे फिर चाहे वो किसी भी उम्र के हो ।   दीदी की शादी में उन्होंने हर एक बात को समझना चाहा फिर चाहे वो  केले के तने से बनाए जाने वाले पत्तल  जो  सिर्फ मिथिला के बारातियों को खिलाने के लिए व्यवहार में लाया जाता है जैसी छोटी सी बात ही क्यों न हो। किसी एक  बाराती के द्वारा 150 रसगुल्ले खाए जाने वाली घटना से इतने चकित हुए कि उन्होंने बाकायदा उस आदमी का साक्षात्कार ले डाला । उस विवाह से संबंधित एक घटना  जिसकी चर्चा अकसर मिलने पर चाचाजी किया करते थे ।बात ऐसी है कि हमारे मिथिला के कुछेक गांव ऐसे है जिनका नाम कोई भी  मैथिल सुबह सुबह नहीं लिया करते हैं या तो उसका नाम खाने  पीने  के बाद लिया जाए अथवा उनके बदले छद्म नामों से काम चलाए जाते हैं ।परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि दीदी की ससुराल सुबह नहीं लिए जाने वाले गाँवो में एक था इस बात ने चाचाजी को बेहद हँसाया कि गाँव के नाम सुबह लेने भर से दिनभर  खाना नसीब नहीं होता !बाद में वो अकसर मुझसे पूछते कि तुम्हारे ससुराल के साथ कोई ऐसी बात तो नहीं । 
शादी होने के बाद पहली डिलीवरी और सर पर hons की परीक्षा ।ऐसे में statistic की कठिनता को चाचाजी ने  इतने सरल ढंग से पढ़ा दिया कि सारे problemsही  खत्म हो गए ।
सितंबर95 , जब पापा को पहला heart attack आया मेरी बड़ी बेटी सिर्फ तीन महीने की थी उसे लेकर जब रांची पहुंची तो पापा  हॉस्पिटल में और मैं साधिकार  चाची के घर । ऐसे समय में मैंने कभी उनकी किसी भी परेशानी को नहीं समझा और अधिकार के साथ उनके पास जाती रही।ये अधिकार हमारे बच्चों के लिए वैसा ही  रहा।  बाद के वर्षों में चाचाजी भी कुछ अस्वस्थ रहने लगे लेकिन फिर भी उन्हें किसी भी मुश्किल की घड़ी में अविचल पापा के साथ खड़ा पाया । 2.5साल पहले जब  पापा की गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तो मैं उन्हें पटना लाने रात की बस से रांची गई उस अहले सुबह की घटना मुझे आज भी भावविह्वल कर देती है ।  चार बजे की सुबह जबकि  ठीक से पौ भी नहीं फटा था मेरे बस से उतरने से पहले चाचाजी ऑटो लेकर खड़े थे। उसके बाद भी  कभी पापा की तबीयत थोड़ी सी नासाज़ हुई जब भी माँ पूछती बच्चों को खबर कर दूँ क्या ? पापा कहते नहीं वैसी कोई बात नहीं बस मिश्राजी  को फोन कर दो और हम तीनों भाई बहन  आश्वस्त ।पापा को डॉक्टर से दिखलाने जब पटना लाई  हर दिन दूरी के बावजूद अभिवावक के रूप में  चाचाजी को अपने साथ पाया । समय का खेल ,पापा और चाचाजी ने  साथ साथ लंबे समय तक morning walk करते हुए अपनी पारी समाप्त कर ली ।जब जब जाड़े और गर्मियों की छुट्टियों आती है चाहे बेटियां स्कूल से निकल गई हो और उन छुट्टियों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़े  लेकिन कहीं मन में आता है रांची जाऊँगी ,एक दिन मिश्रा चाचा के घर जाना होगा वहां शायद चाची से कहकरअरसा और धुसका(दोनो ही छोटानागपुर के डिस) खाऊँगी
 लेकिन धीरे धीरे  रांची हमारे हाथों  से दूर होता चला जा रहा है  या यूँ कहूं कि "बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए 😢😢

Tuesday 11 May 2021

कोरोना की दूसरी लहर अपने प्रचंड रूप में आ चुकी है ।  आपदा के साथ साथ आए दिन ऑक्सीजन, दवाओं और इंजेक्शन की कालाबाजारी और जमाखोरी की बात सुनती देखती हूँ खैर इन्हें किस  नेता का संरक्षण प्राप्त है या इनकेपीछे कौन सी राजनीतिक पार्टी काम कर रही है ये जानने में मेरी न कोई  दिलचस्पी है और न मैं राजनीति को समझती हूं ।लेकिन इन बातों से परे मैं अपने आस पास बहुत से ऐसी बातें हैं जिसका कारण मात्र लोगों की लालच और स्वार्थपरता है । कोरोना काल में ऑनलाइन क्लासेज और WFH को वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में शुरू की गई। जिसे विद्यार्थियों और ऑफिस के कर्मचारियों के द्वारा खुले दिल से अपनाया गया । धीरे धीरे कोरोना की अवधि बढ़ती गई और इसके साथ ही बढ़ती गई ऑफिस और स्कूल  प्रबंधन के द्वारा अपने मातहतों से अधिक से अधिक काम लेने की प्रवृत्ति ।मैं अन्य शहरों के बारे में नहीं जानती लेकिन मेरे शहर में विगत एक साल से प्राइवेट स्कूल शिक्षकों के वेतन में मनमानी कटौती की जा रही है ।इसके अलावा तो कई स्कूलों ने 50+ के शिक्षकों को एकाध महीने के वेतन के साथ निकाल भी  दिया ।मजे की बात यह है इसमें राजधानी के प्रतिष्ठित कहे जाने वाले प्राय सभी स्कूल शामिल हैं । शिक्षकों के कार्य के घंटों में किसी संडे का प्रावधान नहीं है ।  गौरतलब है कि कोरोना के घटते मामले के बीच इन शिक्षकों ने एक ही दिन में ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों की जिम्मेदारी भी निभाई थी । अब जरा स्कूल प्रबंधन की ओर गौर किया जाए । किसी भी स्कूल  ने इस अवधि में फीस न लेने का कोई प्रावधान नहीं रखा है ।इसके साथ अव्वल  तो राजधानी के छोटे से छोटे स्कूल भी ठोस आर्थिक आधार पर टिके हुए हैं ।  कोरोना काल में बहुत से स्कूलों ने guard ,चपरासियों और सफ़ाई कर्मचारियों की संख्या में  बेहद जरूरी को ही  कायम रखा है ।इसके साथ ही बिजली,साफ सफ़ाई पर होने वाले खर्च वर्तमान में पहले के मुकाबले  नगण्य है ।  ऐसे में जहां सभी स्कूल दोनों ही तरफ से कमा रहे हैं वहीं शिक्षक बेरोजगारी के लंबी कतार के कारण लगी हुई नौकरी किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहते हैं और किए जाने वाले किसी भी मनमानी को भुगत रहे हैं और नौकरी बचा पाने  के कारण किसी भी तरह से आवाज़ नहीं उठा पा रहे हैं । पिछले एक साल से इस महामारी ने वैसे ही पढ़ाई का खिलवाड़ बना दिया है जिसके साथ  विद्यालयों की इस गलत तरीके के कारण निश्चय ही शिक्षकों की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।जिसका परिणाम बच्चों पर पड़ेगा। संभवत  इस संबंध में मेरी निर्भीकता का कारण मेरा किसी भी तरह से स्कूल से जुड़ाव न होना है । मैं जानती हूं मेरे इस प्रकार से लिखने का कोई लाभ नहीं ।लेकिन मैं फिर भी  लोगों से अनुरोध करती हूं कि आपदा में अवसर न ढूढ़ें । कोरोना काल में होने वाले मौत के बावजूद भी लोगों की गलत तरीके से धन संग्रह की प्रवृत्ति खत्म नहीं होती ।गीतकार शैलेंद्र के बोल"तुम्हारे महल चौबारे यहीं रह जाएंगे सारे ,अकड़ किस बात की है प्यारे "😢😢।

Monday 10 May 2021

कोरोना की दूसरी लहर अपने प्रचंड रूप में आ चुकी है ।  आपदा के साथ साथ आए दिन ऑक्सीजन, दवाओं और इंजेक्शन की कालाबाजारी और जमाखोरी की बात सुनती देखती हूँ खैर इन्हें कौन से नेता का संरक्षण प्राप्त है या इनके पीछे कौन सी राजनीतिक पार्टी काम कर रही है ये जानने में मेरी न कोई  दिलचस्पी है और न मैं राजनीति को समझती हूं ।लेकिन इन बातों से परे मैं अपने आस पास बहुत से लोगों को परेशान देखती हूं जिसका जन्म मात्र लोगों के लालच और स्वार्थ के कारण  ही हुआ है। इस तरह की आपदा के कारण ऑफिसों से लेकर स्कूल कॉलेजों में ऑनलाइन वर्क और ऑनलाइन क्लासेज की परंपरा शुरू हुई । यहां मैं  प्राइवेट स्कूलों से जुड़ी बातों की ओर  सबका ध्यान दिलाना चाहती हूं।इस संबंध में अन्य शहरों या कस्बों के बारे में मैं नहीं कह सकती अलR

लेकिन पटना के तमाम प्राइवेट स्कूलों में विगत एक साल से शिक्षकों के सैलरी को कोविड के नाम  कटौती की जा रही है ।यहां हैरानी की बात यह है कि राजधानी के तमाम प्रतिष्ठित स्कूल भी इनसे अछूते नहीं है । अगर शिक्षकों की काम के घंटों की ओर एक नजर डाली जाए तो अन्य ऑफिसों के WFH की तरह इसकी कोई सीमा नहीं, ध्यान देने की बात यह है कि पिछले साल कुछ समय के लिए स्कूल खुलने पर ये शिक्षक ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों सेवा दे रहे थे । अब ध्यान दिया जाए स्कूल प्रशासन की ओर । अव्वल तो शायद ही कोई 

Friday 7 May 2021

 कहते हैं मुसीबत आती है तो अपने साथ अपने रिश्तेदारों को लाती है ।कुछ समय पहले छोटी बेटी के कोरोना की तयशुदा अवधि को पार करने पर राहत की थोड़ी सांस ही ले पाई थी कि कल सवेरे सवेरे पतिदेव पैर की मोच के कारण सूजे हुए पैर के साथ बैठ गए ।कल का दिन घर के कामों के साथ साथ हल्दी चूना ,प्याज के सेक और क्रेप बैंडेज बांधते हुए बीता इसके अलावा जिस जिस ने फोन पर जैसी सलाह दी उसका अक्षरसः पालन किया ,लेकिन नतीजा जस का तस ।रात में माँ ने फोन कर बताया कि ठंडे और गर्म पानी से सेको वो भी किया लेकिन सासुमां के वॉकर पर लगड़ाते हुए पैर की स्थिति वैसी ही रही और इतनी तकलीफ के बाद भी कोविड के बढ़े हुए रूप के कारण दिनभर  हॉस्पिटल जाने की हिम्मत नहीं हुई  लेकिन आज सुबह हम दोनों ने करो या मरो के सिद्धांत पर LNJP हॉस्पिटल राजबंशी नगर जाने का फैसला किया जो कि बिहार सरकार के द्वारा हड्डी अस्पताल के रूप में विकसित किया गया है। वहां जाने से पहले हम काफी डरे हुए थे क्योंकि वहां कोविड की जांच और वैक्सीनेशन भी किया जा रहा है लेकिन वहां से आने के बाद वहां की व्यवस्था और बरते जाने वाले ऐतिहात को 10 में 10 नहीं तो 9 नम्बर जरूर दिया जाना चाहिए। जहां जांच वैक्सीनेशन को अस्पताल से बिल्कुल अलग रखा गया है वही डॉक्टर से लेकर गार्ड ,नर्स और हर एक स्टाफ मास्क और जरूरी social distancing का पालन करते हुए दिखे । कोरोना की इस विभीषिका को हॉस्पिटल जैसी जगह पर बरती जानी वाली ऐसी सावधानी के द्वारा  निश्चित रूप से मात देंगे ।तो हम सब को सोचना पॉजिटिव है और  रिपोर्ट नेगेटिव लाना है।
सबसे बड़ी बात कि पैर में जोर से मोच ही   आई है शुक्र है भगवान का पैर सलामत है ।