Saturday, 15 May 2021

12मई की शाम सोनी ने msg दिया  पिंकी ,पापा चले गए। पापा मतलब  मेरे जन्म से बहुत पहले से ही हमारे परिवार के साथ जुड़े हुए  हमारे स्नेहिल मिश्रा चाचा (Dr S. P. Mishra) । सिस्टर शिवानी कहती हैं हमारी जीवन में कुछ हस्तियां ऐसी होती है जिसके साथ कोई रक्त  संबंध न रहने पर भी वो किसी अपने से अधिक प्रिय लगता है बस कुछ इसी तरह की डोर उस घर से बंधी हुई थी । वैसे तो हमारा पूरा परिवार ही उस परिवार के बहुत करीब था लेकिन मेरी तो सुबह शाम और हर छुट्टी ही वही बीतती थी शायद इसका कारण मेरा और सोनी (चाचाजी की बेटी) का हमउम्र होना हो ।  याद आता है बिल्कुल बचपन की धुंधली यादें जब चाचाजी हमें छोटी छोटी पहेलियों और अत्यंत मनोरंजक कहानियां सुनाते थे उसके बाद जैसे जैसे  उम्र बढ़ी चाचाजी के साथ "उसने कहा था","हार की जीत" जैसी ज्ञानवर्धक  कहानियों को सुनना याद है वहीं जाड़े  गर्मी की छुट्टियों में  बैठकर  Greetings बनाने और बहुत सी  बातें जो आज के बच्चों को मूल्य के हिसाब से  भले ही तुच्छ प्रतीत हो लेकिन अब  स्कूलों में समर कैंप में कुछ इस तरह की भी  activity करवाने की बात  सुनने में आती  हैं जो हमने चाचाजी के कारण वर्षों पहले कर ली थी ।शायद ही बचपन की कोई ऐसी समस्या रही हो जिसका समाधान उनके पास नहीं  रहा हो । समय के साथ साथ दोनों परिवार बरियातू वाले मुहल्ले को छोड़कर एक साथ खरीदे गए हरमू वाले नए मकानों  में आ गए ।इसी बीच बहुत सी अच्छी बुरी बातें दोनों परिवार में हुई पर दोनों  साथ मे बने रहे । दीदी की शादी और मेरी शादी दोनों में वे हमारे गाँव गए ।किसी भी संस्कृति को समझना उनकी आदत थी ।हर उम्र के लोगों से बात करना उन्हें प्रिय था और लोग भी उनसे बातें करने को  उत्सुक रहते थे फिर चाहे वो किसी भी उम्र के हो ।   दीदी की शादी में उन्होंने हर एक बात को समझना चाहा फिर चाहे वो  केले के तने से बनाए जाने वाले पत्तल  जो  सिर्फ मिथिला के बारातियों को खिलाने के लिए व्यवहार में लाया जाता है जैसी छोटी सी बात ही क्यों न हो। किसी एक  बाराती के द्वारा 150 रसगुल्ले खाए जाने वाली घटना से इतने चकित हुए कि उन्होंने बाकायदा उस आदमी का साक्षात्कार ले डाला । उस विवाह से संबंधित एक घटना  जिसकी चर्चा अकसर मिलने पर चाचाजी किया करते थे ।बात ऐसी है कि हमारे मिथिला के कुछेक गांव ऐसे है जिनका नाम कोई भी  मैथिल सुबह सुबह नहीं लिया करते हैं या तो उसका नाम खाने  पीने  के बाद लिया जाए अथवा उनके बदले छद्म नामों से काम चलाए जाते हैं ।परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि दीदी की ससुराल सुबह नहीं लिए जाने वाले गाँवो में एक था इस बात ने चाचाजी को बेहद हँसाया कि गाँव के नाम सुबह लेने भर से दिनभर  खाना नसीब नहीं होता !बाद में वो अकसर मुझसे पूछते कि तुम्हारे ससुराल के साथ कोई ऐसी बात तो नहीं । 
शादी होने के बाद पहली डिलीवरी और सर पर hons की परीक्षा ।ऐसे में statistic की कठिनता को चाचाजी ने  इतने सरल ढंग से पढ़ा दिया कि सारे problemsही  खत्म हो गए ।
सितंबर95 , जब पापा को पहला heart attack आया मेरी बड़ी बेटी सिर्फ तीन महीने की थी उसे लेकर जब रांची पहुंची तो पापा  हॉस्पिटल में और मैं साधिकार  चाची के घर । ऐसे समय में मैंने कभी उनकी किसी भी परेशानी को नहीं समझा और अधिकार के साथ उनके पास जाती रही।ये अधिकार हमारे बच्चों के लिए वैसा ही  रहा।  बाद के वर्षों में चाचाजी भी कुछ अस्वस्थ रहने लगे लेकिन फिर भी उन्हें किसी भी मुश्किल की घड़ी में अविचल पापा के साथ खड़ा पाया । 2.5साल पहले जब  पापा की गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तो मैं उन्हें पटना लाने रात की बस से रांची गई उस अहले सुबह की घटना मुझे आज भी भावविह्वल कर देती है ।  चार बजे की सुबह जबकि  ठीक से पौ भी नहीं फटा था मेरे बस से उतरने से पहले चाचाजी ऑटो लेकर खड़े थे। उसके बाद भी  कभी पापा की तबीयत थोड़ी सी नासाज़ हुई जब भी माँ पूछती बच्चों को खबर कर दूँ क्या ? पापा कहते नहीं वैसी कोई बात नहीं बस मिश्राजी  को फोन कर दो और हम तीनों भाई बहन  आश्वस्त ।पापा को डॉक्टर से दिखलाने जब पटना लाई  हर दिन दूरी के बावजूद अभिवावक के रूप में  चाचाजी को अपने साथ पाया । समय का खेल ,पापा और चाचाजी ने  साथ साथ लंबे समय तक morning walk करते हुए अपनी पारी समाप्त कर ली ।जब जब जाड़े और गर्मियों की छुट्टियों आती है चाहे बेटियां स्कूल से निकल गई हो और उन छुट्टियों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़े  लेकिन कहीं मन में आता है रांची जाऊँगी ,एक दिन मिश्रा चाचा के घर जाना होगा वहां शायद चाची से कहकरअरसा और धुसका(दोनो ही छोटानागपुर के डिस) खाऊँगी
 लेकिन धीरे धीरे  रांची हमारे हाथों  से दूर होता चला जा रहा है  या यूँ कहूं कि "बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए 😢😢

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