Saturday 31 December 2022

  साल 2022के आखिरी कुछ घंटे ही  बाकी हैं । हमारे यहां  दिसंबर और जनवरी के महीने पिकनिक मनाने के लिहाज से आदर्श कहे जा सकते हैं।छुटपन से अब तक मैं कई बार पिकनिक पर गई हूं लेकिन अगर पिकनिक के नाम की पहली स्मृति  के बारे में सोचूं तो शायद लगभग 45 साल पहले मनाए गए उस पिकनिक को इसमें शुमार  किया जा सकता है।जिसकी खास बात यह है कि  उम्र कम होने के कारण उस दिन की बहुत कम ही बातें मुझे याद है और बाकी की जो थोड़ी बातें हैं वो मैंने  दूसरों सुनी है।
       तो बात उस दिन की ।पहले कहीं पढ़ा था कि जब बाकी जगहों के लोग बरसात की गर्मी और उमस से परेशान हो रहे होते हैं ।तो रांची शहर के लोग सुहावने मौसम का आनंद लेते हुए आने वाले जाड़े की तैयारी करते हैं वैसे तो प्राकृतिक झरनों और खूबसूरत वादियों से भरपूर रांची के  आस पास  पिकनिक स्पॉट्स की भरमार है लेकिन रांची से 80किलोमीटर की दूरी पर दामोदर भैरवी और भेड़ा  नदी के संगम पर बसा रजरप्पा  लगभग 6000साल पुरानी देवी छिन्नमस्तका की शक्तिपीठ के साथ साथ पिकनिक मनाने के लिए काफी प्रसिद्ध है। तो कुछ वैसे ही किसी सुहावने  दशहरे के आस पास के दिन, पांच परिवारों ने मिलकर इस यात्रा के बारे में सोचा था। दिलचस्प बात यह थी कि उस समय की ये यात्रा पांच स्कूटरों पर हुई थी और उन परिवारों में मौजूद बच्चों को सभी लोगों ने अपने अपने स्कूटर पर बांट लिया।मैं एक मामा के हिस्से आई तो भइया किसी दूसरे के और दीदी मां पापा के साथ ।मेरी यादाशत के अनुसार सब सुबह सुबह अपने गंतव्य स्थान की ओर निकले ,जाने के समय की  कोई  विशेष घटना का  मुझे स्मरण नहीं है लेकिन हम जब रजरप्पा पहुंचे तो रास्ते की गलती से नदी के जिस मुहाने मंदिर है उसके बदले नदी के दूसरे किनारे पर पहुंच गए अब हमारे पास एक ही विकल्प था पहाड़ी नदी को पार कर देवी दर्शन करना ।किसी  पहाड़ी नदी को पार करने में कठिनाई नदी की गहराई से अधिक उसकी तेज धार से होती है तो इसी डर से बच्चों को जिसमें मैं भी शामिल थी उन्हें स्थानीय मल्लाह की गोद में नदी पार करवाया गया और बाकी लोगों ने एक दूसरे के हाथों को पकड़ कर  जिसे आज के युवा Thrill कहते हैं के साथ पार किया ।फिर देवी दर्शन के बाद उसी तरह से लौटना हुआ और शायद उस पार ही खाने पीने का काम किया गया होगा ।उसके बाद सभी ने घर वापसी की सोची ।वैसे सुबह से मौसम काफी साफ था लेकिन देखते ही देखते काले बादल छा गए और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई , सारे लोग एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए लेकिन बारिश थी जो लगातार बरसे जा रही थी  धीरे धीरे अंधेरा होने लगा चूंकि लगभग 45साल पहले रांची और रजरप्पा के रास्ते में कई जगहों पर घने  जंगल थे तो उन जंगलों में शाम के बाद रुकना ठीक नहीं था तो उसी बारिश में सारे स्कूटर चल पड़े  जो संभवत गोला नामक जगह के किसी ढाबे पर चाय पीने को रुके और सभी पूरी तरह से भीगे होने के कारण ढाबे में बैठे लोगों के हंसी का पात्र भी  बने । गोला से चलकर हम रांची के ओरमांझी पहुंचे कि  पापा का आंखों में बरसाती कीड़े की वजह से आगे स्कूटर चलाना दूभर हो गया ।बारिश में भीगकर ठंड से ठिठुरते हुए थक कर चूर  उस वक्त सभी को अपना जोश भारी पड़ रहा होगा ।खैर भगवान की दया से वहां किसी परिचित डॉक्टर की सहायता से पापा की आंखों की परेशानी को दूर किया गया और मां छिन्नमस्तका को याद करते हुए सभी सकुशल घर पहुंच गए । 
 उस पिकनिक को लगभग 45 साल बीत चुके हैं ।लेकिन आज भी अगर पिकनिक का जिक्र किया जाता है तो उस दिन की हल्की सी यादें ताजा हो उठती है ।
मैं नमन करती हूं यात्रा  के साक्षी तीन स्वर्गवासी परिजनों का । जिक्र करना चाहूंगी उस पिकनिक के सभी लोगों का जो अपने  परिवार के साथ उस पिकनिक में शामिल थे : Late Yogendra gopal Jha , Late Shankar Jha , Late Y.C Mishra ,Shree Sudhir Mishra and Shree  Mohan Jha ।
चूंकि इस पोस्ट की रचनाकार (यानी मैं ) की उम्र महज तीन से चार वर्ष थी तो उस पिकनिक में शामिल लोगों से मेरा आग्रह है कि इस पोस्ट की गलतियों को नजरंदाज करते हुए अपनी यादें हमसे शेयर करें।

Tuesday 1 November 2022

महापर्व छठ बीत गया।संयोगवश इस वर्ष घाट से लेकर शहर तक में प्रशासन के अच्छे इंतजाम को देखने का मौका मिला ।घाट में सुरक्षा और सफ़ाई की व्यवस्था के साथ साथ डेंगू के मद्देनजर लगातार छिड़काव किए जा रहे थे। आश्चर्य की बात यह है कि जिन जगहों पर कभी दिन में झाड़ू नहीं लगाया जाता है वहां रात के डेढ़ बजे झाड़ू लगाया जा रहा था।खैर ये तो सरकारी काम जिसमें आम जनता का कोई दखल नहीं हो सकता है। यहां मेरा ध्यान पटना के नागरिकों की ओर आकर्षित होता है।जहां उन चारों दिन पूरे शहर के लोग भक्ति भावना में डूब कर एक दूसरे में इतना अच्छा सामंजस्य बना कर रखते हैं जिससे चारों ओर पूरी शांति का माहौल बना रहता है। न अनावश्यक झगड़ा न ही सड़कों पर एक दूसरे से ओवर टेक करने की होड़ और न ही हर जगह थूकने जैसी गंदी आदतें। लेकिन इस तरह की सारी शान्ति बस इन्हीं चारों दिन ।त्योहार खत्म होते ही हम फिर से उसी रूप में आ जाते हैं । अब त्योहार तो हमारे जीवन में  मात्र कुछ ही समय के लिए आ सकता है लेकिन कुछ उसी तरह का जीवन यापन तो हम साल भर कर सकते हैं न ताकि हमारे शहर की गिनती देश के शांत और साफ शहर में की जा सके कुछ इस तरह ....."ये शहर है अमन का यहां की फिज़ा है  निराली यहां तो बस शांति शांति है".... ☺️😊

Saturday 27 August 2022

पिछले महीने की 30 तारीख को रांची पटना जनशताब्दी से पटना लौट रही थी। रांची से लौटते  समय मन हमेशा की तरह उदास था साथ ही साथ रांची में मानसून का यह समय बेहद सुहाना होता है जबकि पटना का मौसम  उमस से भरा होता है। खैर,ट्रेन अपने निधार्रित समय से खुल चुकी थी और कई स्टेशनों को पार करती हुई कोडरमा स्टेशन पर खड़ी थी तभी ट्रेन में लड़कों के बड़े से झुंड ने प्रवेश किया ।सब के सब 18 से 20 वर्ष के। प्रायः सभी के पैरों में हवाई चप्पल और शरीर पर बिल्कुल साधारण कपड़े ।कहते हैं कि "सु करमे नाम की कु करमे नाम " रांची से पटना के बीच गया और  जहानाबाद का ये इलाका अपने दबंगई और उठाईगिरी के लिए बेहद बदनाम है ।अपनी रौ में इस इलाके के लोग पुलिस प्रशासन तक से भिड़ जाते हैं। कुछ प्रकार के अंदेशों के कारण हम उन लड़कों की भीड़ से भयभीत हो उठे ।लेकिन हम ये देख कर हैरान थे कि कोडरमा से लेकर गया तक का रास्ता उन्होंने मैथ्स और फिजिक्स के सवालों से जुड़ी बातों में ही गुजारा ।जहां एक IIT और दूसरी परीक्षाओं  के लिए भयभीत था वहीं दो उसे टिप्स दे रहे थे ।इस तरह पूरी की पूरी टोली अपने आप में  खोई हुई बिना किसी विशेष घटना के गया स्टेशन पर उतर गई ।मैं अपने आप से  शर्मिंदा थी  क्योंकि मैं उन बच्चों से मैं डरी सहमी थी जो उस उम्र के बाकी बच्चों से अलग थे।स्मार्टफोन के इस युग में ये शायद  Nokia1100 में ही सिमटे हुए थे ।न किसी सहयात्री के लिए अनावश्यक व्यंग्य  न कोई राजनीतिक बहस ।कभी गया के पटवा टोली नाम के किसी गाँव के बारे में सुना था  जहाँ से हर साल  लगभग 20  बच्चे तमाम असुविधओं के बाद IIT की परीक्षा पास करते हैं। भले ही ये बच्चे उस गाँव के न रहे हो ।पर कुछ ही समय के साथ के बावजूद इन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
   ये तो एक बार की घटना है लेकिन रोजाना जिंदगी में हम  अक्सर किसी के बारे में  तुरंत बुरी धारणा बना लेते हैं वो चाहे उसके किसी कारणवश फोन नहीं उठाने पर या आज के दौर में wp पर msg देख कर जवाब नहीं देने पर । किसी विशेष परिस्थिति में हमारे मनोकूल व्यवहार न करने पर जो बाद में कई बार हमारे लिए पछतावे का कारण बनता है।तो बस ,"इतनी शक्ति हमें देना दाता भूल से भी कोई भूल हो न".

Tuesday 16 August 2022

मेरी दोनों बेटियों को पालतू जानवरों से बहुत लगाव है ।फिर चाहे वो कुत्ता हो,बिल्ली हो या खरगोश हो । आश्चर्य की बात यह है कि मुझे या मेरे पति को इस तरह का कोई शौक नहीं बल्कि मैं इस बात से अचंभित होती हूं कि ये लगाव उनमें कहां से आ गया ।इसी जुनून के कारण कुछ साल पहले बेटियों ने  एक खरगोश के बच्चे को लाकर पालना चाहा जिसे बस चार महीने में ही  तंग आकर मैंने बाहर का रास्ता दिखा दिया।  वैसे इस बात  मेरी माँ का कहना है कि मेरे नानाजी को हर तरह के पालतुओं का बेहद शौक था और  अपनी जमींदारी के समय उन्होंने अन्य पशु पंछियों के साथ साथ बाघ तक को पालतू बना कर रखा था । जमाने के साथ  मेरे दोनों मामाओं  के घर आज तक  कुत्ते का पालन होता चला आया है।
  धीरे धीरे समय बीतता गया बेटियां बड़ी हो गई और बाहर चली गईं। इसी बीच के दो सालों में सासु मां और पापाजी (ससुर) का देहांत हो गया और घर में रह गए  हम दो प्राणी ।अकसर मैं सुबह सुबह अपनी बालकॉनी से देख कर नीचे रोड पर जाने वाली गायों को रात को बासी रोटी फेंक दिया करती थी। जब इस बात का पता मेरी बड़ी बेटी को चला तो उसने कहा "गाय को तो उसके मालिक के द्वारा भी भोजन दिया जाता है और बहुत से लोग धार्मिक भाव से भी गायों को खिलाते हैं पर इन आवारा कुत्तों पर तो लोग सिर्फ पत्थर और ईंट ही फेंकते हैं इस दुनिया में जीने का हक तो इनका भी है । इसके साथ ही छोटी बेटी ने कहा कि अगर रोटी फेंकने की जगह  इन कुत्तों के लिए  एक निश्चित जगह पर रखा जाए तो क्या अच्छा हो !
बच्चियों की बात मुझे अच्छी लगी और मैं रोज एक ही जगह पर रोटी रखने लगी लेकिन सबसे हैरानी की बात यह है कि जब भी  मैं उन कुत्तों को रोटी रखकर बुलाती तो पत्थर खाने के अभ्यस्त कुत्ते मुझे भोजन देता देखकर ही दूर भागने लगते थे और मुझे फिल्म दबंग का यह डायलॉग अक्सर याद आ जाता कि थप्पड़ से डर नहीं लगता डर तो प्यार से लगता है ।😐😐 
लेकिन ये बात रोटियों को रखने की शुरुआत के समय की है अब धीरे धीरे कुत्तों ने भी रोटियों के आने का इंतजार करना शुरू कर दिया ।

Sunday 14 August 2022

लगभग सात आठ महीने पहले मेरे पति के जान पहचान वाले दुकान पर काम करने वाले एक कर्मचारी ने एक अलग तरह की  प्रार्थना की ।उसकी बहुत सी बातों का सार यह था कि उसकी विवाह योग्य बेटी के लिए एक वर पक्ष मेरे मुहल्ले का था जो उसके लगभग शहर से बाहर वाले आवास पर दूरी के कारण न जाकर अपने वर पक्ष होने का लाभ उठाते हुए उसे तीन चार घंटे के लिए किसी हॉल या होटल का इंतजाम करने पर जोर डाल रहा था ।कन्या के पिता ने मुझे उस अवधि के लिए मेरे घर में कुछेक घंटे के लिए थोड़ी जगह की  बात कही ।चूंकि इस व्यक्ति से हमारा संबंध घरेलू और लगभग 20 वर्ष पुराना हैं तो थोड़ी हिचकिचाहट के बाद मैं इसके लिए तैयार हो गई। वैसे अगर ईमानदारी से कहूं तो इसके पीछे मेरी मंशा  इस देखने दिखाने की प्रथा को नजदीक से देखने की भावना भी थी । यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं मिथिलांचल के श्रोत्रिय ब्राह्मण समुदाय से हूँ जहां न दहेज की विभीषिका ने आज तक अपना फन पसारा है और न ही किसी भी कन्या को वर पक्ष बाकायदा देखने की मांग कर सकता है। संभवत इसका कारण  हमारे समुदाय का कुछ सौएक परिवारों तक सीमित होना हो । आज भी हमारे समाज की  गरीब कन्याएं भी अपने भाग्य और गुणों की बदौलत अच्छे वरों को पाती हैं। 
  जैसा  कि मैंने बताया बचपन से पहले स्कूल और फिर कॉलेज में अपने सहेलियों के मुंह से लड़की दिखाने के बारे में हमेशा सुनती थी और शायद अपनी अल्पबुद्धि के कारण अपने समुदाय में प्रथा नहीं होने के कारण समुदाय के प्रति आक्रोशित भी होती थी ये तो एक उम्र के बाद ही इस प्रथा की बुराइयों का पता चला। तो उस दिन तयशुदा समय पर लड़की अपने माता पिता और एक रिश्ते की बहन जो इस रिश्ते में बिचोलिये की भूमिका में थी उसके साथ पहुंची । मेरी बेटियों की हमउम्र लड़की ने धीरे धीरे तैयार होना शुरू किया और उसकी माँ और बहन ने भारी भरकम नाश्ते (जो वो अपने साथ लाए थे) उसकी व्यवस्था शुरू कर दी । नियत समय से लगभग दो घंटे विलंब से लड़के वाले पूरे लाव लश्कर के साथ आए ।आते ही किसी चीफ गेस्ट की तरह ठंडा गरम और नाश्ते का दौर शुरू हुआ ।लड़की को पहले सूट में फिर साड़ी पहना कर चला कर ,बैठा कर अमूमन हर एंगल से देखा गया ।इसके साथ लड़के के बहिनोई के आग्रह पर गाने से लेकर हिंदी अंग्रेजी में लिखवा कर देखा गया। वर पक्ष की ओर से लगातार पूछे गए सवालों से मैं बिल्कुल झुंझला गई और मुँह से किसी अप्रिय निकले  जाने का सोच कर वहां से हट गई । ये सारा तमाशा  लगभग चार घंटे तक चला और उसके बाद लड़के वाले लड़की तो पसंद है लेकिन हम बताते हैं कहते हुए चले गए । 
उनके जाने के बाद मैंने लड़की के पिता जो उन चार घंटे तक एक कोने में सिर झुका कर निःशब्द बैठे रहे उन्हें बेटी के विवाह के पूर्व बधाई दी तो वो ठठा कर हँस पड़े ।हँसते हुए उन्होंने बताया कि अभी तो इन्होंने हामी भी नहीं भरी है इस लड़के से भी शादी तय होने की स्थिति में सगाई से पहले तीन चार राउंड की देखने की प्रक्रिया बाकी है और इतने पर भी कई बार बात लेन देन पर टूट जाती है । और फिर दूसरे किसी लड़के के लिए एक नए सिरे से बातचीत शुरू होती है। छूटते ही मैंने पूछा ,तो फिर  उतनी ही बार इतना खर्च और मानसिक तनाव ! हाँ ,वो तो करना ही पड़ेगा उनका सहज जवाब था और लड़की इस बार बार खुद के प्रदर्शन के लिए तैयार हो जाएगी ?उसका आत्मसम्मान ,उसे बुरा नहीं लगेगा? नहीं ,बुरा क्यों लगेगा ! अरे ,सब के साथ ही ऐसा होता है तो बुरा लगने की कौन सी बात है ? कन्या के पिता ने सहज उत्तर दिया ।
थोड़ी देर के बाद वो लोग भी चले गए बहुत देर तक मैं बैठी सोचती रही  कि अच्छी भली पढ़ी लिखी लड़की को  लेकिन परंपरा के नाम पर जानवरों की तरह देख परख कर खरीदा जा रहा है जहां अपनी बेटी देने वाला  ही खुशी खुशी पैसे भी  दे रहा है ।आज भी लोग नोट की मोटी गड्डी के साथ लड़कियों गोरी रंगत और ऊंचे कद को  तरजीह देते हैं  नारी मुक्ति और नारी  शिक्षा मात्र  किताबों में ही  अच्छी लगती हैं । आज़ादी के पचहत्तर वर्ष पूरे होने पर भी  न तो दहेज में  कोई कमी आई है और न इस प्रकार की परंपरा में जो कि किसी लड़की के मानसिक यंत्रणा देने के  साथ साथ उसके पिता के आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए जिम्मेदार है। मिला जुला कर बेटी के बाप की स्थिति पहले से भी खराब है क्योंकि अब लड़कियों की पढ़ाई पर होने वाले खर्च में अत्यधिक वृद्धि हुई है और उसके बाद भी दहेज और देखने दिखाने में इजाफा ही हुआ है। 

Friday 15 July 2022

मेरी एक परिचिता की छोटी सी बेटी को मैथ्स के नाम से मानो बुखार लगता था ।परीक्षा से पहले चाहे वो उसकी कितनी भी अच्छी तैयारी हो जाए  परीक्षा का परिणाम हमेशा निराशाजनक ही होता था ।धीरे धीरे उस बच्ची के मन में ये बात घर कर गई कि मैं कभी मैथ्स में अच्छा नहीं कर सकती हूं। किसी शुभचिंतक की सलाह पर उस परिचिता ने अपनी बेटी को होमियोपैथी की प्लेन मीठी गोलियों की शीशी यह कहते हुए दिया कि ये मैथ्स याद रखने की दवा है बस तुम्हें इन चार गोलियों को दिन में चार बार खानी होगी ।इस दिन के बाद बच्ची ने नियम पूर्वक इस दवा को खाया। कहना नहीं होगा कि धीरे धीरे उसका गणित में परिणाम सुधरता गया और दसवीं के बोर्ड में उसने मैथ्स में  शत प्रतिशत नम्बर पाया । 
एक दूसरी घटना भी बच्चों से ही संबंधित है ।घर के दो भाइयों में एक बहिर्मुखी होने के कारण स्कूल के हर वाद विवाद और अन्य प्रदर्शनों में अव्वल रहता था और हमेशा कप और शील्ड के साथ घर आता था जबकि छोटा भाई अंतर्मुखी होने की वजह से इससे वंचित रहता था और इस वजह से मेहमानों के सामने आने से कतराता था ।उस घर के पिता ने एक दिन छोटे भाई को एक छोटा सा कप खरीद कर यह कहते हुए दिया ये तुम्हारे स्कूल की ओर से तुम्हारे सालभर के अच्छे प्रदर्शन के लिए दिया गया है लेकिन तुम्हारे टीचर ने तुम्हें किसी खास कारणवश स्कूल में बताने से मना किया है । बच्चे तो स्वभाव से कोमल और लालची होते हैं ।तो बच्चे ने इस बात को अपने स्कूल के दोस्तों से गुप्त रखा। अब बड़े भाई की जगह छोटा भाई मेहमानों का अधिक इंतजार करता और यहां भी  परिणाम संतोषजनक ही रहा । 
 हालांकि दोनों घटनाएं झूठ पर आधारित थी लेकिन दोनों से  किसी की  हानि नहीं हुई और इन्होंने ये बच्चों के विकास में जादू का काम किया।जहां तक मेरी सोच है आज भी छोटे बच्चों वाली माताएं इसे प्रयोग के तौर पर आजमा सकती हैं। 
बातों के मूल में  छोटे बच्चे या वयस्क उच्च मनोबल के साथ ही कोई भी एक सफल काम को पूरा कर सकता है।

Monday 11 April 2022

26 मार्च को दिन के3:30मिनट पर पापाजी ने  अपनी आखिरी सांस ली। इसके साथ ही14 दिसम्बर से चलने वाले जीवन और मृत्यु के बीच के संघर्ष में मौत जीत गई। उससे एक दिन पहले मैंने उनकी तकलीफ को देखते हुए डॉक्टरों से उन्हें घर ले जाने की प्रार्थना की ।मुझे रोता देख कर वहां खड़ी नर्स ने पूछा "ये आपके पिता हैं ?मैंने कहा नहीं,ये मेरे ससुर हैं ,ये सुनकर आश्चर्य की मुद्रा में उसने कहा "ओह मैंने सोचा आपके पिता हैं ।"संभवतः ससुर के प्रति ऐसी ममता उसे अस्वाभाविक लगी ।
 डेढ साल पहले सासुमां अपने प्रस्थान के समय पापाजी की जिम्मेदारी मुझ पर सौंप कर गई थी ।उस दिन के बाद शायद मैं उनकी (पापाजी की) माँ की भूमिका में आ गई थी। वो मेरे लिए बिल्कुल छोटे बच्चे की तरह हो गए थे चाहे वो छोटी मीठी के साथ मिलकर चोरी छुपे आइसक्रीम खाने जैसी बात हो  या समय से दवाई खाने की हिदायत ।इस बात को पिछले तीन माह की बीमारी ने मेरी इस भावना को कई गुना बढ़ा दिया।
    पूरे परिवार में हर बच्चे के प्रिय पापाजी आठ भाई बहनों में सबसे बड़े थे । बड़े होने के कारण उन्होंने पूरी ईमानदारी से अपने पिता की जिम्मेदारी को बांटा।फिर चाहे वो सरकारी आवास में बड़े से संयुक्त परिवार का निर्वाह हो,भाइयों की पढ़ाई अथवा बहनों का विवाह हो । अपने विवाह के बाद पूरे समय साथ रहते हुए मैंने हर परिस्थिति में  उनके चेहरे पर बच्चों की सी निश्छल हंसी देखी। 
घूमना उन्हें बेहद पसंद था ।किसी भी रूट की ट्रेनों के बारे में  बहुत सी जानकारी उन्हें मुंहजबानी याद थी , रेलवे के कंप्यूटरेशन
होने के पहले पूरे परिवार और मित्रों के लिए पापाजी railway Google  थे । 
   इसी घूमने के क्रम में दोनों पोतियों के लिए  पिछले साल की Goa यात्रा उनके साथ साथ हमारे लिए भी जीवन की अविस्मरणीय याद  बन कर रह  गई।
   माँ के जाने के बाद उनके जीवन मे एक खालीपन आ गया था ।मैं इस बात को मानती हूं कि हमारी अगली पीढ़ी हर बात में हमसे अधिक समझदार है इसका सबूत देते हुए उनके पिछले जन्मदिन पर वसु ने उनके लिए एक Smart TV भेजा।सिनेमा देखना उन्हें प्रिय था पर इतना !पिछले जून से लेकर 15 जनवरी तक बाकायदा लिस्ट बनाकर 198 सिनेमा देख डाली । पूरे परिवार के  लिए उन्होंने 200 सिनेमा पूरे होने पर एक पार्टी का ऐलान कर रखा था और  सभी उनसे पर इस पार्टी का ज़िक्र करना नहीं भूलते ।  पर समय बलवान है और ईश्वर की इच्छा सर्वोपरि ,इस बात को मनाना ही अब  हमारे लिए श्रेयस्कार है।यहां प्रासंगिक है ये गीत जो अक्सर पापाजी गुनगुनाया करते थे  "  चल उड़ जा रे पंछी अब ये देश हुआ बेगाना "😢😢