धीरे धीरे समय बीतता गया बेटियां बड़ी हो गई और बाहर चली गईं। इसी बीच के दो सालों में सासु मां और पापाजी (ससुर) का देहांत हो गया और घर में रह गए हम दो प्राणी ।अकसर मैं सुबह सुबह अपनी बालकॉनी से देख कर नीचे रोड पर जाने वाली गायों को रात को बासी रोटी फेंक दिया करती थी। जब इस बात का पता मेरी बड़ी बेटी को चला तो उसने कहा "गाय को तो उसके मालिक के द्वारा भी भोजन दिया जाता है और बहुत से लोग धार्मिक भाव से भी गायों को खिलाते हैं पर इन आवारा कुत्तों पर तो लोग सिर्फ पत्थर और ईंट ही फेंकते हैं इस दुनिया में जीने का हक तो इनका भी है । इसके साथ ही छोटी बेटी ने कहा कि अगर रोटी फेंकने की जगह इन कुत्तों के लिए एक निश्चित जगह पर रखा जाए तो क्या अच्छा हो !
बच्चियों की बात मुझे अच्छी लगी और मैं रोज एक ही जगह पर रोटी रखने लगी लेकिन सबसे हैरानी की बात यह है कि जब भी मैं उन कुत्तों को रोटी रखकर बुलाती तो पत्थर खाने के अभ्यस्त कुत्ते मुझे भोजन देता देखकर ही दूर भागने लगते थे और मुझे फिल्म दबंग का यह डायलॉग अक्सर याद आ जाता कि थप्पड़ से डर नहीं लगता डर तो प्यार से लगता है ।😐😐
लेकिन ये बात रोटियों को रखने की शुरुआत के समय की है अब धीरे धीरे कुत्तों ने भी रोटियों के आने का इंतजार करना शुरू कर दिया ।
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