आज किसी भी परिवार में पूरे लगन में अगर चार औपचारिक कार्ड्स आते हैं तो उनमें से दो Mr. &Mrs. के नाम से रहते हैं। इस परिस्थिति में वैसे दंपति जिनके छोटे बच्चे हैं और वे अपने बच्चों के साथ शहरों में रहते हैं,शादी और समारोह के इस तरह आमंत्रण के कारण तनाव में आ जाते हैं। व्यक्तिगत रूप से मुझे इस तरह की परेशानी से कभी रूबरू नहीं होना पड़ा क्योंकि मैं हमेशा सौभाग्यवश अपनों के साथ ही रही तो बच्चे हमेशा मेरी अपेक्षा अपने दादा दादी के साथ खुश ही रहते थे।इस संबंध में मेरी एक सहेली, जिनकी सासु मां का देहांत हो चुका है और साथ में वृद्ध ससुरजी रहते हैं,का कहना है कि बच्चों से भी अधिक समस्या बुजुर्गो की हो जाती हैं क्योंकि नौनिहालों को छोड़कर आज कल के बच्चे तो वैसे भी कहीं भी जाना नहीं चाहते हैं लेकिन बुजुर्गों के पल्ले ये बात नहीं आती कि जब एकाध के आने से रोजाना के भोजन में फर्क नहीं पड़ता तो भोज भात में तो पच्चीस पचास लोग से क्या फर्क पड़ेगा ।ये बात अलग है कि उस समय के समारोह में दस लोगों के बराबर का खाना बर्बाद होना भी मामूली बात थी ।
दूसरी तरफ अगर दूसरे पक्ष की ओर से देखा जाए तो शादी ब्याह अब प्राय होटलों या मैरिज हाल में होने लगे हैं जो काफी खर्चीले होते हैं ।किसी भी शादी का खर्च अब हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होता है । पहले परिवार के लोग प्राय: एक साथ, एक ही घर या आस पास के स्थानों में रहा करते थे ,किसी भी समारोह को मिल जुल कर निपटा लिया करते थे ।वो समय ही ऐसा था जब घर ही नहीं बल्कि अगल बगल की औरतें मिलकर रसोई संभाल लेती थी और पड़ोसियों के घरों में आने जाने वालों को ठहराया जाता था । जबकि आज के परिवेश में joint family के टूटने , शिक्षा और रोजी रोटी के प्रसार के कारण लोग काफी दूर हो गए हैं और किसी भी शादी या समारोह का भार कुछेक लोगों पर आ गया है जिसमें भोजन से लेकर रहने की जिम्मेदारी और तमाम कार्य उन्हें ही करना है जो मात्र पैसों के बल ही हो पाता है तो समारोह में मेहमानों की संख्या को सीमित संख्या करना लोगों की लाचारी बनती जा रही है नतीजन पहले मजबूरी और बाद में प्रचलन के कारण हम इस तरह के आयोजनों के आदी होते जा रहे हैं।
किसी भी नई व्यवस्था के अच्छे बुरे दोनों ही पक्ष होते हैं ।तो अगर इन समारोहों के बफे सिस्टम को देखा जाए तो इसमें खाने की बरबादी कम होने की गुंजाइश होती है साथ ही श्रम और समय दोनों की काफी बचत होती है । रोज़गार के क्षेत्र में भी इस दिशा में अपार गुंजाइश है जो शायद Event Management कहला रहा है।
तो बस भूल जाना होगा पुराने समय के उन समारोहों को जिसमें बड़े बड़े विराट बर्तनों में भोज भात का आयोजन होता था और थालियों में ना ना करने के बाद भी भाभी या चाची पूड़ी डाल देती थी ।
"छोड़ो कल की बातें......