डेढ साल पहले सासुमां अपने प्रस्थान के समय पापाजी की जिम्मेदारी मुझ पर सौंप कर गई थी ।उस दिन के बाद शायद मैं उनकी (पापाजी की) माँ की भूमिका में आ गई थी। वो मेरे लिए बिल्कुल छोटे बच्चे की तरह हो गए थे चाहे वो छोटी मीठी के साथ मिलकर चोरी छुपे आइसक्रीम खाने जैसी बात हो या समय से दवाई खाने की हिदायत ।इस बात को पिछले तीन माह की बीमारी ने मेरी इस भावना को कई गुना बढ़ा दिया।
पूरे परिवार में हर बच्चे के प्रिय पापाजी आठ भाई बहनों में सबसे बड़े थे । बड़े होने के कारण उन्होंने पूरी ईमानदारी से अपने पिता की जिम्मेदारी को बांटा।फिर चाहे वो सरकारी आवास में बड़े से संयुक्त परिवार का निर्वाह हो,भाइयों की पढ़ाई अथवा बहनों का विवाह हो । अपने विवाह के बाद पूरे समय साथ रहते हुए मैंने हर परिस्थिति में उनके चेहरे पर बच्चों की सी निश्छल हंसी देखी।
घूमना उन्हें बेहद पसंद था ।किसी भी रूट की ट्रेनों के बारे में बहुत सी जानकारी उन्हें मुंहजबानी याद थी , रेलवे के कंप्यूटरेशन
होने के पहले पूरे परिवार और मित्रों के लिए पापाजी railway Google थे ।
इसी घूमने के क्रम में दोनों पोतियों के लिए पिछले साल की Goa यात्रा उनके साथ साथ हमारे लिए भी जीवन की अविस्मरणीय याद बन कर रह गई।
माँ के जाने के बाद उनके जीवन मे एक खालीपन आ गया था ।मैं इस बात को मानती हूं कि हमारी अगली पीढ़ी हर बात में हमसे अधिक समझदार है इसका सबूत देते हुए उनके पिछले जन्मदिन पर वसु ने उनके लिए एक Smart TV भेजा।सिनेमा देखना उन्हें प्रिय था पर इतना !पिछले जून से लेकर 15 जनवरी तक बाकायदा लिस्ट बनाकर 198 सिनेमा देख डाली । पूरे परिवार के लिए उन्होंने 200 सिनेमा पूरे होने पर एक पार्टी का ऐलान कर रखा था और सभी उनसे पर इस पार्टी का ज़िक्र करना नहीं भूलते । पर समय बलवान है और ईश्वर की इच्छा सर्वोपरि ,इस बात को मनाना ही अब हमारे लिए श्रेयस्कार है।यहां प्रासंगिक है ये गीत जो अक्सर पापाजी गुनगुनाया करते थे " चल उड़ जा रे पंछी अब ये देश हुआ बेगाना "😢😢