Sunday 18 March 2018

गर्मी की शुरुवात होने के साथ ही जब AC सर्विसिंग करने वाले मेरे घर आए और AC वाले बॉक्स को खोला तो पिछले दो साल की तरह उसमें गौरैयों की आवाजाही होने लगी थी और पूरे जोर शोर से घोंसले के निर्माण की प्रक्रिया जारी थी सर्विसिंग वाले लड़कों ने शिकायत के तौर पर मुझसे कहा कि आपने लगातार दो साल  इनका घोसला नहीं हटाने दिया तो इस साल फिर इन्होंने यहीं अपना घोंसला बना लिया ।याद आ गई दो  साल की पहले की बात जब लगभग तैयार घोंसले को देखकर मैंने उन सर्विसिंग वाले लड़को से पूछा कि क्या बिना इसे हटाए आपका काम नहीं हो सकता है ? किसी के भी घर उजाड़ने से बुरी बात तो हो ही नहीं सकती ।भले ही इसके दंड स्वरूप मैंने कई  दोपहर और मुँह अंधेरे से ही उनकी लगातार चीं चीं को झेला हो लेकिन जब इस कंक्रीट के जंगल में नींद अलार्म की जगह उनकी चहचहाहट से खुलती हो तो बहुत भला ही महसूस होता है औऱ तो और कई बार ग्रील में आंखें सटा कर अपने बच्चों के साथ उनके बच्चों को भी देखा है ।शायद तीसरी या चौथी क्लास में मैंने इन्हीं नन्हें परिंदों से जुड़ी "रक्षा में हत्या" जैसी मार्मिक कहानी भी पढ़ी है ।अब अख़बारों के आधे  पन्ने पर  संरक्षण की मुहिम के साथ इन नन्हें जीवों की  तस्वीर देखती हूँ और इनके विलुप्त होने की कगार पर की सूचना पाती हूँ तो आंखें भर आती है क्योंकि इनसे तो हमारा बचपन जुड़ा हुआ है चाहे वो गर्मी की दोपहर हो या  माँ के द्वारा इन्हें दानों देने पर झुंड में आने की आदत हो जिसे मेरी बच्चियां छुटपन में  ननिहाल जाने पर घंटों देखा करती थीं । एक छोटी सी प्लास्टिक की टोकरी और पानी का सकोरा मैंने भी बालकनी में रख छोड़ा है जिसे क्या पता कुछेक को मैं बचा लूँ । सुबह से शाम तक अपने व्यस्त जीवन से समय पाती हूँ  तो मेरा ध्यान लगातार आते जाते इन खेचरों के ऊपर जाता है जो शैशवकाल से अब तक के  मेरे चिरसाथी हैं ।

Wednesday 7 March 2018

सभी को महिला दिवस की शुभकामनाएं ।विगत कुछ वर्षों से इस प्रकार के दिवसों की बाढ़ सी आ गई है ।कई तरह की सभाएं की जाती है नारेबाजी होती हैं ,महिलाओं के हित में कई बातों को दुहराया जाता है लेकिन स्थिति यथावत या पहले से भी बुरी । इसके कारणों  को अगर देखा जाए तो महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन खुद महिलाएं  है  फिर वो चाहे बलात्कार जैसी घटना हो ,दहेज हो या  घरेलू हिंसा हो ।सृष्टि के साथ ही आदमी और औरत दोनों की रचना की गई और दोनों को संसार चलाने का दायित्व दिया गया अर्थात दोनों से साथ साथ चलने की उम्मीद की गई .इस यात्रा में एक कब अपने आप को श्रेष्ठ समझने लगा औऱ कब उसने दूसरे को हेय समझना शुरू कर दिया पता ही नहीं चला लेकिन प्रश्न है कि पुरूष के मन में इस तरह की भावना किसने लाई ?मुझे तो हमेशा से ऐसा लगता है कि इस प्रकार की हालत के लिए न सिर्फ पुरूष बल्कि  महिला भी जिम्मेदार है । किसी भी सफल पुरूष के पीछे अगर कोई औरत है तो पुरुषों की गलतियों के पीछे भी महिला ही है .घर से प्रश्रय पा कर ही वो गलत काम करता है. फिर वो चाहे रिश्वतखोरी हो या कुछ और .जरा याद करें फ़िल्म बेमिसाल को, जब नायिका को उसके दोस्त ने पति के गलत काम के लिए बराबर का  जिम्मेदार ठहराया । फिल्में संदेश तो देती है लेकिन शायद ही  हम उसे समझ पाते हैं  ।नारी सशक्तिकरण  का मतलब हमें पुरुषों को नीचा दिखा कर स्पर्धा मात्र नहीं  रखनी  और न ही छुई मुई बनकर  उनके हर सही गलत काम में हामी भर उन्हें गलती करने को अप्रत्यक्ष रूप से  प्रेरित करना है वरन हमें साथ चलना है क्योंकि दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं एक दूसरे के पूरक हैं।दोनों  मिलकर ही संसार के नियम को चला सकते हैं ।