Wednesday, 7 March 2018

सभी को महिला दिवस की शुभकामनाएं ।विगत कुछ वर्षों से इस प्रकार के दिवसों की बाढ़ सी आ गई है ।कई तरह की सभाएं की जाती है नारेबाजी होती हैं ,महिलाओं के हित में कई बातों को दुहराया जाता है लेकिन स्थिति यथावत या पहले से भी बुरी । इसके कारणों  को अगर देखा जाए तो महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन खुद महिलाएं  है  फिर वो चाहे बलात्कार जैसी घटना हो ,दहेज हो या  घरेलू हिंसा हो ।सृष्टि के साथ ही आदमी और औरत दोनों की रचना की गई और दोनों को संसार चलाने का दायित्व दिया गया अर्थात दोनों से साथ साथ चलने की उम्मीद की गई .इस यात्रा में एक कब अपने आप को श्रेष्ठ समझने लगा औऱ कब उसने दूसरे को हेय समझना शुरू कर दिया पता ही नहीं चला लेकिन प्रश्न है कि पुरूष के मन में इस तरह की भावना किसने लाई ?मुझे तो हमेशा से ऐसा लगता है कि इस प्रकार की हालत के लिए न सिर्फ पुरूष बल्कि  महिला भी जिम्मेदार है । किसी भी सफल पुरूष के पीछे अगर कोई औरत है तो पुरुषों की गलतियों के पीछे भी महिला ही है .घर से प्रश्रय पा कर ही वो गलत काम करता है. फिर वो चाहे रिश्वतखोरी हो या कुछ और .जरा याद करें फ़िल्म बेमिसाल को, जब नायिका को उसके दोस्त ने पति के गलत काम के लिए बराबर का  जिम्मेदार ठहराया । फिल्में संदेश तो देती है लेकिन शायद ही  हम उसे समझ पाते हैं  ।नारी सशक्तिकरण  का मतलब हमें पुरुषों को नीचा दिखा कर स्पर्धा मात्र नहीं  रखनी  और न ही छुई मुई बनकर  उनके हर सही गलत काम में हामी भर उन्हें गलती करने को अप्रत्यक्ष रूप से  प्रेरित करना है वरन हमें साथ चलना है क्योंकि दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं एक दूसरे के पूरक हैं।दोनों  मिलकर ही संसार के नियम को चला सकते हैं ।

No comments:

Post a Comment