Monday 24 September 2018

जहिया  हम अपन छोट बेटी मीठी(विधि नित्या) क रांची कSt.mary's nursery school म एडमिशन लेल ला गेलियन त ओतुका प्रिंसिपल हमरा स इ आग्रह  केलैंन जे सेलेक्शन भेला क बाद हम अपन बच्चा स घर म सेहो इंग्लिश करि ।हम तत्काल हुनकर गप काटि क कहलियेन जे हमरा स इ बात सम्भव नहि अछि किया त हमर घर क बातचीत क माध्यम मैथिली अछि आ अखन त हमर बेटी क त हिंदी सेहो ठीक स नै अबैत छै ।हम हुनका कहलियन्हि जे अपन मातृभाषा क ज्ञान कोनो बच्चा क मायेटा दअ सकैए छै ।घर जा क हम दुनु प्राणी एक बेर फेर स बिचार केलौ जे कि नीक स्कूल म प्रवेश क नज़रिये स घर पर बच्चा स हिंदी बा अंग्रेजी म गप करि या अपन सैकड़ों बरख पुरान मैथिली सिखाबि ।अंत म कोनो भाषा क अतिरिक्त ज्ञान बेटी क हित म हेतइ से सोचि क अपन पुरान ढर्रा चालू रखलौ ।हमर स्पष्टवादिता कहि हमर बेटी क addimission म बाधक नै भअ जै अई बात स हम दुनु गोटा सशंकित छेलौ परंच हमर गप बुझ्याए ओइ प्रिंसिपल क नीक लगलैन आ बेटी क एडमिशन भेट गेलै ।आइ हमर दुनु बेटी हिंदी आ अंग्रेजी क संगे संगे मैथिली सेहो खूब नीक स बजेए आ कएक बेर ओहेन धिया पूता क देख क आनंदित होइत रहिये जे मात्र अपन माय क गलती स एकटा भाषा क ज्ञान स वंचित रहि गेल ।सब बेर जेका हमरा लिखैत काल म अपन बचपन याद आबि जाइये जखन हम तीनू भाइ बहीन लंबा छुट्टी क बाद गाम स रांची जाइ आ हिंदी बिसरि क कोनो हिंदीभाषी क देख क लजा जाए ।एहेन नै छै जे मैथिली हमर सब क बपौती अछि हमर सासुर आ नैहर क परिवार म अनेकों आन जाति क कनिया सब एली आ कोशिश कअ क मैथिली सीख लेलैथ आ हम सब शहरीकरण क चपेट म आबि क बच्चा क एकटा भाषा क ज्ञान स वंचित करै छियै ।कोनो अन्जान जगह पर अंचिह्हार लोक क भाषा केना एक सूत्र म बान्हि लई छै एकर उदाहरण विदेशों म कएक बेर भेट जाइ छै आ ओतय अनजान लोक  मात्र भाषा दुआरे सहायता सेहो करै छै ।आइ हम सब दशमी छोरि क नवरात्र मनबई छी बच्चा सब माछ नै खाय चाहेये जखन कि दरभंगा महाराज अपन लोगो माछ क बनेने रहैत ।कएटा एहेन पाबइन आ विध अपना सब छोरने जाए छी लेकिन कहियो अहि विध क बारे म बरियाती म बिना नोन क तरकारी क चर्चा स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन अपन आत्मकथा म सेहो  केने रहैथ ।
हमर पूरा लेख क नकारात्मक विचार क बाद हम चर्चा करअ चाहब अपन सासुर दुर्गागंज क जतय मैथिली क आइयो एकटा सम्मानित स्थान छै एतुका लेखिका क  साहित्य अकादमी क सर्वोच्च पुरस्कार स पुरस्कृत कएल गेल छैन ।इ एहेन गामछी जतय मैथिल क संगे बंगाली , मुस्लिम आ आन जाति क लोक मैथिली बजेए ।

Monday 17 September 2018

कभी किसी के मुंह से सुना था जिंदगी में माँ बाप के अलावा हर एक चीज़ दुबारा हासिल की जा सकती है इस बात को पापा के जाने के बाद ही महसूस किया । लगभग एक महीने से अधिक समय बीतने के बाद भी पता नहीं हर वक़्त एक ख़ालीपन ।पता नहीं क्यूँ अपने हर  रिश्तेदार,दोस्त और मिलने वालों से नज़र मिलते ही एक उम्मीद ,शायद पापा के बारे में जानना चाहे और अगर उसने उस बारे कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो एक निराशा । तभी याद आती है एक कहानी जिसमें एक महात्मा ने एक माँ  जो जवान बेटे के  चल बसने  पर दुःख से पागल हो रही थी उसे अपनी शक्ति से बेटे के दुबारा जीवित करने का विश्वास दिलाया लेकिन शर्त यह थी कि वो उन पाँच घरों से एक मुट्ठी चावल ले आए जिस घर में कोई मौत नहीं हुई हो ।नतीजा  निशब्द । ऐसे में अपने आप से किया गया एक वादा कि यथा संभव हर एक के दुःख को बांटने की कोशिश करूँ क्योंकि तकलीफ तो तब  समझ में आती है जब खुद पर बीतती है।

Sunday 26 August 2018

जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं ।इसी फलसफे पर थी मेरे पापा की जिंदगी ।बिल्कुल अपने स्वभाव के अनुसार बिना किसी को कोई तकलीफ दिए  10 अगस्त को उनका निधन हो गया औऱ इसी के साथ अंत हो गया एक ऐसे कर्मठ व्यक्ति का जिसने जिंदगी की हर चुनौती को हंसते हंसते स्वीकार किया फिर चाहे वो पारिवारिक परेशानी हो,आर्थिक समस्या हो या शारीरिक तकलीफ हो । वैसे तो  रोग की तकलीफ  22 सालों से उनके साथ था लेकिन उनकी जिंदगी की उल्टी गिनती अर्थात काउंट डाउन पिछले अगस्त से शुरू हो गई थी जब पटना में हृदय रोग  विशेषज्ञ ने  उनकी हृदय की स्थिति देख कर उनके  इतने सालों के जीवन पर आश्चर्य किया । औऱ किसी भी क्षण उनके प्राणान्त होने की भविष्यवाणी कर दी ।उस डॉक्टर के दिए गए परहेजों के साथ पापा अपनी दिनचर्या में खुश थे ।पापा के उसूल अंत तक उनके साथ बने रहे छात्र जीवन से ही वो RSS के विचारों से प्रभावित थे तो जब उनकी मौत के चंद दिनों बाद बाजपेयी जी का निधन हुआ तो वहाँ मौजूद लोगों के लिए यह एक चर्चा का विषय था ।मेरे पास जितना ही है मैं इसी में निर्वाह करूंगा औऱ इसके लिए न कभी उन्होंने अपने अतिसमृद्ध ससुराल से कुछ लेना चाहा औऱ न ही अपने संतानों से । पेंशन नहीं होने की स्थिति में अपनी जरूरतों को उन्होंने मितव्ययता के चाबुक से साधा था ।दो भाइयों और एक छोटी बहन के असमय निधन से वो विचलित तो हुए पर कर्तव्यच्युत नहीं ।भाइयों की विधवाओं को पुत्रीवत मानकर समाज की वर्जनाओं की अवहेलना की । आज जब पापा के निधन के बाद पापा के बारे में कुछ लिखना चाहती हूं मेरे सामने एक ऐसी छवि आ जाती है जिसके आंखों में  बेहद कम रोशनी थी जो शारीरिक रूप से दुर्बल होते हुए भी  सिध्दान्त का बिल्कुल पक्का था ।कभी किसी को मैंने श्मशान को बारात कहते हुए सुना था तो हमने एक ऐसे बारात को देखा जिसमें उनके शुरुवाती मित्र से लेकर वार्धक्य के परिचित शामिल थे ।जिस रांची के कारण वो कहीं रहना नहीं चाहते थे उसी रांची के लोगों नेअंतिम विदाई की घड़ी में हाथोंहाथ लिया ।ये उन्हीं के बनाए मानवीय रिश्ते थे कि हमारे शोकसंतप्त परिवार को लोग हर प्रकार की सहायता देने को तैयार थे ।ये कैसी आश्चर्य की बात है लोग उस व्यक्ति के लिए अपना बहुमूल्य वक़्त दे रहे थे उनसे संबंध नहीं अनुबंध से बंधा था ।अब भी जब बिल्कुल सुबह मोबाइल की घंटी बजती है तो अनायास ही लगता है , पापा का फोन होगा 😢😢

Thursday 2 August 2018

इस पोस्ट को लिखने से पहले मैं एक बात स्पष्ट करना चाहती हूं कि इसे लिखने के पीछे  मेरे मन में आत्मश्लाघा की भावना कदापि नहीं है बल्कि अपने एक छोटे से प्रयास से सबको अवगत कराना चाहती हूं ।पिछले दो महीनों से जिस अपार्टमेंट में हम रहते हैं उसके रंग रोगन का काम चल रहा था ।वैसे ये काम काफी पहले हो जाने की बात लगभग एक साल से चल रही थी ।खैर  मई जून की चिलचिलाती धूप में  करीब करीब 18 से 20 मजदूरों ने रस्सी पर लटकते हुए इसे पूरा किया मजे की बात यह थी कि सभी मजदूरों की उम्र अधिक से अधिक बीस की होगी ।जब छोटी थी तो माँ की इस बात से झल्ला जाती कि कोई भी मेरी उम्र की लड़की मेरी माँ को मुझ जैसी कैसे  लगने लगती है लेकिन अब शायद इसी प्रकार की भावना के कारण मैंने काम करने के दौरान  बच्चों(मजदूरों)को शरबत और ठंडे पानी पिलाने की छोटी सी मदद देनी चाही । रंग रोगन काम अच्छे से निबट गया । इस सारे प्रकरण के बाद हमने ( हम दोनों पति पत्नी) ने पेड़ लगाने की ठानी ।अब जब हम अपार्टमेंट के पिजड़े में रहते हैं तो इस प्रकार के शौक तो शायद हँसी उड़ाने वाली बात कही जाएगी ।लेकिन पटना में बारिश होने से पहले शायद ही कोई छुट्टी का दिन रहा हो जिसे हमने गाड़ी के द्वारा जगह जगह से मिट्टी लाने में न व्यतीत किया हो ।जब मिट्टी और खाद आ गए तब बारी आई उन्हें पेंट वाले ड्रमों में भरने की और अंतत फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से लाए गए पेड़ो को रोपने की तो ये काम पूरा हुआ अपार्टमेंट के छोटे बच्चों के द्वारा ।मेरी समझ से छोटे बच्चों से पेड़ लगवाने के दो फायदे हैं पहला बच्चों में एक सामाजिक चेतना आती है और सबसे बड़ी बात कि उनके द्वारा लगाए पेड़ उनकी जिम्मेदारी बन जाती है और कम से कम ये पेड़ पानी की कमी से कभी नहीं मरेंगे क्योंकि मैंने बच्चों को अपने वाटर बोतल से भी पेड़ों को पानी देते देखा है ।मजे की बात है कि अब अपार्टमेंट में  पेड़ों के नाम आँवला ,नीम या गुलमोहर की जगह पूर्वी,साक्षी ,श्रुति और निवि ही नहीं हर्ष और क्रिशू भी हैं !☺☺☺

Friday 20 July 2018

कुछ दिन पहले मेरी एक निकटस्थ सखी अपने बच्चे के साथ मेरे घर आई ।जितनी देर वो मेरे पास बैठी अपने बेटे के बात करने के लहजे से शर्मिदगी महसूस करती रही ।एक नौ दस साल के बच्चे के बात चीत ने उसकी माँ को असहज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कभी वो बच्चा हम बड़ों के बीच बड़ों के विषय में अपनी टिप्पणी देने लगता और कभी कोई औऱ बदतमीजी करने लगता हालांकि उसकी माँ उस समय उसकी हरकतों के लिए मना कर रही थी ।लेकिन बच्चा था कि थोड़ी देर बाद फिर अपनी पुराने ढ़र्रे पर वापस आ जाता ।कहते हैं बिल्कुल छोटे बच्चे भगवान का रूप होते हैं और जब तक अबोध हैं तब तक तो बादशाह हैं अर्थात उनकी मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती अगर धार्मिक मतों को माने तो  जैसे जैसे वो बड़े होते हैं उनका संपर्क दुनिया से होता है वैसे वैसे वे भगवान से दूर होते जाते हैं ।पिछले दिनों कनाडा के प्रधानमंत्री के नन्हा सा बालक जो कि अपने माता पिता के साथ भारत के दौरे पर आया हुआ था अपने बाल हरकतों के कारण पूरे मीडिया में  चर्चा का विषय था ।उस नटखट को ये नहीं मालूम कि वो किसी देश के प्रधानमंत्री का बेटा है और एक राष्ट्र प्रमुख उसे दुलार रहे हैं वो नादान तो इस बात से बिल्कुल बेखबर था कि किसी मंदिर या राष्ट्रीय स्मारक पर किस तरह का व्यवहार किया जाए ।ये सारी हरकतें उसके उम्र के हिसाब से सबको लुभा रही थीं औऱ शायद आज तक किसी विदेशी बच्चे ने इस तरह से लोगों का ध्यान अपनी ओर नहीं खींचा था ।हीरा जैसा मूल्यवान पत्थर अगर सही तरीके से तराशा नहीं जाए तो उसकी कोई कीमत नहीं होती मेरी अल्पबुद्धि के अनुसार  ठीक वही बात एक बच्चे के साथ भी है जो भोली हरकतें और बचपन में की गई बातें सबको लुभाती हैं अगर उम्र के साथ नहीं बदली वो लोगों की नज़र में खटकने लगती है ।मेरे एक पारिवारिक मित्र के बच्चे अपनी शिष्टाचार से सबका मन मोह लेते हैं ।उन बच्चों की बातों में सभी के लिए प्रशंसा या किसी की बुराई न करना अभिभावक के सकारात्मक सोच को जाहिर करता है ।  कोई भी बच्चा अपने व्यवहार के द्वारा अपने माता पिता का प्रतिनिधित्व करता है तो कभी कभी तो मुझे हमारे शास्त्रों के अनुसार बच्चे का मार्गदर्शन करना ही उचित प्रतीत होता है वैसे भी मैथिली में कहते हैं कि अपना दुआरे बच्चा काने त काने बच्चा दुआरे अपने नै कानी अर्थात आपके कारण बच्चा रोए तो कोई बात नहीं बच्चे के कारण आप न रोए !

Wednesday 11 July 2018

अपने दो महीने के इंटर्नशिप के लिए मेरी बेटी आजकल पिथोरागढ़ के एक छोटे से कस्बे में Avni नाम के एक organization में काम कर रही है ।हल्द्वानी से टैक्सी से लगभग 7-8 घंटे की दूरी पर स्थित ये संस्थान विगत कई सालों से बच्चों को अपने यहाँ काम के साथ साथ रहने और खाने की सुविधा मुहैया करा रहा है ।  बचपन से ही मैंने गढ़वाल और कुमाऊँ के बारे में कई उपन्यासों को पढ़ा है मेरी रूचि को जानते हुए वो मुझे वहां के लोगों के रहन सहन से लेकर खाने पीने की बातें बताती है औऱ उसकी बातो की सजीव चित्रण सेे मैं शायद  वहां काम करने वाले हर कर्मचारी और चंपे चंपे को बखूबी जान गई हूं । इसके अलावा उसकी बातों में स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति का भी जिक्र रहता है । कुल मिलाकर मैंने ये समझा वे बेहद मिलनसार और संवेदनशील लोग हैं जिन्होंने इन दो महीनों में हर तरह से मेरी बेटी को प्रभावित किया क्या ये दाद देने की बात नहीं कि वहां काम करने वाले छोटे से कर्मचारी ने अपने सीमित आमदनी में  से  बेटी को कैंटीन के नियमित खाने की जगह  जबरदस्त आग्रह के साथ स्वादिष्ट भोजन बस इसलिए खिलाया गोकि उसकी मम्मी ये न कहे कि वो दो महीनों में दुबली हो गई है । अपनों से दूर उस लड़की ने पहली बार अपने जन्मदिन की सुबह अपने को पहाड़ी फूलों से घिरा पाया जोे  उन छोटे  बच्चों में  हाथों में थे जिन्हें वो कई दिनों से पेंटिग सीखा रही थी । हर सुबह जब बेटी से बात करती हूं तो  वे वहाँ के छोटे  बड़े कर्मचारियों के सहृदयता का सबूत देती है।इन सभी बातों से भावुक होकर जितनी बार मेरी बच्ची उनसे
दुबारा आने की बात करती है सारे लोगों का एक ही जवाब नहीं ,आप नहीं आओगे कहते सभी हैं लेकिन आज तक एक भी इंटर्न दुबारा नहीं आया ।क्या कहा  जाए उन लोगों के लिए जो इस बात को जानते हुए अपना स्नेह दोनों हाथों से लूटा रहे हैं उसके लिए जिससे वापसी की कोई उम्मीद नहीं ।क्या इसी भावना को समझते हुए कई  सफल हिंदी फिल्मों की कहानी  नहीं बुनी गई !

Thursday 5 July 2018

पिछले दिनों संजू नामक फ़िल्म अखबार से लेकर सोशल मीडिया और सभी बच्चे बड़े के ऊपर हावी है ।सुना है इस फ़िल्म ने सहज ही करोड़ों की कमाई का आंकड़ा पार कर लिया है । व्यक्तिगत तौर पर मैं बहुत कम फिल्में देखती हूँ इसलिए जब भी किसी नई चर्चित सिनेमा के संबंध में सुनती हूँ तो जानकारी के बाद ही देखना चाहती हूं ।एक ऐसा व्यक्ति जिसकी पूरी जिंदगी ही उसके कुकर्मों की वजह से  विवादों में घिरी हो ,जो अपनी माँ के मौत  से लेकर विदेश में शूटिंग जाते वक्त भी   नशे में डूबा रहता हो और  मादक द्रवों को तस्कर की तरह  रखता हो जो कभी गैरकानूनी तरीके से हथियार रखने के कारण पकड़ में आता हो ।जिसने अपनी जिंदगी में तीन शादियों के बाद भी 300 से अधिक महिलाओं से संबंध बनाने की स्वीकारोक्ति किया  हो उसकी जिंदगी की कहानी ।मुझे इस प्रकार के पिक्चर बनाने वालों जितना क्रोध नहीं आता उससे अधिक तरस आता है हमारी  हिंदुस्तानी जनता पर जो पदमावत पर  बवाल मचाती है और इसे करोड़ों तक पहुँचाती हैं ।बायोपिक वाली फिल्मों में मैरी कॉम ,मिल्खा सिंह और धोनी जितनी उत्कृष्ट कही जाए ऐसी फिल्में उतनी ही निकृष्ट  हमारी जनता तो इतनी ही भावुक है कि उसने जयललिता को भष्ट्राचार के बावजूद देवी का दर्जा दे दिया । कल से लगातार संजू  को देखने की ज़िद को नकारने पर बेटी ने झल्ला कर  कहा कि चलो तुम परमाणु ही देख लो । pokhran nuclear test  पर बनी इस फ़िल्म ने मुश्किल से 55 करोड़ का आंकड़ा पार किया जबकि  इसमें हमारे देश के गौरव के साथ साथ स्वर्गीय ऐ पी जे अब्दुल कलाम के प्रति श्रद्धांजलि देने लायक बात थीं ।  भौतिकता
के इस युग में क्या हम युवा पीढ़ी को एक ऐसे देशद्रोही और बिगड़ैल जैसा बनने को प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं जो न तो कभी  अच्छा बेटा बना न अच्छा पति और अच्छे नागरिक की बात तो रहने ही दिया जाए

Friday 29 June 2018

पिछले महीने रांची गई थी पता चला कि पूरे झारखंड में  पॉलीथीन बैन है ।सब्जी ,फल या किराने के सामान के लिए लोगों ने घर से निकलते समय अपने साथ कपड़े के थैले लेने शुरू कर दिए हैं ।अच्छी पहल है सरकार की सुना है झारखंड के अलावा और भी कई राज्यों में भी सरकारी तौर पर
पॉलीथीन को बैन कर दिया गया है ।लेकिन पॉलीथीन तो मात्र सब्जी और किराने में ही तो इस्तेमाल नहीं होता अगर अपने आसपास नज़र दौड़ाए तो आटा चावल से लेकर सर्फ साबुन तक पॉलीथीन से बना हर वो सामान जिसे हम अपनी दिनचर्या में शामिल करते हैं प्लास्टिक से निर्मित । अंतर सिर्फ इतना है कि इनमें बड़ी बड़ी कंपनियां शामिल हैं ।अगर हमारे पास एक टाइम मशीन जैसी कोई उपलब्धि होती तो मैं इस पीढ़ी को 25-30साल पहले लेकर जाती जिसे हम ठोंगा युग कह सकते हैं ।एक ऐसा युग जहां हर छोटे बड़े सामान के लिए ठोंगा का इस्तेमाल होता था जिसका निर्माण कुटीर उद्योग के तौर पर होता था ।आटे की बनी लेइ से साटकर बना वो ठोंगा अगर किसी फ़िल्मी मैगज़ीन या किसी बच्चों की कहानियों की किताब  से बनाया गया तो निश्चय ही मेरी जैसी लड़कियां उसे सावधानी पूर्वक खोलकर पढ़ने का प्रयास जरूर करती थी ।इसी तरह बचपन में कई बार हमने चीनिया बादाम वाले के पास से मिली कॉपी के पन्नों पर कम अंक पाने वाले विद्यार्थियों के प्रति चिंता और उपहास भी जताया है ।उफ्फ ! कहाँ है वो दिन जब रांची से लेकर गाँववाला झरिया दुकानदार छोटी घरेलू सामान को कागज के पुड़ियों में मोड़ कर देता था और इन्हीं पुड़िया और ठोंगों की तिलिस्म दुनिया में बचपन बीतता था ।

Wednesday 27 June 2018

पिछले कुछ समय से  एक बीमारी सुनने में आती  है stress अर्थात तनाव ।ये stress के शिकार सबसे अधिक कम  उम्र के लोग ही हैं चाहे छोटा सा बच्चा हो या कोई किशोर  ।अगर ध्यान दिया जाए तो किसी भी पारिवारिक समारोह में बच्चों को देखा जाए तो ,पहले तो  वो  अपने दोस्तों के अलावा किसी रिश्तेदार के घर जाने को तैयार ही बड़ी मुश्किल से होते हैं अगर गलती से माता पिता के साथ आ भी जाए तो भले ही उन्होंने कितने भी महंगे कपड़े और जूते क्यूँ न पहने हो लगभग  सभी के चेहरे पर एक अजीब सा तनाव ।  स्मार्ट फोन आने के बाद से ये बच्चे  किसी कोने में बैठे  मोबाइल पर गेम खेलते हुए  ही मिलेंगे न पहले के बच्चों की तरह दौड़ने खेलने का शौक और न ही  स्वादिष्ट भोजन संबंधी रुचि । लगातार इन नौनिहालों के तनावग्रस्त चेहरे को देखकर लगता है कि पूरे समारोह के संचालन संभवत इन्हीं के कमजोर कंधों पर है ।इसी तरह बच्चों के आंखों पर लगने वाले चश्मे की बढ़ती हुई संख्या भी शायद ही किसी का ध्यान अपनी ओर न खींचे पहले माँ बाप के आंखों की कमजोरी या उम्र ही चश्मा चढ़ने की वजह होती थी लेकिन अब बिना चश्मे के बच्चों की संख्या घटती जा रही है ।  इस बारे में चिकित्सकों  की राय क्या है मैं नहीं जानती लेकिन इस उम्र के कई  बच्चों को
मैंने माइग्रेन ,शुगर और लो बीपी  जैसी बीमारियों से परेशान भी देखा है  ।क्या फायदा हमारे विकास का ,कैसे हम एक स्वस्थ भविष्य की कामना करें जबकि इसकी नींव ही खोखली होती जा रही है ।कारण चाहे जो भी हो अनियमित दिनचर्या ,नींद की कमी, खाने में जंक फूड की अधिकता से  घटती पोषकता परिणाम तो भयावह है न ।

Friday 25 May 2018

एक हफ्ते पहले शाम हम कहीं से लौट रहे थे। रास्ते में एक बड़ी सी और सुंदर सी शोरूम ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींचा ।पहली नजर में हमें वो आइसक्रीम पार्लर ही लगा जब नज़दीक गए तो पता चला ये ताज़ा पिसे आटा ,सत्तू और बेसन की चक्की है जिसे भूरे कागज की थैली में पैक कर होम डिलीवरी करवाया जाता है ।वहाँ चमकती हुई चक्की से लेकर पॉलीथिन की जगह कागज में पैक करवाने के ढंग से हम अभिभूत हो गए और इसे आजमाने की ठानी ।खैर रोटी बनाने तक हम उत्साह में थे बहुत ही मुलायम रोटी के साथ हम दोनों पति पत्नी अपने बचपन में पहुंच गए जब गेहूं खरीदने से लेकर धोने ,सुखाने और उसे आटा चक्की से पिसाना हर घर के लिए जरूरी था लेकिन इस उत्साह में अचानक तब पूर्णविराम लग गया जब बेटी ने खाते के साथ इसे बिल्कुल बेकार कह दिया कि इसमें  स्वाद ही नहीं है ।मैं अपनी ओर से उसे कितनी ही बार इस आटा की शुद्धता और फायदे की बात कहूँ लेकिन वो रोटी कभी भी  उसे पहले सी नहीं लगी ।ठीक ऐसे ही मेरी एक सहेली का कहना है कि जब हम गाँव जाते हैं तो गाय के शुद्ध दूध पीते ही बच्चों के पेट बिगड़ जाते हैं जबकि डेयरी के दूध से ऐसा नहीं होता । मेरे ख्याल से इसी तरह बेईमानी और भ्रष्टाचार के हम इतने आदी हो चुके हैं कि ईमानदारी हमसे बर्दाश्त ही नहीं होती ।किसी भी ईमानदार व्यक्ति को अपनी जिंदगी में न सिर्फ आर्थिक या सामाजिक बल्कि कई बार अपने औऱ अपनों की सुरक्षा को भी दांव पर लगाना पड़ता है । परिवार में भी अच्छी तरह से जिम्मेदारी निभाने वाले की ही पैर खिंची जाती है और तो और  सबका कोपभाजन वहीं होता है जो सबकी मदद करता हो ।वहीं जो परिवार के लिए कुछ भी नहीं करता उसे कोई कुछ नहीं कहता । फिर भी हम जिस तरह से उस शुद्ध आटे के पक्ष में कई तर्क देकर उसे अच्छा साबित करने की कोशिश करते हैं ठीक उसी प्रकार कोई भी चाहे कितना भी बेईमान और भ्रष्ट क्यों न हो अपने बेटे को अच्छे बनने की ही सीख देता है ।एक बड़े अपराधी के हृदय में कहीं न कहीं अपने बच्चे को अच्छा
इंसान बनाने की चाह तो होती ही है न ।

Friday 11 May 2018

आज मदर्स डे है। वैसे मुझे इसप्रकार
के दिनों को मनाए जाने का कोई खास तुक नज़र नहीं आता क्योंकि आज भी हम किसी अपने को  बीमारियों में गेट वेल सून का संदेश देने की जगह उसकी किसी भी  प्रकार से मदद करने में  ही  विश्वास करते हैं ।हमने अपने छुटपन में टीचर्स डे,चिल्ड्रनस डे और स्कूल डे मनाया है ।इंडिपेंडेंस डे और रिपब्लिक डे तो हमारे जीवन की अनिवार्यता में जुड़ी है ।शायद सोशल मीडिया ने इस तरह के दिवसों को बढ़ावा दिया है ।खैर जब बात माँ की आती है तो बचपन से लेकर अब तक माँ से संबंधित सारी बातें याद आ जाती हैं ।कहते हैं अजातशत्रु को उस समय अपने पिता की भावना समझ में आई जब वह खुद पिता बना उसी प्रकार हमने बच्चों से संबंधित परेशानियों का सामना किया तो मेरे दिमाग में ये बात आई कि हमारे बचपन में माँ अमुक बात को क्यों रोकती थी और साथ ही  वो तमाम निर्देश भी याद आते हैं । शादी के बाद का कोई वाकया जब मेरे मात्र फोन पर हेलो  कहने से माँ का ये समझ लेना कि मैं परेशान हूँ तब तक नहीं समझ पाई थी जबकि खुद होस्टल से बेटी की एकआवाज से ही उसकी किसी दिक्कत को नहीं भाँप लेने लगी । सोचकर देखें तो बचपन से ही हम माँ से न जाने कितनी ही बार रूठें होंगे कितनी ही बार अपनी बात मनवाने के लिए  माँ से लड़ाईयाँ की होंगी लेकिन  दुनिया में तो ऐसी माँ ही होती है जो बच्चों के कितने ही भले बुरे बोलने के बाद भी सब कुछ भूल कर फिर से उसे सही सलाह देती है । आज जब स्वयं दो किशोरवय पुत्रियों की माँ हूँ यह सोचकर कई बार  ग्लानि से भर जाती हूँ कि किशोरावस्था में न जाने कितनी ही बार जब माँ ने  किसी काम करने को कहा और मैंने छुटते ही नहीं करूंगी ऐसा कह दिया ,वहीं जब शादी हुई जिम्मेदारी बढ़ी तो मन और बेमन से कितने काम किए क्योंकि माँ के अलावा किसी और को तो साफ इंकार नहीं कर सकते न 😢😢