Friday, 11 May 2018

आज मदर्स डे है। वैसे मुझे इसप्रकार
के दिनों को मनाए जाने का कोई खास तुक नज़र नहीं आता क्योंकि आज भी हम किसी अपने को  बीमारियों में गेट वेल सून का संदेश देने की जगह उसकी किसी भी  प्रकार से मदद करने में  ही  विश्वास करते हैं ।हमने अपने छुटपन में टीचर्स डे,चिल्ड्रनस डे और स्कूल डे मनाया है ।इंडिपेंडेंस डे और रिपब्लिक डे तो हमारे जीवन की अनिवार्यता में जुड़ी है ।शायद सोशल मीडिया ने इस तरह के दिवसों को बढ़ावा दिया है ।खैर जब बात माँ की आती है तो बचपन से लेकर अब तक माँ से संबंधित सारी बातें याद आ जाती हैं ।कहते हैं अजातशत्रु को उस समय अपने पिता की भावना समझ में आई जब वह खुद पिता बना उसी प्रकार हमने बच्चों से संबंधित परेशानियों का सामना किया तो मेरे दिमाग में ये बात आई कि हमारे बचपन में माँ अमुक बात को क्यों रोकती थी और साथ ही  वो तमाम निर्देश भी याद आते हैं । शादी के बाद का कोई वाकया जब मेरे मात्र फोन पर हेलो  कहने से माँ का ये समझ लेना कि मैं परेशान हूँ तब तक नहीं समझ पाई थी जबकि खुद होस्टल से बेटी की एकआवाज से ही उसकी किसी दिक्कत को नहीं भाँप लेने लगी । सोचकर देखें तो बचपन से ही हम माँ से न जाने कितनी ही बार रूठें होंगे कितनी ही बार अपनी बात मनवाने के लिए  माँ से लड़ाईयाँ की होंगी लेकिन  दुनिया में तो ऐसी माँ ही होती है जो बच्चों के कितने ही भले बुरे बोलने के बाद भी सब कुछ भूल कर फिर से उसे सही सलाह देती है । आज जब स्वयं दो किशोरवय पुत्रियों की माँ हूँ यह सोचकर कई बार  ग्लानि से भर जाती हूँ कि किशोरावस्था में न जाने कितनी ही बार जब माँ ने  किसी काम करने को कहा और मैंने छुटते ही नहीं करूंगी ऐसा कह दिया ,वहीं जब शादी हुई जिम्मेदारी बढ़ी तो मन और बेमन से कितने काम किए क्योंकि माँ के अलावा किसी और को तो साफ इंकार नहीं कर सकते न 😢😢

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