Friday, 25 May 2018

एक हफ्ते पहले शाम हम कहीं से लौट रहे थे। रास्ते में एक बड़ी सी और सुंदर सी शोरूम ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींचा ।पहली नजर में हमें वो आइसक्रीम पार्लर ही लगा जब नज़दीक गए तो पता चला ये ताज़ा पिसे आटा ,सत्तू और बेसन की चक्की है जिसे भूरे कागज की थैली में पैक कर होम डिलीवरी करवाया जाता है ।वहाँ चमकती हुई चक्की से लेकर पॉलीथिन की जगह कागज में पैक करवाने के ढंग से हम अभिभूत हो गए और इसे आजमाने की ठानी ।खैर रोटी बनाने तक हम उत्साह में थे बहुत ही मुलायम रोटी के साथ हम दोनों पति पत्नी अपने बचपन में पहुंच गए जब गेहूं खरीदने से लेकर धोने ,सुखाने और उसे आटा चक्की से पिसाना हर घर के लिए जरूरी था लेकिन इस उत्साह में अचानक तब पूर्णविराम लग गया जब बेटी ने खाते के साथ इसे बिल्कुल बेकार कह दिया कि इसमें  स्वाद ही नहीं है ।मैं अपनी ओर से उसे कितनी ही बार इस आटा की शुद्धता और फायदे की बात कहूँ लेकिन वो रोटी कभी भी  उसे पहले सी नहीं लगी ।ठीक ऐसे ही मेरी एक सहेली का कहना है कि जब हम गाँव जाते हैं तो गाय के शुद्ध दूध पीते ही बच्चों के पेट बिगड़ जाते हैं जबकि डेयरी के दूध से ऐसा नहीं होता । मेरे ख्याल से इसी तरह बेईमानी और भ्रष्टाचार के हम इतने आदी हो चुके हैं कि ईमानदारी हमसे बर्दाश्त ही नहीं होती ।किसी भी ईमानदार व्यक्ति को अपनी जिंदगी में न सिर्फ आर्थिक या सामाजिक बल्कि कई बार अपने औऱ अपनों की सुरक्षा को भी दांव पर लगाना पड़ता है । परिवार में भी अच्छी तरह से जिम्मेदारी निभाने वाले की ही पैर खिंची जाती है और तो और  सबका कोपभाजन वहीं होता है जो सबकी मदद करता हो ।वहीं जो परिवार के लिए कुछ भी नहीं करता उसे कोई कुछ नहीं कहता । फिर भी हम जिस तरह से उस शुद्ध आटे के पक्ष में कई तर्क देकर उसे अच्छा साबित करने की कोशिश करते हैं ठीक उसी प्रकार कोई भी चाहे कितना भी बेईमान और भ्रष्ट क्यों न हो अपने बेटे को अच्छे बनने की ही सीख देता है ।एक बड़े अपराधी के हृदय में कहीं न कहीं अपने बच्चे को अच्छा
इंसान बनाने की चाह तो होती ही है न ।

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