पिछले कुछ समय से एक बीमारी सुनने में आती है stress अर्थात तनाव ।ये stress के शिकार सबसे अधिक कम उम्र के लोग ही हैं चाहे छोटा सा बच्चा हो या कोई किशोर ।अगर ध्यान दिया जाए तो किसी भी पारिवारिक समारोह में बच्चों को देखा जाए तो ,पहले तो वो अपने दोस्तों के अलावा किसी रिश्तेदार के घर जाने को तैयार ही बड़ी मुश्किल से होते हैं अगर गलती से माता पिता के साथ आ भी जाए तो भले ही उन्होंने कितने भी महंगे कपड़े और जूते क्यूँ न पहने हो लगभग सभी के चेहरे पर एक अजीब सा तनाव । स्मार्ट फोन आने के बाद से ये बच्चे किसी कोने में बैठे मोबाइल पर गेम खेलते हुए ही मिलेंगे न पहले के बच्चों की तरह दौड़ने खेलने का शौक और न ही स्वादिष्ट भोजन संबंधी रुचि । लगातार इन नौनिहालों के तनावग्रस्त चेहरे को देखकर लगता है कि पूरे समारोह के संचालन संभवत इन्हीं के कमजोर कंधों पर है ।इसी तरह बच्चों के आंखों पर लगने वाले चश्मे की बढ़ती हुई संख्या भी शायद ही किसी का ध्यान अपनी ओर न खींचे पहले माँ बाप के आंखों की कमजोरी या उम्र ही चश्मा चढ़ने की वजह होती थी लेकिन अब बिना चश्मे के बच्चों की संख्या घटती जा रही है । इस बारे में चिकित्सकों की राय क्या है मैं नहीं जानती लेकिन इस उम्र के कई बच्चों को
मैंने माइग्रेन ,शुगर और लो बीपी जैसी बीमारियों से परेशान भी देखा है ।क्या फायदा हमारे विकास का ,कैसे हम एक स्वस्थ भविष्य की कामना करें जबकि इसकी नींव ही खोखली होती जा रही है ।कारण चाहे जो भी हो अनियमित दिनचर्या ,नींद की कमी, खाने में जंक फूड की अधिकता से घटती पोषकता परिणाम तो भयावह है न ।
Wednesday, 27 June 2018
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