पिछले महीने रांची गई थी पता चला कि पूरे झारखंड में पॉलीथीन बैन है ।सब्जी ,फल या किराने के सामान के लिए लोगों ने घर से निकलते समय अपने साथ कपड़े के थैले लेने शुरू कर दिए हैं ।अच्छी पहल है सरकार की सुना है झारखंड के अलावा और भी कई राज्यों में भी सरकारी तौर पर
पॉलीथीन को बैन कर दिया गया है ।लेकिन पॉलीथीन तो मात्र सब्जी और किराने में ही तो इस्तेमाल नहीं होता अगर अपने आसपास नज़र दौड़ाए तो आटा चावल से लेकर सर्फ साबुन तक पॉलीथीन से बना हर वो सामान जिसे हम अपनी दिनचर्या में शामिल करते हैं प्लास्टिक से निर्मित । अंतर सिर्फ इतना है कि इनमें बड़ी बड़ी कंपनियां शामिल हैं ।अगर हमारे पास एक टाइम मशीन जैसी कोई उपलब्धि होती तो मैं इस पीढ़ी को 25-30साल पहले लेकर जाती जिसे हम ठोंगा युग कह सकते हैं ।एक ऐसा युग जहां हर छोटे बड़े सामान के लिए ठोंगा का इस्तेमाल होता था जिसका निर्माण कुटीर उद्योग के तौर पर होता था ।आटे की बनी लेइ से साटकर बना वो ठोंगा अगर किसी फ़िल्मी मैगज़ीन या किसी बच्चों की कहानियों की किताब से बनाया गया तो निश्चय ही मेरी जैसी लड़कियां उसे सावधानी पूर्वक खोलकर पढ़ने का प्रयास जरूर करती थी ।इसी तरह बचपन में कई बार हमने चीनिया बादाम वाले के पास से मिली कॉपी के पन्नों पर कम अंक पाने वाले विद्यार्थियों के प्रति चिंता और उपहास भी जताया है ।उफ्फ ! कहाँ है वो दिन जब रांची से लेकर गाँववाला झरिया दुकानदार छोटी घरेलू सामान को कागज के पुड़ियों में मोड़ कर देता था और इन्हीं पुड़िया और ठोंगों की तिलिस्म दुनिया में बचपन बीतता था ।
Friday, 29 June 2018
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