Tuesday 31 January 2017

आज बसंत पंचमी है ।कुछ वर्ष पूर्व होली के संबंध में मतभेद था कि किन्हीं दो दिनों में होली कब है ? तो ये जिज्ञासा नानाजी ( पंडित श्री गोविन्द झा ) के समक्ष रखी गयी कि होली कब है ?  उनका सहज जवाब था कि होली तो हर रोज है ,वसंत पंचमी के दिन से होली हर रोज़ है ।यहाँ प्रश्न यह होना चाहिए कि होली का समापन कब है ? उस दिन  हमने इस बात को जान लिया कि होली और वसंत पंचमी का संबंध क्या है ! एक बात और,मैं बचपन से देवी सरस्वती को  मात्र विद्यादायिनी के रूप में जानती थी लेकिन जब सरस्वती स्त्रोत सुना तो ये बात समझ में आई कि हमारे यहाँ इस देवी की पूजा कला, विद्या ,बुद्धि और विवेक के लिए की जाती है ।हमारे पुराणों के अनुसार किसी व्यक्ति की बुद्धि और वाणी पर देवी सरस्वती का एकाधिकार होता है संभवत रावण वध के महान उद्देश्य के लिए श्रीराम को वनवास भेजने में देवी सरस्वती को मंथरा की जिह्वा पर बैठना पड़ा था ।   लेकिन इन गुणों के साथ हमारे हिन्दू धर्म के अन्य देवी देवताओं से इतर इन्ही देवीं को बच्चों का खिलवाड़ भी झेलना पड़ता है ।आज सुबह जब  पूजा में शरीक होने चाचाजी के घर जा रही थी तो रास्ते में एक पंडाल को अधूरा देख हैरान हो गई वहाँ देवी की मूर्ति के अलावा कोई नहीं था न पूजा की कोई सामग्री और न कोई अन्य सजावट ।हमने अनुमान लगाया कि शायद नन्हे कार्यकर्ताओ के आपसी झगड़े ने देवी का ये हाल किया है ।समय के साथ बहुत सी चीज़ें बदल गयी है अब न वो तीन दिनों का कानफोड़ू  लॉडिसपीकर बजता है जो हमे उस वर्ष के नए गानों को रटा देता था और न कतार बद्ध छोटी छोटी लड़किया साड़ी पहन कर घूमती नज़र आती है । मुझे आज तक लड़कियों के साड़ी पहनने और सरस्वती पूजा का कोई कनेक्शन समझ में नहीं  आया !

Tuesday 24 January 2017

आज मेरा जन्मदिन है ।जब मैं छोटी थी तो हमेशा मेरे मन में ये बात आती थी कि मैंने 25जनवरी के बजाए 26 जनवरी को क्यों नहीं जन्म लिया और अब तो ये सोचकर हँसी भी आती है कि उस समय मुझे इस बात के कारण माँ पर क्रोध भी आता था कि उसने मुझे 26 को जन्म क्यों नहीं दिया ।जन्म ,मृत्यु और विवाह ये तीनों ईश्वर की इच्छा के अधीन है इस बात को समझने की उम्र तो बाद में हुई ।जन्म दिवस को पूजा के रूप में मनाया जाए या किसी पार्टी के रूप में इसके बारे में अलग अलग सोच है ।मेरे बाबा कहते थे कि जन्मदिन के दिन तो भगवान् दिनकर की उपासना करनी चाहिए चूंकि वो मान्यताओं के अनुसार शरीर के मालिक है तो इस दिन नमक छोड़ कर सूर्य की आराधना की जाए ।जब मेरी शादी हुई और मैं ससुराल आई तो इस दिन  दादाजी(ददिया ससुर)ने मुझे सामने बैठा कर विशेष पूजा की और मेरे हाथों से दान करवाया ।जब बाद में श्री हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा पढ़ी उसमें भी जन्म दिन के अवसर पर पूजा और दान की बातों का जिक्र पढ़ा ।किसी भी धर्म और जाति का असर हमारे ऊपर रोटी और बेटी के आदान प्रदान के रूप में होता है तो केक से लेकर बैलूनऔर पार्टी को जन्मदिन के अवसर पर अब सहज स्वीकृति मिल चुकी है ।केक के संबंध में एक बात याद आती है जिसे मैंने कही पढ़ा कि किसी  वृद्धा ने अपने पोते को केक काट कर मोमबत्ती बुझाते  देखा तो क्रोध से बिफर उठी कि ये कौन सा तरीका है ? हमारे यहाँ किसी भी ख़ुशी के अवसर को दीये जलाकर मानते है न की बुझाकर ।आज के समय में  अपने जन्मदिवस पर अगर कोई पार्टी नहीं भी मनायी जाए और कही नहीं भी जाए तो भी टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो चुकी है कि फेसबुक ,व्हाट्सएप और मैसेंजर के कारण घर बैठे  एक उत्सव का माहौल बन जाता है और न जाने कितने ही लोगों की शुभकामनाएं और आशीर्वाद हम तक पहुँच जाता है ।आज भी पुरानी चीज़ों को सहेजते वक़्त कई बर्थडे कार्ड हाथ में आ जाते हैंऔर आ जाती है बीते दिनों की यादें जब हम नए साल और बर्थडे कार्ड्स को पिन के सहारे  दीवाल पर सजाया करते थे और शायद   बड़े दिन की पूरी छुट्टियाँ आँगन में बैठ कर न्यू ईयर और जनवरी में होने वालों लोगों के बर्थडे कार्डों को बना कर बिताया करते थे।

Thursday 5 January 2017

NH 31

अपने संक्षिप्त कटिहार यात्रा के बाद वापस लौट रही हूँ ।NH 31  के रास्ते हम जब बेगूसराय के पास पहुँचे तो पेड़ो की अंधाधुन कटाई से हैरान हो गए।पास के ढ़ाबे पर चायवाले ने बताया कि रोड चौड़ा किया जा रहा है लगभग सौ किलोमीटर तक अमूमन हजारों पेड़ो को काट दिया गया ।हम विकास तो चाहते है लेकिन क्या अपने विनाश की कीमत पर ! अभी पटना के बेली रोड के  पेड़ो के कटाव को देखकर आगामी गरमी की भीषणता से डर ही रही थी तभी इतनी बड़ी मात्रा में  जंगल के सफाया से रोंगटे खड़े हो गए ।पूरी यात्रा में कोई भी नदी (गंगा,कोशी,और गंडक )ऐसी नहीं जो अपनी पूर्ण अवस्था में हो । शायद सभी अपनी आखिरी चरण में है ।याद आ गया बचपन में पढ़ी GK  की किताब की बातें ,हमारा सबसे बड़ा दोस्त कौन- जंगल,बिहार की प्रमुख नदी- गंगा,कोशी ,गंडक...... ।न जाने कब हमारा दोस्त इतना पराया हो गया कि हम उसे बचाने के बदले खत्म करने पर तूल गए और नदियों को तो हमने नालों में बदलने की ठानी है ।