आज मेरा जन्मदिन है ।जब मैं छोटी थी तो हमेशा मेरे मन में ये बात आती थी कि मैंने 25जनवरी के बजाए 26 जनवरी को क्यों नहीं जन्म लिया और अब तो ये सोचकर हँसी भी आती है कि उस समय मुझे इस बात के कारण माँ पर क्रोध भी आता था कि उसने मुझे 26 को जन्म क्यों नहीं दिया ।जन्म ,मृत्यु और विवाह ये तीनों ईश्वर की इच्छा के अधीन है इस बात को समझने की उम्र तो बाद में हुई ।जन्म दिवस को पूजा के रूप में मनाया जाए या किसी पार्टी के रूप में इसके बारे में अलग अलग सोच है ।मेरे बाबा कहते थे कि जन्मदिन के दिन तो भगवान् दिनकर की उपासना करनी चाहिए चूंकि वो मान्यताओं के अनुसार शरीर के मालिक है तो इस दिन नमक छोड़ कर सूर्य की आराधना की जाए ।जब मेरी शादी हुई और मैं ससुराल आई तो इस दिन दादाजी(ददिया ससुर)ने मुझे सामने बैठा कर विशेष पूजा की और मेरे हाथों से दान करवाया ।जब बाद में श्री हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा पढ़ी उसमें भी जन्म दिन के अवसर पर पूजा और दान की बातों का जिक्र पढ़ा ।किसी भी धर्म और जाति का असर हमारे ऊपर रोटी और बेटी के आदान प्रदान के रूप में होता है तो केक से लेकर बैलूनऔर पार्टी को जन्मदिन के अवसर पर अब सहज स्वीकृति मिल चुकी है ।केक के संबंध में एक बात याद आती है जिसे मैंने कही पढ़ा कि किसी वृद्धा ने अपने पोते को केक काट कर मोमबत्ती बुझाते देखा तो क्रोध से बिफर उठी कि ये कौन सा तरीका है ? हमारे यहाँ किसी भी ख़ुशी के अवसर को दीये जलाकर मानते है न की बुझाकर ।आज के समय में अपने जन्मदिवस पर अगर कोई पार्टी नहीं भी मनायी जाए और कही नहीं भी जाए तो भी टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो चुकी है कि फेसबुक ,व्हाट्सएप और मैसेंजर के कारण घर बैठे एक उत्सव का माहौल बन जाता है और न जाने कितने ही लोगों की शुभकामनाएं और आशीर्वाद हम तक पहुँच जाता है ।आज भी पुरानी चीज़ों को सहेजते वक़्त कई बर्थडे कार्ड हाथ में आ जाते हैंऔर आ जाती है बीते दिनों की यादें जब हम नए साल और बर्थडे कार्ड्स को पिन के सहारे दीवाल पर सजाया करते थे और शायद बड़े दिन की पूरी छुट्टियाँ आँगन में बैठ कर न्यू ईयर और जनवरी में होने वालों लोगों के बर्थडे कार्डों को बना कर बिताया करते थे।
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