Saturday 31 December 2022

  साल 2022के आखिरी कुछ घंटे ही  बाकी हैं । हमारे यहां  दिसंबर और जनवरी के महीने पिकनिक मनाने के लिहाज से आदर्श कहे जा सकते हैं।छुटपन से अब तक मैं कई बार पिकनिक पर गई हूं लेकिन अगर पिकनिक के नाम की पहली स्मृति  के बारे में सोचूं तो शायद लगभग 45 साल पहले मनाए गए उस पिकनिक को इसमें शुमार  किया जा सकता है।जिसकी खास बात यह है कि  उम्र कम होने के कारण उस दिन की बहुत कम ही बातें मुझे याद है और बाकी की जो थोड़ी बातें हैं वो मैंने  दूसरों सुनी है।
       तो बात उस दिन की ।पहले कहीं पढ़ा था कि जब बाकी जगहों के लोग बरसात की गर्मी और उमस से परेशान हो रहे होते हैं ।तो रांची शहर के लोग सुहावने मौसम का आनंद लेते हुए आने वाले जाड़े की तैयारी करते हैं वैसे तो प्राकृतिक झरनों और खूबसूरत वादियों से भरपूर रांची के  आस पास  पिकनिक स्पॉट्स की भरमार है लेकिन रांची से 80किलोमीटर की दूरी पर दामोदर भैरवी और भेड़ा  नदी के संगम पर बसा रजरप्पा  लगभग 6000साल पुरानी देवी छिन्नमस्तका की शक्तिपीठ के साथ साथ पिकनिक मनाने के लिए काफी प्रसिद्ध है। तो कुछ वैसे ही किसी सुहावने  दशहरे के आस पास के दिन, पांच परिवारों ने मिलकर इस यात्रा के बारे में सोचा था। दिलचस्प बात यह थी कि उस समय की ये यात्रा पांच स्कूटरों पर हुई थी और उन परिवारों में मौजूद बच्चों को सभी लोगों ने अपने अपने स्कूटर पर बांट लिया।मैं एक मामा के हिस्से आई तो भइया किसी दूसरे के और दीदी मां पापा के साथ ।मेरी यादाशत के अनुसार सब सुबह सुबह अपने गंतव्य स्थान की ओर निकले ,जाने के समय की  कोई  विशेष घटना का  मुझे स्मरण नहीं है लेकिन हम जब रजरप्पा पहुंचे तो रास्ते की गलती से नदी के जिस मुहाने मंदिर है उसके बदले नदी के दूसरे किनारे पर पहुंच गए अब हमारे पास एक ही विकल्प था पहाड़ी नदी को पार कर देवी दर्शन करना ।किसी  पहाड़ी नदी को पार करने में कठिनाई नदी की गहराई से अधिक उसकी तेज धार से होती है तो इसी डर से बच्चों को जिसमें मैं भी शामिल थी उन्हें स्थानीय मल्लाह की गोद में नदी पार करवाया गया और बाकी लोगों ने एक दूसरे के हाथों को पकड़ कर  जिसे आज के युवा Thrill कहते हैं के साथ पार किया ।फिर देवी दर्शन के बाद उसी तरह से लौटना हुआ और शायद उस पार ही खाने पीने का काम किया गया होगा ।उसके बाद सभी ने घर वापसी की सोची ।वैसे सुबह से मौसम काफी साफ था लेकिन देखते ही देखते काले बादल छा गए और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई , सारे लोग एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए लेकिन बारिश थी जो लगातार बरसे जा रही थी  धीरे धीरे अंधेरा होने लगा चूंकि लगभग 45साल पहले रांची और रजरप्पा के रास्ते में कई जगहों पर घने  जंगल थे तो उन जंगलों में शाम के बाद रुकना ठीक नहीं था तो उसी बारिश में सारे स्कूटर चल पड़े  जो संभवत गोला नामक जगह के किसी ढाबे पर चाय पीने को रुके और सभी पूरी तरह से भीगे होने के कारण ढाबे में बैठे लोगों के हंसी का पात्र भी  बने । गोला से चलकर हम रांची के ओरमांझी पहुंचे कि  पापा का आंखों में बरसाती कीड़े की वजह से आगे स्कूटर चलाना दूभर हो गया ।बारिश में भीगकर ठंड से ठिठुरते हुए थक कर चूर  उस वक्त सभी को अपना जोश भारी पड़ रहा होगा ।खैर भगवान की दया से वहां किसी परिचित डॉक्टर की सहायता से पापा की आंखों की परेशानी को दूर किया गया और मां छिन्नमस्तका को याद करते हुए सभी सकुशल घर पहुंच गए । 
 उस पिकनिक को लगभग 45 साल बीत चुके हैं ।लेकिन आज भी अगर पिकनिक का जिक्र किया जाता है तो उस दिन की हल्की सी यादें ताजा हो उठती है ।
मैं नमन करती हूं यात्रा  के साक्षी तीन स्वर्गवासी परिजनों का । जिक्र करना चाहूंगी उस पिकनिक के सभी लोगों का जो अपने  परिवार के साथ उस पिकनिक में शामिल थे : Late Yogendra gopal Jha , Late Shankar Jha , Late Y.C Mishra ,Shree Sudhir Mishra and Shree  Mohan Jha ।
चूंकि इस पोस्ट की रचनाकार (यानी मैं ) की उम्र महज तीन से चार वर्ष थी तो उस पिकनिक में शामिल लोगों से मेरा आग्रह है कि इस पोस्ट की गलतियों को नजरंदाज करते हुए अपनी यादें हमसे शेयर करें।