Sunday 20 June 2021

    लगभग एक सफ्ताह पहले मेरे पति के एक मित्र ने फ़ोन पर बातचीत के सिलसिले में अपने रिटायरमेंट के बाद  दो रूम के फ्लैट खरीदने की बात कही । उस मित्र के दो बच्चे (एक बेटा और एक बेटी ) हैं और बाहर  नौकरी करते हैं । छह माह पूर्व बेटी की शादी हो चुकी है ।दो बच्चों के कारण हमने उन्हें तीन रूम के फ्लैट को  खरीदने की सलाह दी जिसके जवाब में  उन्होंने  हँसते हुए कहा कि मैंने अपने लिए एक छोटे  फ्लैट  ही खरीदने की बात सोची है और कुछ धनराशि  दोनों बच्चों को देने का फैसला किया है जिससे वो अपनी नौकरी वाले शहर में एक बड़ा फ्लैट ले सकें । हमने जब उनके इस बात की वजह पूछी तो उनका जवाब था कि जब से बच्चों ने नौकरी शुरू की है  बेटा या बेटी सामान्य स्थिति में एक सफ्ताह से अधिक के लिए हमारे पास नहीं आ पाते हैं ।वहीं मेरे रिटायरमेंट से पहले ही हमारा  उनके पास जाना कभी 15 दिन या एक महीने से कम का  नहीं होता है । इस सिलसिले में माता पिता के उम्र होने के बाद बच्चों के पास रहने के समय में इजाफा ही होगा तो बड़े घर की जरूरत बच्चों को पड़ेगी न कि माता पिता को ।अब हमारे समय के अनुसार बहू या बेटी छुट्टियों में केवल अपने मायके या ससुराल नहीं जाती है बल्कि अपने आर्थिक स्थिति के अनुसार देश विदेश घूमती हैं । भले ही उसने यह बात मजाक के तौर पर कहा हो लेकिन जहां तक मैं अपने आस पास देखती हूँ तो महानगरों और  कुछ अपवादों  (जिनके  बच्चे उसी शहर में नौकरी करते हो)  को छोड़कर  कमोबेश हर घर की यही स्थिति है ।हालांकि स्त्री शिक्षा के कारण हुई इस प्रकार के बदलाव को हम सुखद ही  कह सकते हैं  ।पिछले दो सालों से लोकडौन की वजह से कितने ही बच्चों ने सालों बाद अपना लंबा समय घर में बिताया  लेकिन ये स्थिति तो 100 सालों के बाद आती हैं और भगवान न करें कि ऐसा बार बार हो । इस बारे में जहां तक मैं अपना बचपन याद करती हूं तो पहली स्मृति मात्र दो कमरों के एक घर की है जो हमेशा संबंधियों से भरा होता था ।उसके बाद हम पापा को यूनिवर्सिटी से मिले फ्लैट में आए जहां गिनती के तीन छोटे छोटे कमरे थे ।वहां भी हमें पढ़ने के लिए भी  जगह कम पड़ती थीं । एक चाचा की नौकरी ,दीदी की शादी वहां से हो गई। उसके बाद हम अपने मकान में आ गए जहां हमारे लिए यथेष्ट जगह थी लेकिन अगले साल जहां छोटे चाचा को नौकरी मिली वहीं भइया पढ़ाई के लिए दिल्ली चला गया और उसके अगले साल मेरी शादी हो गई ।उस घर को पापा ने कभी  भइया की शादी के कारण और कभी  दूसरी दिक्कतों के कारण पहले से और बड़ा और सुविधाजनक  बना लिया। लेकिन इन सब के बावजूद हम तीनों भाई बहन  साल में एकाध बार ही  अधिक नहीं जा पाते थे ।वजह कभी छुट्टियों की कमी या कभी अन्य परेशानी । शुरू के दिनों में पढ़ाई के कारण पापा ने छोटे भाइयों को अपने साथ रखा वो भी धीरे धीरे अपनी नौकरी और अपने परिवार में व्यस्त होते गए और बड़े से घर में माँ पापा अकेले ।उन दिनों जाने पर अक्सर माँ कहती कि जब जगह की जरूरत थी तो उसकी कमी थी और अब खाली घर की साफ सफाई से परेशान हो जाती हूं । तीन साल पहले वो क्रम भी खत्म हो गया जबकि पापा का देहांत हो गया ।साल में कभी दो महीने और कभी चार महीने माँ ने नौकरों के भरोसे वहाँ रहने की कोशिश की लेकिन कोरोना के कारण पिछले साल से मुंबई में भइया के पास और कई कमरों वाला घर सबकी राह में ।आज ये स्थिति मात्र मेरे घर की नहीं बल्कि हर दूसरे घर की है ।पहले के लोगों के पास पारिवारिक जिम्मेदारियों और अन्य कारणों से अक्सर पैसों की कमी होती थी तो वे अपनी शुरुआती दिनों में बड़े घर के बारे में सोच भी नहीं सकते थे और जब वार्धक्य में पैसे की सुविधा होती और अपने बच्चों के लिए सुविधापूर्ण घर बनाते तब तक बच्चे भी बच्चे वाले हो जाते हैं ।मेरे इस पोस्ट को नकारात्मक न समझे क्योंकि बच्चे आगे बढ़े अपनी जिंदगी में उन्नति करें ये तो हर माता पिता का सपना होता है ।

Saturday 12 June 2021

पिछले साल सितंबर 2020 से नए कृषि अध्यादेश के बाद किसानों की  समस्या मुख्य  धारा  में आई  जबकि हकीकत में एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 से लेकर अब तक किसानों के  विरोधों में 5 गुना वृद्धि हो गई है । 2017 में 15 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों में यह संख्या  34 थी जो बढ़कर 2021 में 165 हो गई ।  आज देश में हर रोज किसान और कृषि मजदूर  28  किसानों के  द्वारा किए गए आत्महत्याओं की संख्या बढ़कर 5959समें 4324 कृषि मजदूर शामिल थे यह एक दुखद प्रसंग है कि हमारे देश में दिनोंदिन  कृषि मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है इनमें  52% प्रतिशत कृषि मजदूर सिर्फ  बिहार केरल और पांडिचेरी में है।हाल के मात्र तीन वर्षों में  किसानों के विरोधों में हुए पाँच गुना वृद्धि के यह कारण हो सकते हैं
,रीढ़ कही जाने वाली कृषि मजदूरों की किसानों की ऐसी क्या समस्या है कि हर दिन  28 किसान आत्महत्या क विरोध विरोधर रहे हैं जिसके मुताबिक 2019 में किसा ््क्षा््क्  :- हमारेदेश में किसानों की  अशिक्षा बड़ी भूमिका निभाती है जिसके कारण सरकार द्वारा दिए गए बैंकों ऋण संबंधी  सुविधाओं को किसान समझ नहीं पाते और अक्सर महाजनों के जाल में फंस जाते हैं । महाजनों के द्वारा  ऋण देने की दर काफी ऊंची रहती है वही उनकी किताब में भी काफी गड़बड़ी रहती है इसके द्वारा किसान मजबूरन के जाल में फंसते जाते हैं  और   और उनके गलत हिसाब के कारण किसानों की जमीन उनके हाथ में चली जाती है और वह किसान से   कृषि मजदूर में बदल जाते हैं ।
2. सरकार की गलत ऋण देने की नीति स्वतंत्रता के बाद से कई पंचवर्षीय योजनाओं में ऋषि को प्राथमिकता दी गई और प्राय हर योजना में किसानों को ऋण देने की व्यवस्था की गई लेकिन कि सरकार की गलत नीतियों के कारण केंद्र सरकार के पारित होने के बावजूद वह रिंग किसानों की पहुंच से दूर ही रहे नतीजा यह हुआ की कई बार रेल लेने के बाद भी समझना पाने की स्थिति में किसान उन दिनों का भुगतान नहीं कर पाए और आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए।
3. बड़े व्यापारियों और दलालों का वध बढ़ता हुआ वर्चस्व कई सारी सरकारी योजनाओं के बावजूद किसानों की स्थिति कई दशकों के बाद ज्यों की त्यों बनी हुई है इसका मुख्य कारण बड़े व्यापारियों और दलालों का बढ़ता हुआ वर्चस्व है एक रिसर्च के अनुसार कृषि उत्पादों का मात्र 6% ही मंडी तक पहुंचाता है जिसका फायदा शाम को मिल पाता है और 94% उत्पाद या तो बड़े व्यापारियों के चला जाता है ऐसे में किसानों की स्थिति बनी रहती है।
4. नया किसान अध्यादेश जून 2020 में सरकार ने 3 नियम वाला नए किसान बिल के अध्यादेश को पेश किया जिसका पूरे देश के किसानों ने जमकर विरोध किया इस नए बिल में तीन बातें  मुख्य हैं । पहले कानून के अनुसार जहां जहां किसानों को किसानों के साथ साथ व्यापारियों को भी आवश्यक वस्तुओं के संचयन की सुविधा दी गई है 1955 से पहले के बाद यह सुविधा केवल युद्ध और आपदा के समय ही थी ऐसे में किसानों का विरोध बढ़ने का की बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है । किसानों को इस बात का पूरा संदेह है की व्यापारी वर्ग आवश्यक वस्तुओं के संचयन के द्वारा किसान वर्ग को कृषि मजदूर बनने पर विवश कर देंगे।
इस अध्यादेश के दूसरे भाग को हम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तौर पर देखा देख सकते हैं यह इस अध्यादेश का एक सकारात्मक पक्ष हो सकता है बशर्ते कि इसमें सरकार कुछ आवश्यक सुधार करें। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का सुझाव 2012 ईस्वी में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के द्वारा प्रस्तावित किया गया था इस नियम में सरकार के इस नियम की एक खराबी खानी है इसमें कृषि इसमें किसान और गांव के लोगों को शामिल नहीं किया गया अर्थात यह नियम बनाने से पहले किसी सर्वे रिसर्च के द्वारा गांव के गांव की स्थिति का ब्यौरा लिया जा सकता था अगर इसमें इसमें किसी विवाद हो किसान और कंपनियों के बीच विवाद होने के समय समझौते के लिए मंडी के अधिकारियों को शामिल ना कर मुखिया सरपंच आदि को शामिल करना किसानों के पक्ष में हो सकता है।
 


और जागता का:- हमारे देश म की  अशिक बड़ी भूमिका निभाती कारण सरकार द्वारा दिए गए बैंकों ऋण संबंधी  सुविधाओं को किसान समझ नहीं पाते और अक्सर महाजनों के जाल में फंस जाते हैं । महाजनों के द्वारा  ऋण दर काफी ऊंची रहती है वही उनकी किताब में भी काफी गड़बड़ी रहती है इसके द्वारा किसान मजबूरन के जाल में फंसते जाते हैं और उनके गलत हिसाब के कारण किसानों की जमीन उनके हाथ में चली जाती है और वह किसान से   कृषि मजदूर में बदल जाते हैं ।
2. सरकार की  ऋण प्रदान की गलत नीति स्वतंत्रता के बाद से कई पंचवर्षीय योजनाओं में ऋषि को प्राथमिकता दी गई और प्राय हर योजना में किसानों को ऋण देने की रकम को बढ़ाई  गई लेकिन गलत सरकारी  नीतियों के कारण केंद्र सरकार से पारित होने के बावजूद वे ऋण किसानों की पहुंच से दूर ही रहे ।नतीजन  कई बार ऋण लेने के बाद भी भुगतान की  स्थिति से अनभिज्ञ किसान ऋण न चुका पाने की हालत में आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए।
3. बड़े व्यापारियों और दलालों का वध बढ़ता हुआ वर्चस्व कई सारी सरकारी योजनाओं के बावजूद किसानों की स्थिति कई दशकों के बाद ज्यों की त्यों बनी हुई है इसका मुख्य कारण बड़े व्यापारियों और दलालों का बढ़ता हुआ वर्चस्व है एक रिसर्च के अनुसार कृषि उत्पादों का मात्र 6% ही मंडी तक पहुंचाता है जिसका फायदा किसान को मिल पाता है और 94% उत्पाद या तो बड़े व्यापारियों के चला जाता है ऐसे में किसानों की स्थिति बनी रहती है।
4.  तात्कालिक कारण नया किसान अध्यादेश जून 2020 में सरकार ने 3 नियम वाला नए किसान बिल के अध्यादेश को पेश किया जिसका पूरे देश के किसानों ने जमकर विरोध किया इस नए बिल में तीन बातें  मुख्य हैं । इस विरोध के अनुसार पहले तो किसानों ने पूरे दिल्ली की बॉर्डर को अलग-अलग जगहों पर जुलूस और घेराबंदी के द्वारा प्रदर्शन किया वही बाद में 26 जनवरी को विरोध दिवस मना कर पूरे पूरे दिल्ली में ट्रैक्टर के द्वारा प्रदर्शन करना चाहा। पहले कानून के अनुसार जहां जहां किसानों को किसानों के साथ साथ व्यापारियों को भी आवश्यक वस्तुओं के संचयन की सुविधा दी गई है 1955 से पहले के बाद यह सुविधा केवल युद्ध और आपदा के समय ही थी ऐसे में किसानों का विरोध बढ़ने का की बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है । किसानों को इस बात का पूरा संदेह है की व्यापारी वर्ग आवश्यक वस्तुओं के संचयन के द्वारा किसान वर्ग को कृषि मजदूर बनने पर विवश कर देंगे।
इस अध्यादेश के दूसरे भाग को हम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तौर पर देखा देख सकते हैं यह इस अध्यादेश का एक सकारात्मक पक्ष हो सकता है बशर्ते कि इसमें सरकार कुछ आवश्यक सुधार करें। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का सुझाव 2012 ईस्वी में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के द्वारा प्रस्तावित किया गया था इस नियम में सरकार के इस नियम की एक खराबी खानी है इसमें कृषि इसमें किसान और गांव के लोगों को शामिल नहीं किया गया अर्थात यह नियम बनाने से पहले किसी सर्वे रिसर्च के द्वारा गांव के गांव की स्थिति का ब्यौरा लिया जा सकता था अगर इसमें इसमें किसी विवाद हो किसान और कंपनियों के बीच विवाद होने के समय समझौते के लिए मंडी के अधिकारियों को शामिल ना कर मुखिया सरपंच आदि को शामिल करना किसानों के पक्ष में हो सकता है।
इस बिल के तीसरे भाग के रूप में अपनी फसल को कहीं भी देश में बेचने की सहूलियत सरकार के द्वारा दिन की जाने वाली दे दी जाने को देखा जा सकता है उसके अनुसार लोग अपनी फसल को कहीं से कहीं देख सकते हैं।
इंदौर इन सभी कारणों से किसान बिल किसानों की सहयोग विरोध की संख्या में अब तक 5 गुना वृद्धि हो गई है किसानों के द्वारा किए जाने वाले विरोध में अब तक दो मंत्री भी सामने आए हैं जिन्होंने अपने-अपने इस्तीफा के द्वारा किसानों के विरोध का समर्थन किया है।

Monday 7 June 2021

पिछले कोरोना महामारी के बाद ही हमारी  GDP घटकर  काफी निचले स्तर पर चली गईं थी।अर्थशस्त्रियों का यह मानना था कि  भारत में यह  गिरावट  और भी हो सकती थी अगर  देश को कृषि उत्पादनो ने संभाला न होता । इसी डावाडोल की स्थिति के बीच सितंबर में पहले लोकसभा फिर राज्यसभा में  कृषि अधिनियम बिल  पास किया गया जिसका राज्यसभा के  कुछ सदस्यों के  साथ साथ जिसमें किसानों ने जमकर विरोध किया  जो आजतक जारी है। वैसे तो पूरे देश के किसानों के द्वारा  इसका विरोध हो रहा है लेकिन इसके प्रमुख विरोध करने वाले राज्यों  में पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान  हैं और इस महामारी के बीच भी अपने प्रदर्शन को लगातार जारी रखे हुए रहे हैं ।अब  पहले जानने की बात है  किसान विधायक बिल में आखिर ऐसा क्या है कि किसानों को इस में अपना अहित  नजर आ रहा है जबकि इस विषय में सरकार का यह  कहना है कि इस अधिनियम की  सारी बातें किसानों के हित में है ।  
इस अधिनियम की सबसे  पहली कड़ी को एक बाजार एक मूल्य के रूप में देख सकते हैं।  इस अध्यादेश के द्वारा सरकार  किसानों को पूरी छूट देगी जिससे वो देश में कहीं भी अपने फसल को   बेच सकते हैं।इससे पहले देश में मौजूद करीबन 7000 कृषि मंडी के द्वारा हर बड़े और छोटे शहर में सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता था वहां मौजूद बिचौलिए के द्वारा किसान और व्यापारियों के साथ लेन देन होता था । ये बिचौलिए बाकायदा सरकार की ओर से नियुक्त किए जाते थे और इन्हे इस काम के लिए लाइसेंस  दिया जाता था और किसान निश्चिंत होकर अपनी फसल को बेचते थे।वैसे पहले भी  न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा  किसान अपनी फसल  देश में कहीं  भी बेच  सकते थे ।अब यहां सरकार और किसानोंके बीच मतभेद की बात यह है कि जहां  सरकार का कहना है कि  अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ साथ हमने आपको पूरी आजादी दी है कि आप चाहे तो अपनी फसल को कही भी बेच ले  हमारी ओर से किसानों को   कोई दवाब  नहीं दिया जाएगा  । अब यहां किसानों की ओर से मुश्किल की बात यह है कि किसान इस बात से संदेह में है कि धीरे धीरे न्यूनतम गारंटी मूल्य खत्म हो जाएगा क्योंकि एक अरसे के बाद सरकार के पास  उसे चालू  रखने का कोई विशेष कारण नहीं है जबकि उसके लिए सरकार को कुछ नियमित खर्च करने पड़ते हैं कुछ गोदाम  रखने पड़ते हैं और उसके साथ-साथ और भी कई परेशानियां होती हैं  ।किसानों के लिए किसी दूरस्थ जगहों पर फसल बेचने का मतलब है अतिरिक्त परिवहन शुल्क वहन करना जो छोटे किसानों के लिए मुश्किल है । 
इस अधिनियम   की  दूसरी कड़ी है आवश्यक वस्तुओं का संरक्षण करने से संबंधित कानून , पहले आवश्यक वस्तुओं को संरक्षित करने के संबंध में एक सरकारी नियम हुआ करता था जिसके तहत दलहन चावल गेहूं इत्यादि आवश्यक फसलों को आप एक सीमा के बाद संचय नहीं कर सकते हैं । लेकिन इस अधिनियम के अनुसार किसी भी किसान को यह पूरी छूट होगी कि वह अपनी फसलो को जब तक  चाहे रख सकता  हैं और जब चाहे तब बेच  सकता  है। ये बात  सैद्धांतिक रूप से बिलकुल सही है लेकिन इस संदर्भ में किसानों का ये कहना है कि भारत जैसे देश जहां लगभग 80प्रतिशत  छोटे किसान हैं जिनके पास छोटे-छोटे खेत है और जिनके सालभर के खर्चे इन्हीं फसलों के सहारे बाकी होते हैं और इनके पास अपने फसलों को रखने के लिए न तो आर्थिक आधार है और न ही गोदाम की सुविधा ।इसके अलावा इस मुद्दे पर किसानों को इस बात की भी  संभावना लगती है कि बड़े व्यापारी  किसानों की फसल को  भविष्य के लिए रख लेंगे जो कि किसी किसान के लिए मुश्किल है कि यहां खरीदार ताकतवर हो जाएगा और बेचने वाला लाचार हो जाएगा।हालांकि सरकार की ओर से ऐसा नहीं कहा गया है न्यूनतम समर्थन मूल्य को बंद किया जाएगा । अगर हम इस मुद्दे पर सरकार की ओर से देखें तो सरकार का कहना है कि यह सारी बातें किसानों के हित में है ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके द्वारा किसानों को मुश्किल पड़ेगी । किसानों के अलावा कुछ राज्य सरकार भी इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि क्योंकि अगर अनाज की मंडियां बंद हो जाए तो अव्वल तो लाखों  मजदूर का रोजगार चला जाएगा दूसरी ओर राज्य सरकार का राजस्व  का भी नुकसान होगा।
इस अध्यादेश का तीसरे पक्ष है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अथवा अथवा व्यापारियों द्वारा ठेके पर किसानों के खेतों को लेना ,इसका सीधा मतलब यह हुआ कि व्यापारी किसानों को फसल होने से पूर्व भी उन फसलों के लिए कुछ पैसे तय कर देंगे और किसान अपनी खेती करेंगे। पुनः अगर देखा जाए तो यह व्यवस्था और किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि कितनी ही बार मानसून कमजोर होने पर अथवा बाढ़ आदि की हालत में ये किसान के लिए लाभदायक है ।
लेकिन किसानों को की ओर से इस अध्यादेश पर आशंका व्यक्त की जा रही है कि शुरू के कुछ वर्षों में ऐसा ठीक होगा लेकिन बाद में वे खरीददार उन फसलों को सस्ते में खरीद कर अपने गोदामों में अगले साल के लिए रख लेंगेऔर अगले साल किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचना होगा क्योंकि हमारे देश में चंद किसान के पास ही अपनी फसल को स्टॉक करने की क्षमता है।   इसके अलावा  बहुत बार ऐसा होता है कि किसान बंपर फसल का उत्पादन करते हैं  तो बंपर फसल होने पर भी किसानों को इसका फायदा नहीं मिलेगा ।
इस प्रकार अगर हम दोनों पक्षों की बातों को देखें तो पता चलता है कि जहां सरकार इस अध्यादेश के द्वारा कृषि की उन्नति चाहती हैं।वहीं किसानों का कहना है कि इस अध्यादेश को कंपनियों के हितों को देखते हुए बनाया गया है ।यहां इस कानून बना कर कंपनियों को बाध्य किया जा सकता है कि वो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मूल्य न दे । न्यूनतम समर्थन मूल्य में सुधार की यथेष्ट  आवश्यकता है ।किसी भी बाज़ार में बिचौलियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि किसानों के लिए बाहरी बाज़ार को समझना मुश्किल होता है।इस प्रकार अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी भी कृषि प्रधान देश में किसानों का सरकार से इस तरह का टकराव उस देश के लिए उचित नहीं है ।सरकार को जल्दी ही इस पर ध्यान देकर बीच का रास्ता निकलना चाहिए।

Saturday 5 June 2021

आज विश्व पर्यावरण दिवस है । सरकार अपने साथ साथ लोगों से भी  अपील करती है कि वो  पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पेड़ लगाए ।धीरे धीरे लोग गाँवों से शहरों में  आए और बड़े बड़े घरों की जगह अपार्टमेंट्स में रहने लगे ।पेड़ों और पर्यावरण बचाने संबंधी शौक को घरों के  बॉलकोनी में  गमलों में छोटे छोटे पौधों को लगाकर पूरा करने लगे ।तीन साल पहले हमने अपने अपार्टमेंट के पेंट होने के बाद उन पेंट के डब्बों में अपार्टमेंट के छोटे छोटे बच्चों से कुछ पेड़ों को लगवाया था ।किस्मत से उनमें से कुछ पेड़ लग गए और कंक्रीट के इस जंगल में थोड़ी बहुत हरियाली आ गई ।इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने पिछले lockdown में छोटी सी कोशिश की ।हमारे अपार्टमेंट के पिछले हिस्से में लगभग 5 फ़ीट चौड़ी ×100 फीट जमीन  है । जिसका इस्तेमाल  खाली होने के कारण गत बीस सालों से मात्र कचरा फेंकने के काम आ रहा था ।साल में दो तीन बार उसकी सफाई कराई जाती लेकिन कुछ ही दिनों में उसकी फिर से वैसी ही हालात हो जाती थी । पिछले लोकडौन में हमने(हम दोनों पति पत्नी ने) धीरे धीरे उस जमीन की सफाई का काम शुरू किया  और उसमें छोटे छोटे फूलों के पौधों को लगाया ।शुरू के दिनों में हमें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा जब लोगों के कूड़ा फेंकने की आदत के कारण हमें एक ही हिस्से को बार बार साफ करना पड़ता था लेकिन धीरे धीरे उस गंदी पतली गली में लोगों ने अपने आप कूड़ा फेकना बंद कर दिया और गर्व के साथ कह सकती हूं  आज उस गली में जहां अड़हुल ,गेंदा जैसे मौसमी फूल खिलने लगे  हैं वहीं पपीता और करी पत्ता के पेड़ भी लग गए हैं  और उस छोटी सी गली को हमने हरा भरा कर दिया हालांकि ये बहुत छोटी सी जगह है लेकिन किसी भी  बड़े काम की शुरुवात छोटे से ही होती है । 
यहां एक बात ध्यान देने की है कि मात्र घरों के अंदर या छतों पर गमलों में फूलों के पौधों को लगा कर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकते बल्कि  अपार्टमेंटस में नीचे के कुछ हिस्से या घरों  के  आँगन में पेड़ों को थोड़ी सी जगह जरूर दें अन्यथा थोड़े दिनों के ऑक्सीजन की कमी ने हमें चेतावनी दे दी है।