Monday, 7 June 2021

पिछले कोरोना महामारी के बाद ही हमारी  GDP घटकर  काफी निचले स्तर पर चली गईं थी।अर्थशस्त्रियों का यह मानना था कि  भारत में यह  गिरावट  और भी हो सकती थी अगर  देश को कृषि उत्पादनो ने संभाला न होता । इसी डावाडोल की स्थिति के बीच सितंबर में पहले लोकसभा फिर राज्यसभा में  कृषि अधिनियम बिल  पास किया गया जिसका राज्यसभा के  कुछ सदस्यों के  साथ साथ जिसमें किसानों ने जमकर विरोध किया  जो आजतक जारी है। वैसे तो पूरे देश के किसानों के द्वारा  इसका विरोध हो रहा है लेकिन इसके प्रमुख विरोध करने वाले राज्यों  में पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान  हैं और इस महामारी के बीच भी अपने प्रदर्शन को लगातार जारी रखे हुए रहे हैं ।अब  पहले जानने की बात है  किसान विधायक बिल में आखिर ऐसा क्या है कि किसानों को इस में अपना अहित  नजर आ रहा है जबकि इस विषय में सरकार का यह  कहना है कि इस अधिनियम की  सारी बातें किसानों के हित में है ।  
इस अधिनियम की सबसे  पहली कड़ी को एक बाजार एक मूल्य के रूप में देख सकते हैं।  इस अध्यादेश के द्वारा सरकार  किसानों को पूरी छूट देगी जिससे वो देश में कहीं भी अपने फसल को   बेच सकते हैं।इससे पहले देश में मौजूद करीबन 7000 कृषि मंडी के द्वारा हर बड़े और छोटे शहर में सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता था वहां मौजूद बिचौलिए के द्वारा किसान और व्यापारियों के साथ लेन देन होता था । ये बिचौलिए बाकायदा सरकार की ओर से नियुक्त किए जाते थे और इन्हे इस काम के लिए लाइसेंस  दिया जाता था और किसान निश्चिंत होकर अपनी फसल को बेचते थे।वैसे पहले भी  न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा  किसान अपनी फसल  देश में कहीं  भी बेच  सकते थे ।अब यहां सरकार और किसानोंके बीच मतभेद की बात यह है कि जहां  सरकार का कहना है कि  अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ साथ हमने आपको पूरी आजादी दी है कि आप चाहे तो अपनी फसल को कही भी बेच ले  हमारी ओर से किसानों को   कोई दवाब  नहीं दिया जाएगा  । अब यहां किसानों की ओर से मुश्किल की बात यह है कि किसान इस बात से संदेह में है कि धीरे धीरे न्यूनतम गारंटी मूल्य खत्म हो जाएगा क्योंकि एक अरसे के बाद सरकार के पास  उसे चालू  रखने का कोई विशेष कारण नहीं है जबकि उसके लिए सरकार को कुछ नियमित खर्च करने पड़ते हैं कुछ गोदाम  रखने पड़ते हैं और उसके साथ-साथ और भी कई परेशानियां होती हैं  ।किसानों के लिए किसी दूरस्थ जगहों पर फसल बेचने का मतलब है अतिरिक्त परिवहन शुल्क वहन करना जो छोटे किसानों के लिए मुश्किल है । 
इस अधिनियम   की  दूसरी कड़ी है आवश्यक वस्तुओं का संरक्षण करने से संबंधित कानून , पहले आवश्यक वस्तुओं को संरक्षित करने के संबंध में एक सरकारी नियम हुआ करता था जिसके तहत दलहन चावल गेहूं इत्यादि आवश्यक फसलों को आप एक सीमा के बाद संचय नहीं कर सकते हैं । लेकिन इस अधिनियम के अनुसार किसी भी किसान को यह पूरी छूट होगी कि वह अपनी फसलो को जब तक  चाहे रख सकता  हैं और जब चाहे तब बेच  सकता  है। ये बात  सैद्धांतिक रूप से बिलकुल सही है लेकिन इस संदर्भ में किसानों का ये कहना है कि भारत जैसे देश जहां लगभग 80प्रतिशत  छोटे किसान हैं जिनके पास छोटे-छोटे खेत है और जिनके सालभर के खर्चे इन्हीं फसलों के सहारे बाकी होते हैं और इनके पास अपने फसलों को रखने के लिए न तो आर्थिक आधार है और न ही गोदाम की सुविधा ।इसके अलावा इस मुद्दे पर किसानों को इस बात की भी  संभावना लगती है कि बड़े व्यापारी  किसानों की फसल को  भविष्य के लिए रख लेंगे जो कि किसी किसान के लिए मुश्किल है कि यहां खरीदार ताकतवर हो जाएगा और बेचने वाला लाचार हो जाएगा।हालांकि सरकार की ओर से ऐसा नहीं कहा गया है न्यूनतम समर्थन मूल्य को बंद किया जाएगा । अगर हम इस मुद्दे पर सरकार की ओर से देखें तो सरकार का कहना है कि यह सारी बातें किसानों के हित में है ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके द्वारा किसानों को मुश्किल पड़ेगी । किसानों के अलावा कुछ राज्य सरकार भी इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि क्योंकि अगर अनाज की मंडियां बंद हो जाए तो अव्वल तो लाखों  मजदूर का रोजगार चला जाएगा दूसरी ओर राज्य सरकार का राजस्व  का भी नुकसान होगा।
इस अध्यादेश का तीसरे पक्ष है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अथवा अथवा व्यापारियों द्वारा ठेके पर किसानों के खेतों को लेना ,इसका सीधा मतलब यह हुआ कि व्यापारी किसानों को फसल होने से पूर्व भी उन फसलों के लिए कुछ पैसे तय कर देंगे और किसान अपनी खेती करेंगे। पुनः अगर देखा जाए तो यह व्यवस्था और किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि कितनी ही बार मानसून कमजोर होने पर अथवा बाढ़ आदि की हालत में ये किसान के लिए लाभदायक है ।
लेकिन किसानों को की ओर से इस अध्यादेश पर आशंका व्यक्त की जा रही है कि शुरू के कुछ वर्षों में ऐसा ठीक होगा लेकिन बाद में वे खरीददार उन फसलों को सस्ते में खरीद कर अपने गोदामों में अगले साल के लिए रख लेंगेऔर अगले साल किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचना होगा क्योंकि हमारे देश में चंद किसान के पास ही अपनी फसल को स्टॉक करने की क्षमता है।   इसके अलावा  बहुत बार ऐसा होता है कि किसान बंपर फसल का उत्पादन करते हैं  तो बंपर फसल होने पर भी किसानों को इसका फायदा नहीं मिलेगा ।
इस प्रकार अगर हम दोनों पक्षों की बातों को देखें तो पता चलता है कि जहां सरकार इस अध्यादेश के द्वारा कृषि की उन्नति चाहती हैं।वहीं किसानों का कहना है कि इस अध्यादेश को कंपनियों के हितों को देखते हुए बनाया गया है ।यहां इस कानून बना कर कंपनियों को बाध्य किया जा सकता है कि वो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मूल्य न दे । न्यूनतम समर्थन मूल्य में सुधार की यथेष्ट  आवश्यकता है ।किसी भी बाज़ार में बिचौलियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि किसानों के लिए बाहरी बाज़ार को समझना मुश्किल होता है।इस प्रकार अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी भी कृषि प्रधान देश में किसानों का सरकार से इस तरह का टकराव उस देश के लिए उचित नहीं है ।सरकार को जल्दी ही इस पर ध्यान देकर बीच का रास्ता निकलना चाहिए।

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