Sunday, 20 June 2021

    लगभग एक सफ्ताह पहले मेरे पति के एक मित्र ने फ़ोन पर बातचीत के सिलसिले में अपने रिटायरमेंट के बाद  दो रूम के फ्लैट खरीदने की बात कही । उस मित्र के दो बच्चे (एक बेटा और एक बेटी ) हैं और बाहर  नौकरी करते हैं । छह माह पूर्व बेटी की शादी हो चुकी है ।दो बच्चों के कारण हमने उन्हें तीन रूम के फ्लैट को  खरीदने की सलाह दी जिसके जवाब में  उन्होंने  हँसते हुए कहा कि मैंने अपने लिए एक छोटे  फ्लैट  ही खरीदने की बात सोची है और कुछ धनराशि  दोनों बच्चों को देने का फैसला किया है जिससे वो अपनी नौकरी वाले शहर में एक बड़ा फ्लैट ले सकें । हमने जब उनके इस बात की वजह पूछी तो उनका जवाब था कि जब से बच्चों ने नौकरी शुरू की है  बेटा या बेटी सामान्य स्थिति में एक सफ्ताह से अधिक के लिए हमारे पास नहीं आ पाते हैं ।वहीं मेरे रिटायरमेंट से पहले ही हमारा  उनके पास जाना कभी 15 दिन या एक महीने से कम का  नहीं होता है । इस सिलसिले में माता पिता के उम्र होने के बाद बच्चों के पास रहने के समय में इजाफा ही होगा तो बड़े घर की जरूरत बच्चों को पड़ेगी न कि माता पिता को ।अब हमारे समय के अनुसार बहू या बेटी छुट्टियों में केवल अपने मायके या ससुराल नहीं जाती है बल्कि अपने आर्थिक स्थिति के अनुसार देश विदेश घूमती हैं । भले ही उसने यह बात मजाक के तौर पर कहा हो लेकिन जहां तक मैं अपने आस पास देखती हूँ तो महानगरों और  कुछ अपवादों  (जिनके  बच्चे उसी शहर में नौकरी करते हो)  को छोड़कर  कमोबेश हर घर की यही स्थिति है ।हालांकि स्त्री शिक्षा के कारण हुई इस प्रकार के बदलाव को हम सुखद ही  कह सकते हैं  ।पिछले दो सालों से लोकडौन की वजह से कितने ही बच्चों ने सालों बाद अपना लंबा समय घर में बिताया  लेकिन ये स्थिति तो 100 सालों के बाद आती हैं और भगवान न करें कि ऐसा बार बार हो । इस बारे में जहां तक मैं अपना बचपन याद करती हूं तो पहली स्मृति मात्र दो कमरों के एक घर की है जो हमेशा संबंधियों से भरा होता था ।उसके बाद हम पापा को यूनिवर्सिटी से मिले फ्लैट में आए जहां गिनती के तीन छोटे छोटे कमरे थे ।वहां भी हमें पढ़ने के लिए भी  जगह कम पड़ती थीं । एक चाचा की नौकरी ,दीदी की शादी वहां से हो गई। उसके बाद हम अपने मकान में आ गए जहां हमारे लिए यथेष्ट जगह थी लेकिन अगले साल जहां छोटे चाचा को नौकरी मिली वहीं भइया पढ़ाई के लिए दिल्ली चला गया और उसके अगले साल मेरी शादी हो गई ।उस घर को पापा ने कभी  भइया की शादी के कारण और कभी  दूसरी दिक्कतों के कारण पहले से और बड़ा और सुविधाजनक  बना लिया। लेकिन इन सब के बावजूद हम तीनों भाई बहन  साल में एकाध बार ही  अधिक नहीं जा पाते थे ।वजह कभी छुट्टियों की कमी या कभी अन्य परेशानी । शुरू के दिनों में पढ़ाई के कारण पापा ने छोटे भाइयों को अपने साथ रखा वो भी धीरे धीरे अपनी नौकरी और अपने परिवार में व्यस्त होते गए और बड़े से घर में माँ पापा अकेले ।उन दिनों जाने पर अक्सर माँ कहती कि जब जगह की जरूरत थी तो उसकी कमी थी और अब खाली घर की साफ सफाई से परेशान हो जाती हूं । तीन साल पहले वो क्रम भी खत्म हो गया जबकि पापा का देहांत हो गया ।साल में कभी दो महीने और कभी चार महीने माँ ने नौकरों के भरोसे वहाँ रहने की कोशिश की लेकिन कोरोना के कारण पिछले साल से मुंबई में भइया के पास और कई कमरों वाला घर सबकी राह में ।आज ये स्थिति मात्र मेरे घर की नहीं बल्कि हर दूसरे घर की है ।पहले के लोगों के पास पारिवारिक जिम्मेदारियों और अन्य कारणों से अक्सर पैसों की कमी होती थी तो वे अपनी शुरुआती दिनों में बड़े घर के बारे में सोच भी नहीं सकते थे और जब वार्धक्य में पैसे की सुविधा होती और अपने बच्चों के लिए सुविधापूर्ण घर बनाते तब तक बच्चे भी बच्चे वाले हो जाते हैं ।मेरे इस पोस्ट को नकारात्मक न समझे क्योंकि बच्चे आगे बढ़े अपनी जिंदगी में उन्नति करें ये तो हर माता पिता का सपना होता है ।

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