Friday 29 June 2018

पिछले महीने रांची गई थी पता चला कि पूरे झारखंड में  पॉलीथीन बैन है ।सब्जी ,फल या किराने के सामान के लिए लोगों ने घर से निकलते समय अपने साथ कपड़े के थैले लेने शुरू कर दिए हैं ।अच्छी पहल है सरकार की सुना है झारखंड के अलावा और भी कई राज्यों में भी सरकारी तौर पर
पॉलीथीन को बैन कर दिया गया है ।लेकिन पॉलीथीन तो मात्र सब्जी और किराने में ही तो इस्तेमाल नहीं होता अगर अपने आसपास नज़र दौड़ाए तो आटा चावल से लेकर सर्फ साबुन तक पॉलीथीन से बना हर वो सामान जिसे हम अपनी दिनचर्या में शामिल करते हैं प्लास्टिक से निर्मित । अंतर सिर्फ इतना है कि इनमें बड़ी बड़ी कंपनियां शामिल हैं ।अगर हमारे पास एक टाइम मशीन जैसी कोई उपलब्धि होती तो मैं इस पीढ़ी को 25-30साल पहले लेकर जाती जिसे हम ठोंगा युग कह सकते हैं ।एक ऐसा युग जहां हर छोटे बड़े सामान के लिए ठोंगा का इस्तेमाल होता था जिसका निर्माण कुटीर उद्योग के तौर पर होता था ।आटे की बनी लेइ से साटकर बना वो ठोंगा अगर किसी फ़िल्मी मैगज़ीन या किसी बच्चों की कहानियों की किताब  से बनाया गया तो निश्चय ही मेरी जैसी लड़कियां उसे सावधानी पूर्वक खोलकर पढ़ने का प्रयास जरूर करती थी ।इसी तरह बचपन में कई बार हमने चीनिया बादाम वाले के पास से मिली कॉपी के पन्नों पर कम अंक पाने वाले विद्यार्थियों के प्रति चिंता और उपहास भी जताया है ।उफ्फ ! कहाँ है वो दिन जब रांची से लेकर गाँववाला झरिया दुकानदार छोटी घरेलू सामान को कागज के पुड़ियों में मोड़ कर देता था और इन्हीं पुड़िया और ठोंगों की तिलिस्म दुनिया में बचपन बीतता था ।

Wednesday 27 June 2018

पिछले कुछ समय से  एक बीमारी सुनने में आती  है stress अर्थात तनाव ।ये stress के शिकार सबसे अधिक कम  उम्र के लोग ही हैं चाहे छोटा सा बच्चा हो या कोई किशोर  ।अगर ध्यान दिया जाए तो किसी भी पारिवारिक समारोह में बच्चों को देखा जाए तो ,पहले तो  वो  अपने दोस्तों के अलावा किसी रिश्तेदार के घर जाने को तैयार ही बड़ी मुश्किल से होते हैं अगर गलती से माता पिता के साथ आ भी जाए तो भले ही उन्होंने कितने भी महंगे कपड़े और जूते क्यूँ न पहने हो लगभग  सभी के चेहरे पर एक अजीब सा तनाव ।  स्मार्ट फोन आने के बाद से ये बच्चे  किसी कोने में बैठे  मोबाइल पर गेम खेलते हुए  ही मिलेंगे न पहले के बच्चों की तरह दौड़ने खेलने का शौक और न ही  स्वादिष्ट भोजन संबंधी रुचि । लगातार इन नौनिहालों के तनावग्रस्त चेहरे को देखकर लगता है कि पूरे समारोह के संचालन संभवत इन्हीं के कमजोर कंधों पर है ।इसी तरह बच्चों के आंखों पर लगने वाले चश्मे की बढ़ती हुई संख्या भी शायद ही किसी का ध्यान अपनी ओर न खींचे पहले माँ बाप के आंखों की कमजोरी या उम्र ही चश्मा चढ़ने की वजह होती थी लेकिन अब बिना चश्मे के बच्चों की संख्या घटती जा रही है ।  इस बारे में चिकित्सकों  की राय क्या है मैं नहीं जानती लेकिन इस उम्र के कई  बच्चों को
मैंने माइग्रेन ,शुगर और लो बीपी  जैसी बीमारियों से परेशान भी देखा है  ।क्या फायदा हमारे विकास का ,कैसे हम एक स्वस्थ भविष्य की कामना करें जबकि इसकी नींव ही खोखली होती जा रही है ।कारण चाहे जो भी हो अनियमित दिनचर्या ,नींद की कमी, खाने में जंक फूड की अधिकता से  घटती पोषकता परिणाम तो भयावह है न ।