जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं ।इसी फलसफे पर थी मेरे पापा की जिंदगी ।बिल्कुल अपने स्वभाव के अनुसार बिना किसी को कोई तकलीफ दिए 10 अगस्त को उनका निधन हो गया औऱ इसी के साथ अंत हो गया एक ऐसे कर्मठ व्यक्ति का जिसने जिंदगी की हर चुनौती को हंसते हंसते स्वीकार किया फिर चाहे वो पारिवारिक परेशानी हो,आर्थिक समस्या हो या शारीरिक तकलीफ हो । वैसे तो रोग की तकलीफ 22 सालों से उनके साथ था लेकिन उनकी जिंदगी की उल्टी गिनती अर्थात काउंट डाउन पिछले अगस्त से शुरू हो गई थी जब पटना में हृदय रोग विशेषज्ञ ने उनकी हृदय की स्थिति देख कर उनके इतने सालों के जीवन पर आश्चर्य किया । औऱ किसी भी क्षण उनके प्राणान्त होने की भविष्यवाणी कर दी ।उस डॉक्टर के दिए गए परहेजों के साथ पापा अपनी दिनचर्या में खुश थे ।पापा के उसूल अंत तक उनके साथ बने रहे छात्र जीवन से ही वो RSS के विचारों से प्रभावित थे तो जब उनकी मौत के चंद दिनों बाद बाजपेयी जी का निधन हुआ तो वहाँ मौजूद लोगों के लिए यह एक चर्चा का विषय था ।मेरे पास जितना ही है मैं इसी में निर्वाह करूंगा औऱ इसके लिए न कभी उन्होंने अपने अतिसमृद्ध ससुराल से कुछ लेना चाहा औऱ न ही अपने संतानों से । पेंशन नहीं होने की स्थिति में अपनी जरूरतों को उन्होंने मितव्ययता के चाबुक से साधा था ।दो भाइयों और एक छोटी बहन के असमय निधन से वो विचलित तो हुए पर कर्तव्यच्युत नहीं ।भाइयों की विधवाओं को पुत्रीवत मानकर समाज की वर्जनाओं की अवहेलना की । आज जब पापा के निधन के बाद पापा के बारे में कुछ लिखना चाहती हूं मेरे सामने एक ऐसी छवि आ जाती है जिसके आंखों में बेहद कम रोशनी थी जो शारीरिक रूप से दुर्बल होते हुए भी सिध्दान्त का बिल्कुल पक्का था ।कभी किसी को मैंने श्मशान को बारात कहते हुए सुना था तो हमने एक ऐसे बारात को देखा जिसमें उनके शुरुवाती मित्र से लेकर वार्धक्य के परिचित शामिल थे ।जिस रांची के कारण वो कहीं रहना नहीं चाहते थे उसी रांची के लोगों नेअंतिम विदाई की घड़ी में हाथोंहाथ लिया ।ये उन्हीं के बनाए मानवीय रिश्ते थे कि हमारे शोकसंतप्त परिवार को लोग हर प्रकार की सहायता देने को तैयार थे ।ये कैसी आश्चर्य की बात है लोग उस व्यक्ति के लिए अपना बहुमूल्य वक़्त दे रहे थे उनसे संबंध नहीं अनुबंध से बंधा था ।अब भी जब बिल्कुल सुबह मोबाइल की घंटी बजती है तो अनायास ही लगता है , पापा का फोन होगा 😢😢
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