अपने दो महीने के इंटर्नशिप के लिए मेरी बेटी आजकल पिथोरागढ़ के एक छोटे से कस्बे में Avni नाम के एक organization में काम कर रही है ।हल्द्वानी से टैक्सी से लगभग 7-8 घंटे की दूरी पर स्थित ये संस्थान विगत कई सालों से बच्चों को अपने यहाँ काम के साथ साथ रहने और खाने की सुविधा मुहैया करा रहा है । बचपन से ही मैंने गढ़वाल और कुमाऊँ के बारे में कई उपन्यासों को पढ़ा है मेरी रूचि को जानते हुए वो मुझे वहां के लोगों के रहन सहन से लेकर खाने पीने की बातें बताती है औऱ उसकी बातो की सजीव चित्रण सेे मैं शायद वहां काम करने वाले हर कर्मचारी और चंपे चंपे को बखूबी जान गई हूं । इसके अलावा उसकी बातों में स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति का भी जिक्र रहता है । कुल मिलाकर मैंने ये समझा वे बेहद मिलनसार और संवेदनशील लोग हैं जिन्होंने इन दो महीनों में हर तरह से मेरी बेटी को प्रभावित किया क्या ये दाद देने की बात नहीं कि वहां काम करने वाले छोटे से कर्मचारी ने अपने सीमित आमदनी में से बेटी को कैंटीन के नियमित खाने की जगह जबरदस्त आग्रह के साथ स्वादिष्ट भोजन बस इसलिए खिलाया गोकि उसकी मम्मी ये न कहे कि वो दो महीनों में दुबली हो गई है । अपनों से दूर उस लड़की ने पहली बार अपने जन्मदिन की सुबह अपने को पहाड़ी फूलों से घिरा पाया जोे उन छोटे बच्चों में हाथों में थे जिन्हें वो कई दिनों से पेंटिग सीखा रही थी । हर सुबह जब बेटी से बात करती हूं तो वे वहाँ के छोटे बड़े कर्मचारियों के सहृदयता का सबूत देती है।इन सभी बातों से भावुक होकर जितनी बार मेरी बच्ची उनसे
दुबारा आने की बात करती है सारे लोगों का एक ही जवाब नहीं ,आप नहीं आओगे कहते सभी हैं लेकिन आज तक एक भी इंटर्न दुबारा नहीं आया ।क्या कहा जाए उन लोगों के लिए जो इस बात को जानते हुए अपना स्नेह दोनों हाथों से लूटा रहे हैं उसके लिए जिससे वापसी की कोई उम्मीद नहीं ।क्या इसी भावना को समझते हुए कई सफल हिंदी फिल्मों की कहानी नहीं बुनी गई !
Wednesday, 11 July 2018
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