गर्मी की शुरुवात होने के साथ ही जब AC सर्विसिंग करने वाले मेरे घर आए और AC वाले बॉक्स को खोला तो पिछले दो साल की तरह उसमें गौरैयों की आवाजाही होने लगी थी और पूरे जोर शोर से घोंसले के निर्माण की प्रक्रिया जारी थी सर्विसिंग वाले लड़कों ने शिकायत के तौर पर मुझसे कहा कि आपने लगातार दो साल इनका घोसला नहीं हटाने दिया तो इस साल फिर इन्होंने यहीं अपना घोंसला बना लिया ।याद आ गई दो साल की पहले की बात जब लगभग तैयार घोंसले को देखकर मैंने उन सर्विसिंग वाले लड़को से पूछा कि क्या बिना इसे हटाए आपका काम नहीं हो सकता है ? किसी के भी घर उजाड़ने से बुरी बात तो हो ही नहीं सकती ।भले ही इसके दंड स्वरूप मैंने कई दोपहर और मुँह अंधेरे से ही उनकी लगातार चीं चीं को झेला हो लेकिन जब इस कंक्रीट के जंगल में नींद अलार्म की जगह उनकी चहचहाहट से खुलती हो तो बहुत भला ही महसूस होता है औऱ तो और कई बार ग्रील में आंखें सटा कर अपने बच्चों के साथ उनके बच्चों को भी देखा है ।शायद तीसरी या चौथी क्लास में मैंने इन्हीं नन्हें परिंदों से जुड़ी "रक्षा में हत्या" जैसी मार्मिक कहानी भी पढ़ी है ।अब अख़बारों के आधे पन्ने पर संरक्षण की मुहिम के साथ इन नन्हें जीवों की तस्वीर देखती हूँ और इनके विलुप्त होने की कगार पर की सूचना पाती हूँ तो आंखें भर आती है क्योंकि इनसे तो हमारा बचपन जुड़ा हुआ है चाहे वो गर्मी की दोपहर हो या माँ के द्वारा इन्हें दानों देने पर झुंड में आने की आदत हो जिसे मेरी बच्चियां छुटपन में ननिहाल जाने पर घंटों देखा करती थीं । एक छोटी सी प्लास्टिक की टोकरी और पानी का सकोरा मैंने भी बालकनी में रख छोड़ा है जिसे क्या पता कुछेक को मैं बचा लूँ । सुबह से शाम तक अपने व्यस्त जीवन से समय पाती हूँ तो मेरा ध्यान लगातार आते जाते इन खेचरों के ऊपर जाता है जो शैशवकाल से अब तक के मेरे चिरसाथी हैं ।
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