Sunday, 3 July 2016

पटना तो पटना है इसका जवाब नहीं

जिस दिन मैंने मुंबई के बारे में कुछ लिखा बस उसी दिन से मैं दो शहरों के बारे में सोच के अपराधबोध से भर उठती हूँ। पहली  रांची ,जो कि मेरी जन्मस्थली है और दूसरी पटना जो की मेरी कर्मभूमि है। बच्चे को अपनी माँ को हर हाल में ही पसंद होती है इसलिए रांची तो मुझे हर हाल में अच्छी ही लगती है तो अब पटना की बारी आती है। बचपन में मैंने मुंबई के बारे में दो बाते सुनी थी। पहली की वहां बेहद भीड़ होती है और दूसरी वहां कभी रात नहीं होती। जब मैं माँ पापा के साथ छुटपन में पटना आती तो पटना में इन  दोनों ही चीज़ो को पाती तो  दिनों तक मन में ये सोचती कि मुंबई भी कुछ ऐसा ही होगा। 
   
पटना के बारे में जब मैं पढ़ रही थी तो मुझे एक बात पता चली कि लंदन के पास एक पटना गाँव है जो हमारे पटना से बहुत छोटा है। हमारा पटना जो कभी अजीमाबाद ,कभी कुसुमपुर और पाटलिपुत्र होते हुए पटना पर आ कर ठहरा वो सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से बेहद समृद्ध है। चूंकि हमारे बहुत से रिश्तेदार यहाँ बहुत ही पहले से रहते थे तो यहाँ की काफी बाते मुझे ज्ञात है।वो सत्तर का दशक था जब दशहरे और दिवाली के बीच शायद ही कोई ऐसा क्लासिकल और फिल्मी गायक होगा जिसने अपनी एक शाम पटनावासिओ के नाम न की हो। बात अगर कॉलेज की हो पटना कॉलेज, पटना साइंस कॉलेज, पटना विमेंस कॉलेज का शायद ऐसा असर था कि लोग इस जगह की तुलना कभी ऑक्सफ़ोर्ड से करते थे। एक बात यहाँ की ख़ास है कि कृषिप्रधान क्षेत्र होने के कारण यहाँ के गाँव काफी समृद्ध थे। यहाँ के वो ढिबरी वाले रिक्शे मुझे बचपन में बड़े आकर्षित करते थे। 

आज का पटना कई तरह से बदल चूका है। बदलाव तो प्रकृति का नियम है इसलिए बदलना तो निश्चित है और हमें हर हाल में इससे स्वीकारना ही होगा, कभी मैं यहाँ रात के दो तीन बजे भी ट्रेन से उतर कर बिना किसी भय के घर आ चुकी हूँ अब यहाँ की रोड निरापद नहीं हैं इसलिए रात के नौ बजे ही सशंकित हो उठती हूँ। राजनीति यहाँ की आबोहवा में इतनी पैठ बना चुकी है कि हर चौक चौराहे पर हरेक शख्स इतने विश्वास के साथ बाते करता है कि कोई बाहरी शायद यह सोच सकता है कि इसकी मुख्यमंत्री के साथ रोज़ की मुलाकात है। शायद  इसका कारण यहाँ का लम्बा राजनैतिक  इतिहास रहा हो।दूसरी बात जो मुझे सबसे अधिक चोटिल करती है वो यहाँ की जातिगत भावना। बचपन से जिस दिन तक मैंने रांची में पढ़ाई की मैंने कभी इस बात को ध्यान भी नहीं दिया कि मेरी कौन सी सहपाठी किस उपजाति से है /इस नाम पर हमें मात्र इतना मालूम था कि भारत में चार धर्म के लोग हैं। लेकिन यहाँ नेताओं के स्वार्थ पूर्ण नीति के कारण एक हिन्दूजाति ही कितनी उपजाति में बंटा है वो बेहिसाब है।                                                 
मेरे ससुराल का परिवार काफी बड़ा है.पहले तो प्राय सभी पटना ही रहते थे। अब नौकरी पढाई के कारण जो भी शहर से बाहर गए है छुट्टियों में कही दूसरी जगह घूमने के बजाय पटना ही आना चाहते हैं क्योंकि उनके अनुसार पटना तो पटना है फिर वजह चाहे यहाँ की छठ पूजा हो, चन्द्रकला मिठाई हो या पटनिया परवल।      

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