वो ३० जून की सुबह थी सामने वाले पड़ोसी से आमना सामना हुआ तो जितनी गर्मजोशी से उसने पूछा क्या हाल है ? मेरी आँखे नम हो उठी हाँ बस ठीक ही है। मेरे एक मामा नहीं रहे। अरे,अरे कैसे मामा थे ? मैंने कहा बस बहुत ही नज़दीकी। मतलब कैसी रिश्तेदारी थी? मन रो उठा क्या खून का रिश्ता ही हमारे लिए सब कुछ है? कितने ही ऐसे रक्त संबधी जिन्हे हमने कभी देखा भी नहीं है और हम पहचानते भी नहीं. क्यों ऐसा होता है कि हम अपने मन की वेदना किसी भी ख़ास रिश्तेदार के पास खोल नहीं पाते और उस दोस्त को अपना हर दुःख कह देते है जो कभी कभी हमारी बिरादरी का भी नहीं होता. स्वर्गीय धीरेंद्रनाथ झा हमारे अत्यन्त ही स्नेही मामा थे जिन्हे हमने हमेशा अपना मामा ही समझा। बचपन की एक तस्वीर जब मामा बंगलोर से ट्रांसफर हो कर रांची आए थे और एक शाम हमारे घर आए थे साथ में मामी और मेरे और दीदी की हमउम्र दो बेटियां...माँ के कहने पर हमने प्रणाम किया और जाकर चुपचाप बैठ गयी। हँसते हुए मामा ने पास बुलाया सुनो तुम लोगो को डोसा इडली पसंद है। हाँ बहुत, तुम्हारी मामी बनाती है। मेरी आँखे विस्मय से फैल गयी. आज से तीस पैतीस साल पहले डोसा इडली घर पर बनाना इतना आसान नहीं था। ये आज की बात नहीं है कि झट या तो मिक्सी में घोल तैयार किया और नॉन स्टिक तवा पर डोसा बना लिया। अब तो घोल भी हर तीसरे दूकान में उपलब्ध है।जहां तक मुझे याद है हमारी रिश्तेदारी उसी दिन से शुरू हो गयी। उसके बाद तो हमने कितने दशहरे के मेले को एक साथ घूमा और कितनी ही होलियाँ साथ मनाया। बीच बीच में ट्रांसफर के कारण वो बाहर भी रहे लेकिन वो सम्बन्ध की डोर बनी रही। परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि शादी के बाद के किसी रिश्ते में मामा मेरे ससुर के चाचा थे अर्थात मैं उनके पोते की स्त्री थी । लेकिन यहां अनुबंध ने संबंध को जीत लिया और अपने देहांत होने तक मामा,हमारे आत्मीय बने रहे।
अपने उच्च पद के बावजूद मामा के अत्यंत विनोदी और सरल स्वभाव ने उन्हें सबका प्रिय बनाया था। मेरी शादी के बाद जब भी मिलते कोई बात होती मुझे कहते कर दूं ,तुम्हारी सास से शिकायत ?
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