पिछले महीने से लेकरआनेवाले दो महीने अपने साथ मानों त्योहारों की बाढ़ लेकर आता है। सावन पूर्णिमा के दिन राखी का पर्व भाई बहन के आपसी प्रेम को दर्शाता है. राखी का त्यौहार हमारे मिथिला में आज भी उतना महत्व नहीं रखता जितना की भाई दूज। फिर भी हमने तो राखी बचपन से मनाई है तो जाहिर है उस दिन तो भाई को याद करके दिन में कई बारआँखें गीली हो उठती है। अब बात आती है उन बच्चो की जिनकी या तो बहन नहीं है या फिर भाई नहीं है। यहाँ मेरा अभिप्राय उन बच्चो से है जो या तो दो भाई है या फिर दो बहने।अब तो हमारे समाज में बच्चो की संख्या एक या दो तक ही सिमट कर रह गयी है जो की जमाने को देखते हुए उचित है। ऐसे में वे बच्चे यकीनन भाई या बहन की कमी उनसे भी ज्यादा महसूस करते है जो परिस्थितिवश अपने सहोदरों से दूर है। प्रत्येक वर्ष जब राखी की छुट्टियों के बाद मेरे बच्चियां स्कूल से आती तो राखी वाले दिन से भी ज्यादा उदास हो जाती। कारण उस दिन सभी लड़किया अपने अपने भाइयो के दिए गिफ्ट का बखान करती। बाद के कुछ वर्षो में दोनों बहनों में एक समझौता हो गया कि नौकरी करने के बाद बड़ी बहन छोटी को गिफ्ट देगी। इस साल राखी वाले दिन सुबह से दोनों बहनों ने फ़ोन पर रोज की बात चीत की। पूरे दिन के बीतने के बाद अचानक जब रात के नौ बजे घंटी बजती है और domino's से पिज़्ज़ा लेकर डिलेवरी बॉय हमारे घर आता है तो हम सभी इसलिए आश्चर्यचकित हो जाते है क्योंकि इसे तो हम में से किसी ने आर्डर ही नहीं किया। तब ये पता चलता है कि ये एक अग्रजा के द्वारा अपनी अनुजा को दिया राखी का गिफ्ट है। अब तो न बादशाह हुमायूं और रानी कर्णावती का ज़माना रहा और न ही भाई बहन की रक्षा युद्ध कर के करे ऐसी कोई बात है। ये तो एक स्नेह की डोर है जो रिश्तो में बंधी है। फिर चाहे दो बहनों के बीच हो या दो भाईयों के बीच।
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