Monday, 26 September 2016

समाज और पैसा

आज से बहुत पहले ही कभी किसी  मंत्री ने अपने देश के भ्रष्ट शासन व्यवस्था को देखते हुए इस बात पर दुःख व्यक्त किया था कि अगर हमारे देश में केंद्र सरकार 1  रूपए मंजूर करती है तो उस व्यक्ति तक पहुँचते पहुँचते वो रकम मात्र 19  पैसे रह जाती है। ये आंकलन बहुत पहले का है तो निश्चय ही ये 19  पैसे वाली रकम घटकर5 पैसे तक रह गयी होगी क्योंकि हमारे देश में इस तरह की समस्या तो दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हैं।  खैर, इस मुद्दे पर मेरी चिंता यह मापने की नहीं है कि भ्रष्टाचार कितनी बढ़ी है। उसके लिए काफी  सरकारी  विभाग  और कर्मचारी तैनात हैं। यहाँ मेरी चिंता समाज में बढ़ते हुए बदलाव की ओर  है।  हाल के कुछ वर्षो में समाज में पैसे की इज्जत बहुत तेजी से बढ़ी है ,लोगो को इस बात से कोई मतलब नहीं कि  अमुक व्यक्ति के पास पैसा कहाँ  से आया या उसने किस तरह से धन कमाया  . आज  अगर किसी के पास पैसा है तो उसकी समाज में प्रतिष्ठा है। जहाँ  पहले लोग बेईमान लोगो को घूसखोर ,चोर आदि नामो से संबोधित करते थे ,वही अब उनकी इज्जत समाज में बढ़ती जा रही है। एक ही पोस्ट पर बेईमान और ईमानदार कर्मचारी  के रहन सहन में अंतर को समाज प्रशंसा नहीं हिकारत की दृष्टि से देखता है।अपने इस प्रकार की भावना के द्वारा हम समाज में अनेक कुरीतियों  को बढ़ावा दे रहे हैं। आज दहेज़ के कारण अनेक गुणी  लड़कियां अपने योग्य  वर   से वंचित रह जाती है.न सिर्फ दहेज़ बल्कि जीवन के हर एक मोड़ पर नाकाबिल व्यक्ति किसी योग्य की जगह को पैसे के सहारे उस जगह को हासिल कर लेता है ,फिर वो चाहे नर्सरी क्लास की सीट हो या कोई महंगा कॉलेज। अगर कोई  भौतिक सुविधओं से वंचित रह कर भी समाज में अपने लिए इज़्ज़त हासिल कर लेता  है तो वो उसके लिए आत्मसंतोष की बात होती है। लेकिन  आज के समाज ने अपने  बदलते हुए  रूप से  एक ईमानदार व्यक्ति को बजाय अतिरिक्त इज्जत के हिकारत ही  दिया है।तो ऐसे में किसी भी मजबूत से  मजबूत  शख्स के  पथविचलित होने में कोई आश्चर्य  की बात नहीं।  हमने बचपन से एक ही बात सुनी थी कि जिंदगी में पैसा बहुत अहम् स्थान  रखता है लेकिन पैसे से भी बड़ी  चीज़ इज्जत है क्योंकि पैसा तो एक स्मगलर भी कमा  लेता है। आज भी ये बात 100  में से 5 % लोगो में  मौजूद है भले ही   हम न्यूज़ और अखबारों  रोज भ्रष्ट अधिकारियों की लंबी लिस्ट देखते है लेकिन यदा  कदा  श्री अशोक खोसला (आई .ए .एस . अधिकारी )  जैसों को भी देख लेते है जिन्होंने अपनी ईमानदारी का मूल्य 19  साल में 20  ट्रांसफर के द्वारा चुकाया। मेरा तो इस बारे  में यह मानना है कि  भले ही कोई अपने बुरे कर्मो की सजा संसार की अदालत में न पाए लेकिन वो सबसे बड़ी  अदालत से नहीं बच सकता। अपने नैनीताल के भ्रमण में मैंने वहाँ एक ऐसे मंदिर को देखा जो न्याय के देवता गोलुमहाराज कहे जाते  है उस मंदिर में अनगिनत पर्चियां  टंगी हुई थी। कहते है कि  जिनकी फ़रियाद  कोई नहीं सुनता उसकी अपील गोलुदेव सुनते हैं। उस मंदिर में जिनकी फ़रियाद पूरी होती है वो अपनी सामर्थ्य के अनुसार घंटे का चढ़ावा चढ़ाता  है।  बुरे कर्मो का फल  देर सवेर  तो मिलता ही है इसका प्रमाण मुझे उस मंदिर में ही मिला क्योंकि मैंने वहाँ  न सिर्फ अनगिनत पर्चियां ही देखी बल्कि उतनी ही मात्रा में असंख्य घंटे और घंटियाँ भी देखी। 

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