आधुनिकीकरण के कारण हमने बहुत सी चीज़ों को पाने के साथ काफी कुछ खोया भी है। एक समस्या मुझे काफी व्यथित करती है वो है हमारे किशोर होते हुए बच्चो की समस्या। क्यों आज कल के बच्चे इतने भावुक होते जा रहे हैं।आए दिन बच्चों के क्रियाकलाप को देखकर हम दंग रह जाते है ।कई बार टीवी,कई बार सिनेमा आदि से प्रभावित होकर वो ऐसे कदम उठा लेते है जिनकी कल्पना भी मुश्किल थी। पहले जहाँ घर में एक साथ कितने ही बच्चे रहते थे वही परिवार के एकल होने के कारण उनकी संख्या काफी कम हो गयी है। साथ ही परिवार में बच्चों की संख्या काफी कम हो गयी है ।पहले की तुलना में माँ बाप उनके खाने पीने से लेकर हर चीज़ को लेकर विशेष सतर्क हो गए है लेकिन बच्चे और ज्यादा आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। मुझे ऐसा लगता है कि जैसे जैसे माँ बाप का बच्चों को सुविधा देने का ग्राफ बढ़ता जा रहा है उसी अनुपात में बच्चे अधिक सुविधा पसंद होते जा रहे हैं।मुझे न सिर्फ अपनी बल्कि अपने साथ के सभी बच्चों की खाने के प्रति ऐसी कोई बात याद नहीं कि अमुक बच्चे को अमुक चीज़ नहीं खानी है । पहले प्रायः ये बात थी क़ि हर खाने वाली चीज़ खानी है ।लेकिन अब हर घर में हर माँ बच्चे की पसंद और नापसंद से परेशान है ।अगर घर दो बच्चे है तो एक बिस्कुट में भी विविधता है ।अब की पीढ़ी को किसी भी काम में टोकना पसंद नहीं है ।चाहे वो दोस्तों की बात हो या उनके कैरियर की ।वो अपना फैसला खुद लेते हैं ।ठीक है आज के बच्चे हमारी तुलना में काफी जागरूक हैं लेकिन गलती होने की संभावना तो रहती ही है ।तो मैं एक प्रश्न करना चाहती हूँ कि उम्र के इस पड़ाव पर अगर माता पिता न टोके गुरुजन नहीं टोकें तो वो कौन है जो गलत सही की पहचान करवा सके ।आज किसी भी जुर्म में अगर मुजरिमो की शिनाख़्त की जाए तो ज्यादातर मुजरिम नाबालिग होते है और कई बार अच्छे और रसूखदार परिवार के ।हैरानी की बात ये है कि कई बार ये अपराध मौज मस्ती या गर्ल फ्रेंड को इंप्रेस करने के लिए होती है।इस मामले में लड़किया भी पीछे नहीं है । जहां तक हार्मोनल बदलाव की बात है वो तो हर पीढ़ी के साथ हुआ होगा ।किसी एक बच्चे या किसी एक परिवार नहीं मेरी चिन्ता तो समाज के प्रति है।और तो और अगर एक बात गौर की जाए तो आज के बच्चों ने तो कुदरत के साथ भी दो दो हाथ कर लिया है ।जहाँ हमारे लिए सुबह छह बजे अनिवार्य रूप से बिस्तर छोड़ने की पाबन्दी होती थी वही अब तो सभी बच्चों ने रतजगे का नियम बना लिया है ।जाहिर है जब पूरी रात जगे रहेंगे तो सुबह छुट्टी वाले दिन हर घर में बच्चे सोये ही मिलेंगे ।फिर भी आज की बिंदास पीढ़ी अच्छी ही लगती है ,हर बच्चा चाहे कितना ही स्वछन्द हो ,चाहे मोबाइल पर कितना ही वक़्त बिताए एक बात मुझे इनकी बड़ी ही प्रभावित करती है वो है इनके भविष्य की योजना ।जिस समय हमने कुछ भी सोचा न था उसी अल्पायु में बच्चे न सिर्फ कैरियर का फैसला कर लेते है बल्कि उसके प्रति पूर्ण समर्पित भी हो जाते हैं ।
No comments:
Post a Comment